सेहतनामा- UAE में प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग अनिवार्य:माता-पिता को डायबिटीज-हाई बीपी तो बच्चों के लिए बढ़ता रिस्क, डॉक्टर से समझिए

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की गर्वनमेंट ने हेल्थ को लेकर एक बड़ा फैसला किया है। वहां के हेल्थ डिपार्टमेंट ने ‘प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग’ को अनिवार्य कर दिया है, जो 1 अक्टूबर, 2024 से लागू हो रहा है। इस नियम के तहत यूएई में शादी करने से पहले कपल्स के लिए जेनेटिक टेस्टिंग कराना अनिवार्य होगा। अबू धाबी सरकार ने यह फैसला आने वाली पीढ़ियों के हित में लिया है। कपल्स को ये टेस्ट शादी से पहले ही करवाने होंगे, ताकि माता-पिता की जेनेटिक हेल्थ का पता लगाया जा सके और कोई जेनेटिक डिसऑर्डर बच्चों में पास ऑन न हों। इसे ऐसे समझिए कि हमें अपने पेरेंट्स से खास डीएनए सीक्वेंसिंग या क्रोमोजोम्स की संरचना मिलती है। इनमें मौजूद जीन से तय होता है कि हमारा रंग, रूप, बनावट, आदतें और बिहेवियर कैसे होंगे। यह सबकुछ जीन का एक्सप्रेशन है। अगर इनमें कुछ डिफेक्ट या म्यूटेशन होता है तो वह आने वाली पीढ़ियों को भी पास ऑन हो जाता है। इससे बच्चों को कई तरह की बीमारियां या मुश्किलें हो सकती हैं। ज्यादातर मामलों में तो इनका कोई इलाज ही नहीं होता है और शिशु की मौत हो जाती है। इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे जेनेटिक बीमारियों की। साथ ही जानेंगे कि- दुनिया के किन देशों में प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग अनिवार्य है जेनेटिक बीमारियां हेल्थकेयर सिस्टम के लिए काफी समय से चुनौती बनी हुई हैं। जैसे-जैसे इन बीमारियों पर वैज्ञानिक रिसर्च आगे बढ़ी, हमें समझ में आया कि जेनेटिक बीमारियां नियति नहीं हैं। इन्हें रोकना हमारे हाथ में है। इसे लेकर दुनिया के कई देशों में नियम भी बनाए गए, जहां शादी से पहले प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग अनिवार्य की गई। ये वो देश हैं, जहां इस तरह की बीमारियों का अनुपात बहुत ज्यादा था। नीचे ग्राफिक में देखिए– जेनेटिक टेस्टिंग क्या है? जेनेटिक टेस्टिंग एक प्रकार का मेडिकल टेस्ट है। इसके जरिए जीन, क्रोमोजोम्स या प्रोटीन में हुए परिवर्तन का पता लगाया जाता है। इसके रिजल्ट्स से तीन बड़ी चीजों की जानकारी मिलती है: मौजूदा समय में 77,000 से अधिक जेनेटिक टेस्टिंग हो रही हैं। इस पर अभी और रिसर्च जारी है। प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग क्यों जरूरी है? दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में सीनियर कंसल्टेंट गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. मीनाक्षी बंसल कहती हैं कि शादी से पहले और विशेषकर कंसीव करने से पहले जेनेटिक टेस्टिंग बहुत जरूरी है। चीन और भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देशों में जेनेटिक कंडीशंस होने की संभावना अधिक है। यह बच्चों में पास ऑन हो सकती है। अगर माता-पिता दोनों में से किसी एक में गंभीर जेनेटिक कंडीशन है तो बच्चों में उसके पास ऑन होने की संभावना बढ़ जाती है। अगर माता-पिता दोनों में वह जेनेटिक कंडीशन मौजूद हुई तो बच्चे को जेनेटिक डिसऑर्डर होने