रिलेशनशिप- काम ज्यादा नहीं है, हमारा वर्क मैनेजमेंट खराब है:खुद में लाएं अनुशासन, रोजमर्रा की जिंदगी में करें ये 8 बदलाव

“आदर्श, अनुशासन, परिश्रम, ईमानदारी और उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता है।” स्वामी विवेकानंद द्वारा कही गई इस बात को बहुत से लोग जानते तो हैं, लेकिन इस पर अमल नहीं कर पाते हैं। इसके कारण उनका जीवन अस्त-व्यस्त रहता है। ऐसे लोग न तो काम को वक्त पर पूरा कर पाते हैं और न ही समय पर कहीं पहुंच पाते हैं। हालांकि सफल होने के लिए आत्म का अनुशासन बेहद जरूरी है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आईफोन बनाने वाली कंपनी एपल के CEO टिम कुक के दिन की शुरुआत सुबह चार से होती है। चाहे वे कहीं भी हों, उनका सुबह जल्दी उठने का रूटीन कभी नहीं बदलता। उठते ही जरूरी ईमेल्स के जवाब देने के बाद वे सीधा जिम जाते हैं और अपने दिन की सकारात्मक शुरुआत करते हैं। ये बातें उन्होंने टाइम मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में बताई थीं। पेप्सिको की CEO इंदिरा नूई भी सुबह 4 बजे उठ जाती हैं और 7 बजे वो ऑफिस में होती हैं। उन्होंने अपनी दिनचर्या और अनुशासन के महत्व के बारे में फॉर्च्यून मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में बताया। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में 2018 में पब्लिश एक स्टडी ‘द पावर ऑफ डिसिप्लिन’ के मुताबिक पूरी दुनिया में लगभग 40% लोग ही अपने रोजमर्रा के जीवन में अनुशासन का पालन करते हैं। तो आज रिलेशनशिप कॉलम में बात करेंगे जीवन में अनुशासन के महत्व की। साथ ही जानेंगे कि- अनुशासन कठोरता नहीं, लक्ष्य तक पहुंचने का जरिया अनुशासन को हम हमेशा कठोरता के साथ जोड़ते हैं। जैसे ‘यह तो बहुत ही मुश्किल काम है, ये मेरे बस की बात नहीं,’ ‘सुबह जल्दी उठना मुझसे बिल्कुल नहीं हो पाएगा।’ हम दिमाग में यह गलतफहमी पाल लेते हैं कि अनुशासन का मलतब है, अपने ऊपर नियम और पाबंदियां लगाना। जबकि असल बात यह है कि अनुशासन ही हमें जीवन के लक्ष्यों की ओर ले जाने में मदद करता है। लेकिन यह बात हमें अपने जीवन में तब मालूम चलती है, जब बहुत देर हो जाती है। मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि अनुशासन की कमी होने का एक कारण यह भी है कि हम हमेशा छोटे-छोटे सुखों को पाने के पीछे भाग रहे होते हैं। दूसरा कारण है भौतिक सुख-सुविधाओं के बारे में सोचते रहना। हम ये तो सोचते हैं कि मुझे यह भी करना है, वो भी करना है, बहुत पैसा कमाना है, सफल होना है, लेकिन उस सफलता के लिए करना क्या और कैसे है, ये नहीं सोच पाते। सोशल मीडिया पर अपना वक्त जाया करना भी हमें अपने लक्ष्य और अनुशासन से भटकाता है। जीवन में कैसे अपनाएं सेल्फ-डिसिप्लिन सेल्फ-डिसिप्लिन को कई नामों से जाना जाता है, जैसेकि इच्छाशक्ति, आत्म-नियंत्रण और टाइम मैनेजमेंट। यह हमें काम पर फोकस करने, लक्ष्यों को पूरा करने और जो हम करना चाहते हैं, उसे पूरा करने में मदद करता है। ऑक्सफोर्ड की अंग्रेजी डिक्शनरी सेल्फ-डिसिप्लिन को अपनी भावनाओं को कंट्रोल करने, कमजोरियों पर काबू पाने के रूप में परिभाषित करती है। वहीं कैम्ब्रिज डिक्शनरी सेल्फ-डिसिप्लिन को खुद को कुछ ऐसा करने के लिए मजबूर करने की क्षमता के रूप में परिभाषित करती है, जिसे आप जानते हैं कि आपको यह करना चाहिए, तब भी जब आप ऐसा नहीं करना चाहते। सेल्फ-डिसिप्लिन में है अद्भुत ताकत प्रसिद्ध लेखक ब्रायन ट्रेसी ने इस विषय पर एक किताब लिखी है, जिससे अनुशासन को आसानी से अपने जीवन में अपनाया जा सकता है। किताब का नाम है- ‘नो एक्सक्यूज! द पावर ऑफ सेल्फ-डिसिप्लिन।’ इस किताब में बताया गया है कि आप अपने जीवन में पूरी तरह से अनुशासित कैसे हो सकते हैं। कैसे आप ‘नो एक्सक्यूज’ जैसे दृष्टिकोण को जीवन में लागू कर सकते हैं। यह आपको कई लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा। अनुशासन क्यों जरूरी है अनुशासित होना बेहतर जीवन जीने का एक तरीका है। इसे छोटी उम्र में ही सीख लेना फायदेमंद है। जिनके घर में बचपन से ही अनुशासन का माहौल होता है, खासकर आर्मी बैकग्राउंड से जुड़े परिवारों में, वहां बच्चे बचपन से ही अनुशासन का पालन करना सीख जाते हैं। हालांकि एक कौशल के रूप में सेल्फ-डिसिप्लिन को कभी भी अपनाया जा सकता है, इसकी कोई तय सीमा नहीं है। अनुशासन से हमारे जीवन में होने वाले लाभ-