भगवान विश्वकर्मा जयंती की तारीख को लेकर पंचांग भेद:देवताओं के शिल्पी हैं विश्वकर्मा, इनकी जयंती पर मशीनों और वाहनों की पूजा करने की है परंपरा

हर साल कन्या संक्रांति पर भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाई जाती है। इस साल कन्या संक्रांति की तारीख को लेकर पंचांग भेद हैं। कुछ पंचांग में आज (16 सितंबर) और कुछ में कल (17 सितंबर) कन्या संक्रांति बताई गई है। इस वजह से अलग-अलग क्षेत्रों में इन दिनों में विश्वकर्मा जयंती मनेगी। कन्या संक्रांति यानी सूर्य ग्रह का सिंह से कन्या राशि में प्रवेश। सूर्य के राशि परिवर्तन को ही संक्रांति कहते हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, भगवान विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पी हैं। इनकी जयंती पर मशीनों, औजारों और वाहनों की पूजा करने की परंपरा है। इस बार विश्वकर्मा पूजा को लेकर पंचांग भेद हैं, वैदिक पंचांग के अनुसार तो आज (16 सितंबर) ही विश्वकर्मा पूजा करना ज्यादा शुभ रहेगा। इसके अलावा हम अपने-अपने क्षेत्र के पंचांग और विद्वानों को मतों के अनुसार ये पर्व मना सकते हैं। भगवान विश्वकर्मा से जुड़ी खास बातें विश्वकर्मा पूजा मशीनरी, औजार, वाहन आदि क्षेत्रों से जुड़े लोगों के लिए बड़ा पर्व है। इस दिन इन क्षेत्रों से जुड़े लोग अपने काम बंद रखते हैं। मशीनों और वाहनों को आराम देते हैं, इनकी साफ-सफाई करते हैं और विश्वकर्मा के साथ ही इन सभी चीजों की भी पूजा करते हैं। विश्वकर्मा देवताओं के शिल्प हैं और इनकी पूजा से मशीनरी से जुड़े कामों में आने वाली बाधाएं खत्म हो जाती हैं। ऐसी मान्यता है। सृष्टि का संचालन त्रिदेवों के साथ ही भगवान विश्वकर्मा की वजह से ही हो रहा है। आज हमारे आसपास जितनी भी मशीनरी और निर्माण कार्य दिख रहे हैं, वे भगवान विश्वकर्मा की वजह से ही हैं। विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, महल बनाए हैं। द्वापर युग में विश्वकर्मा जी ने श्रीकृष्ण की द्वारिका बनाई थी। सुदामा का महल बनाया था। पौराणिक मान्यता है कि वानर नल और नील भगवान विश्वकर्मा के पुत्र थे। अब जानिए नल-नील से जुड़ी कथा… श्रीरामचरित मानस के सुंदरकांड के अंत में श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ लंका पहुंचना चाहते थे। पूरी वानर सेना के साथ समुद्र पार करके लंका पहुंचना संभव नहीं था। तब समुद्र देव ने सलाह दी थी कि आपकी सेना में नल-नील नाम के वानर हैं। वे भगवान विश्वकर्मा के पुत्र हैं। ये दोनों जिस चीज को हाथ लगाते हैं, वह पानी में डुबती नहीं है। इनकी मदद से आप समुद्र पर सेतु बांध सकते हैं। इसके बाद श्रीराम ने नल-नील से समुद्र पर सेतु बांधने के लिए कहा। नल-नील ने पूरी वानर सेना की मदद से समुद्र पर सेतु बांध दिया। दरअसल नल-नील जब छोटे थे, तब वे ऋषियों को बहुत परेशान करते थे। नल-नील ऋषियों की पूजन सामग्री पानी में डाल देते थे। परेशान ऋषियों ने नल-नील को शाप दे दिया था कि अब से ये दोनों जो भी चीज पानी में फेंकेंगे वह डूबेगी नहीं। इसी शाप की वजह से नल-नील ने समुद्र पर पत्थरों से सेतु बांध दिया था।