की आशंका 50% तक बढ़ जाती है। ऐसे में जरूरी है कि पेरेंट्स को इस बारे में पहले से पता हो और वे बच्चे के लिए बेहतर प्लानिंग कर सकें। इसके लिए कौन से टेस्ट कराने होते हैं? जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए कई तरह की स्क्रीनिंग डेवलप की गई हैं। इसमें कंप्लीट ब्लड काउंट, ब्लड ग्रुप जैसे सामान्य टेस्ट भी किए जाते हैं। इसके अलावा थैलेसीमिया और सिकल सेल की आशंका का पता लगाने के लिए Hb वेरिएंट टेस्टिंग होती है। ऐसे कई और टेस्ट हैं। डिटले नीचे ग्राफिक में देखिए। जेनेटिक कंडीशंस से कौन सी बीमारियां हो सकती हैं? क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक दुनिया में लगभग 1% बच्चे क्रोमोजोमल प्रॉब्लम के साथ पैदा होते हैं। इसके कारण डाउन सिंड्रोम जैसे डिसऑर्डर भी हो सकते हैं। इसमें बच्चे की बौद्धिक क्षमता विकसित नहीं होती है और शारीरिक विकास पर भी इसका असर होता है। जेनेटिक बीमारियों की पूरी लिस्ट नीचे देखिए– जेनेटिक टेस्टिंग से बेबी प्लानिंग में क्या मदद मिलती है? डॉ. मीनाक्षी बंसल कहती हैं कि भारत में जेनेटिक टेस्टिंग को लेकर बहुत भ्रम हैं। ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि अगर कपल्स के कंसीव करने से बच्चे को जेनेटिक डिसऑर्डर होने की आशंका है तो बच्चा नहीं करने की सलाह दी जाती है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। जेनेटिक टेस्टिंग की शुरुआत ही इसलिए हुई है कि पेरेंट्स इस दुनिया में आने वाले बच्चे के लिए अधिक तैयार हो सकें। अगर बच्चे की जान को खतरा है तो इस बारे सोच-समझकर इन्फॉर्म्ड फैसला ले सकें। जेनेटिक टेस्टिंग के जरिए रिस्क का आकलन किया जाता है और कपल्स को इसके लिए काउंसिलिंग दी जाती है। डॉ. मीनाक्षी बंसल बताती हैं कि हमारे देश में जेनेटिक टेस्टिंग को लेकर जागरूकता की भी बहुत कमी है। इसके लिए सरकार की ओर से अवेयरनेस प्रोग्राम और विज्ञापन चलाए जाने की जरूरत है, ताकि युवा पीढ़ी इस बारे में जागरुक हो सके। इससे देश में आने वाली पीढ़ियां अधिक स्वस्थ और फिट होंगी। क्या डायबिटीज और हाइपरटेंशन के लिए भी जीन जिम्मेदार हैं डॉ. मीनाक्षी कहती हैं कि ये लाइफस्टाइल डिजीज हैं, लेकिन अगर किसी के पेरेंट्स में से किसी एक या दोनों को ऐसी कोई बीमारी है तो इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि बच्चे में भी यह बीमारी विकसित हो जाएगी। ऐसे लोगों को अन्य लोगों की तुलना में कम उम्र में ही ये बीमारियां हो जाती हैं। हालांकि डॉ. मीनाक्षी बताती हैं कि पेरेंट्स के डायबिटिक या हाइपरटेंशन का मरीज होने के बावजूद हम अपनी लाइफस्टाइल अच्छी रखकर इन बीमारियों को टाल सकते हैं। इससे हम खुद तो इन बीमारियों से बचेंगे ही, बच्चों को भी लाइफस्टाइल डिजीज पास ऑन नहीं होंगी। भारत में आमतौर पर 25 से 30 साल के युवा पहली बार पेरेंट्स बनते हैं। ऐसे में इस बात की बहुत संभावना है कि इस उम्र तक उन्हें कोई लाइफस्टाइल डिजीज न हुई हो। इस तरह की कंडीशन में हमें यह देखना होगा कि नए बने पेरेंट्स के माता-पिता में से किसी को इस तरह की कोई बीमारी थी या नहीं। अगर हां तो बच्चे का पालन-पोषण बहुत सावधानी से करें और उन्हें ऐसी परवरिश दें कि वह लाइफस्टाइल बीमारियों की जद में न आएं।