हर टास्क को पूरा करने के लिए आपके पास दो प्लान होने चाहिए। अगर एक ही दिशा में लगातार प्रयासों में असफलता मिल रही है तो अपने प्रयासों की दिशा भी बदल देनी चाहिए। भगवान कृष्ण के जीवन में ऐसे कई प्रसंग आते हैं कि जहां ये समझा जा सकता है कि वे हमेशा दो प्लान रखते थे। एक अगर असफल हो जाए तो उसके बदले दूसरा प्लान लाया जाए।
श्रीमद् भागवत की कहानी है। भगवान कृष्ण ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए बहुत दूर तक निकल गए। उन्हें भूख लगने लगी। आसपास कोई साधन नहीं था। उन्होंने ग्वालों से कहा कि पास ही एक यज्ञ का आयोजन हो रहा है। वहां जाओ और भोजन मांग कर ले आओ। ग्वालों ने वैसा ही किया। वे यज्ञ मंडप में गए और वहां भोजन की मांग की।
ग्वालों ने कहा कि नंद पुत्र कृष्ण थोड़ी दूरी पर ठहरे हुए हैं, उन्हें भूख लगी है। थोड़ा भोजन दे दीजिए। यज्ञ का आयोजन कर रहे ब्राह्मणों ने भोजन देने से मना कर दिया। उनका मत था कि जब तक यज्ञ देवता को भोग न लग जाए तब तक किसी को भोजन नहीं दे सकते। ग्वाले लौट आए। कृष्ण ने उनसे पूछा कि भोजन क्यों नहीं लाए तो ग्वालों ने ब्राह्मणों की बात उनसे कह दी।
कृष्ण ने उनसे कहा एक बार फिर जाकर मांगो शायद इस बार भोजन मिल जाए। ग्वालों ने फिर वैसा ही किया, लेकिन फिर वही जवाब लेकर खाली हाथ लौट आए। भगवान ने कहा एक बार फिर जाओ। इस बार ब्राह्मणों से नहीं, उनकी पत्नियों से भोजन मांगना। ग्वालों ने कहा वे भी वही जवाब देंगी, जो उनके पतियों ने दिया है।
कृष्ण ने कहा – नहीं, वे मुझे चाहती हैं, वे तुम्हें भोजन अवश्य देंगी। ग्वालों ने वैसा ही किया। ब्राह्मण की पत्नियों से कृष्ण के लिए भोजन मांगा तो वे तत्काल उनके साथ भोजन लेकर वहां आ गईं, जहां कृष्ण ठहरे थे।
सबने प्रेम से भोजन किया। ब्राह्मण पत्नियों ने कृष्ण को अपने हाथों से परोसा और भोजन कराया। ग्वाले इस बात से हैरान थे। भोजन करके सभी तृप्त हो गए। ये कहानी बहुत साधारण और छोटी है, लेकिन इसके पीछे का संदेश बहुत ही काम का है। कृष्ण ने ग्वालों को बार-बार भोजन लेने भेजा। आखिरी बार को छोड़कर हर बार निराशा ही हाथ लगी।
कृष्ण कह रहे हैं कि व्यक्ति को कभी प्रयास करना नहीं छोडऩा चाहिए। सफलता के लिए लगातार प्रयास करते रहें, लेकिन अगर एक ही प्रयास में बार-बार असफलता मिले तो खुद की योजना पर भी विचार आवश्यक है।