ऑस्कर नॉमिनेशन पर बोलीं लापता लेडीज राइटर स्नेहा देसाई:कहा- जब फोन ऑन किया तो बधाइयों का अंबार लगा था, आमिर हर कला के लिए एक्साइटेड रहते हैं

‘मैं और किरण एक अपकमिंग फिल्म के लिए मीटिंग कर रहे थे। अगर हम किसी मीटिंग में बैठते हैं तो हमें अपना फोन साइलेंट रखना पड़ता है। मीटिंग के बाद हम थक गए और मीटिंग छोड़कर सीधे घर भाग गए। कार में पहुंचकर जब मोबाइल स्विच ऑन किया तो देखा बधाईयों वाले मैसेज का अंबार लगा हुआ है। कॉल हिस्ट्री भी मिस्ड कॉल से भरी थी। तब पता चला कि ‘लापता लेडीज’ को ऑस्कर में भारत की तरफ से ऑफिशियल एंट्री मिली है। पहले दो मिनट में हमें एहसास ही नहीं हुआ कि हमारी फिल्म वास्तव में ऑस्कर में भेजने के लिए चुनी गई है’ यह कहना है राइटर स्नेहा देसाई का जो हमसे इतनी खुशी से बात कर रही हैं जैसे उनका जीवन भर का सपना सच हो गया हो। 97वें अकेडमी अवार्ड्स 2025 में फिल्म ‘लापता लेडीज’ भारत का प्रतिनिधित्व करेगी। आमिर खान की एक्स वाइफ किरण राव ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया है, वहीं स्नेहा देसाई इस फिल्म की राइटर हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान स्नेहा देसाई ने ऑस्कर नॉमिनेशन मिलने पर बातचीत की- ‘एमबीए करने के बाद प्लेसमेंट मिला, लेकिन मैंने ड्रामा चुना’ स्नेहा ने बताया, मेरे पिता बिजनेसमैन थे और मां हाउसवाइफ। मार्केटिंग मैनेजमेंट में एमबीए करने के बाद, मुझे कॉलेज के ठीक बाहर बेंगलुरु की एक कंपनी की ओर से ऑन-कैंपस प्लेसमेंट मिला। लेकिन मेरा कॉर्पोरेट में नौकरी करने का कोई इरादा नहीं था। उस समय मैं पहले से ही एक ड्रामा कर रही था। मेरी सगाई भी हो चुकी थी, इसलिए परिवार को भी कोई दिक्कत नहीं थी। इसलिए मैंन प्लेसमेंट लेने से मना कर दिया और थिएटर की ओर रुख करने का फैसला किया। शुरुआत में मैंने गुजराती ड्रामा में एक्टिंग से अपने करियर की शुरू किया था। पहला नाटक लिखा और राज्य पुरस्कार मिला स्नेहा ने बताया, ‘गुजराती थिएटर के साथ काम करने का मतलब है कि महीने में 25 दिन आपको काम करना होता था। लगभग हर दिन एक शो होता था। शादी के बाद जब मेरा बेटा हुआ तो मैं अपने बेटे और घर पर समय ही नहीं दे पाती थी। ये बात मुझे बहुत खलती थी। लेकिन मुझे नाटक भी पसंद थे, इसलिए उससे जुड़े रहने के लिए मैंने लिखना शुरू कर किया। शुरुआत में पेन पेपर के साथ थोड़ा खेला, जो भी मेरे राइटर दोस्ते थे उनसे मिली। अपने विचारों को उनके साथ शेयर किया। बस ऐसे करते-करते मैंने अपना पहला नाटक मीरा लिखा। जिसने महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार भी जीता था। इसके बाद फिर ‘ब्लैक आउट’ और ‘कोडमंत्रा’ ड्रामा लिखे। उन्हें भी काफी पसंद किया गया था। फिर यहीं से मैंने लिखना जारी रखा। सवाल- इससे पहले लिखने का कोई अनुभव था? जवाब- नहीं, बिल्कुल नहीं, इसकी कोई प्लानिंग नहीं थी। मैंने अचानक लिखना शुरू किया था। लोगों को पसंद आने लगा। फिर मैंने टीवी सीरियल भी लिखे। अपने सोचने का दायरा और भी ज्यादा बढ़ाया। फिर एक दिन फिल्म का ऑफर आया। उसमें थोड़ी बहुत एक्टिंग की। ‘जयेशभाई जोरदार’ और ‘महाराज’ जैसी फिल्मों में भी काम किया है। जयेशभाई जोरदार में वंदनाबेन का किरदार और महाराज में करशनदास मूलजी की भाभी का किरदार था।’ आज अगर मैं अपनी लाइफ को देखती हूं तो ये कहना गलत नहीं होगा कि भगवान की प्लानिंग मेरी प्लानिंग से ज्यादा अच्छी थी। सवाल- बॉलीवुड में लेखन की शुरुआत कैसे हुई? जवाब- मैं ये सभी सीरियल लिख रही थी और आमिर खान प्रोडक्शन हाउस से महाराज फिल्म तैयार करने का ऑफर मिला। इस फिल्म से आमिर खान के बेटे जुनैद अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत करने वाले थे। इसी दौरान आमिर ने मुझसे लापता लेडीज की कहानी लिखने के लिए बोला था। वैसे ये स्टोरी बिप्लब गोस्वामी ने लिखी थी और मुझे इसे आज के दौर के हिसाब से लिखने के लिए कहा गया था। महाराज की शूटिंग तो चल ही रही थी इसी बीच मैंने लापता लेडीज की स्टोरी पर काम करना शुरू कर दिया था। हालांकि, महाराज को रिलीज होने में वक्त लग गया और तब तक लापता लेडीज रिलीज हो गई, इसलिए ये मेरी पहली फिल्म हुई। मुझे खुशी है कि मेरी पहली फिल्म ऑस्कर तक पहुंची। सवाल- फिल्म के किरदार के बारे में बताइए? जवाब- फिल्म में ‘मंजूमाई का किरदार काफी अचानक जोड़ा गया था। लोगों को यह किरदार सबसे ज्यादा पसंद भी आया और उस किरदार का पूरा श्रेय किरण मेम को जाता है, क्योंकि मंजुमाई का किरदार कहानी में नहीं था। फूल का किरदार बहुत ही भोली-भाली और नाजुक लड़की का था। जबकि जया का किरदार काफी जीवंत था। इसी बीच सोचा गया कि इन दोनों के बीच एक किरदार ऐसा भी होना चाहिए, जिसे जिंदगी में उतार-चढ़ाव के बारे में ज्यादा पता हो। बस इसलिए मंजुमाई के किरदार की फिल्म में एंट्री कराई गई थी। सवाल- अभिनेता-निर्देशक अनंत महादेवन ने कहा था फिल्म ‘घूंघट के पट खोल’ से चुराई गई थी जवाब- इस मामले पर कमेंट करने की जरूरत नहीं है। हमारे प्रोडक्शन ने भी कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया था, क्योंकि जिसने भी उनकी फिल्म ‘घूंघट के पट खोल’ और ‘लापता लेडीज’ देखी है, उन्हें फर्क समझ आ गया होगा। दोनों फिल्में बिल्कुल अलग हैं। कोई मेल नहीं है। रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी ‘नौका डूबी’ में भी पत्नियों के बदलने की बात है। केवल उस एक बात से पूरी फिल्म नहीं बन जाती है। इसलिए हमने इस मामले पर कोई जवाब देना ठीक नहीं समझा। सवाल- फिल्म मिलने पर कैसा एहसास हुआ? जवाब- उस वक्त आमिर सर ने मुझे स्क्रिप्ट दी और मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तो पहले तो मैं चौंक गई। मुझे इतनी संभावनाओं वाली इतनी अच्छी स्क्रिप्ट मिली, कुछ देर के लिए तो मुझे इस पर विश्वास ही नहीं हुआ। लेकिन फिर जब मैंने फिल्म लिखना शुरू किया तो आमिर सर और किरण मैम का पूरा सपोर्ट मिला। उन लोगों का भी लगातार इनपुट रहता था कि कहानी को कैसे आगे बढ़ाना है। सीन को कैसे नैरेट करना है। सवाल- आमिर खान के अनुभव से कितना फायदा मिलेगा? जवाब- सेट पर लगातार किरण मैम रहती थीं। लेकिन अक्सर कई स्टेज ऐसी आती थीं कि जब हम लोगों को समझ नहीं आता था कि क्या करें? उस समय हम आमिर सर के पास जाते थे और उनसे सुझाव लेते थे। हम जब भी उनके पास जाते थे तो वो हमारी पूरी बात सुनते थे। फिर उसके हिसाब से बताते थे। आमिर सर और किरण मैम के साथ काम करने में बहुत मजा आया। ‘लापता लेडीज’ से बेहतर कोई और ड्रीम डेब्यू नहीं हो सकता। सवाल- सेट पर आपके और आमिर के बीच कैसे रिश्ते थे? जवाब- आमिर सर कई गुजरातियों को जानते हैं। उन्होंने ‘खेलैया’ में बैकस्टेज एक्टिंग की थी। सालों बाद मैंने उसी ड्रामा में नायिका की भूमिका निभाई। तो हम खूब बातें करते थे। वह थिएटर, किसी भी कला, कलाकार का बहुत सम्मान करते हैं। आमिर सर हर चीज के लिए काफी एक्साइडेट रहते हैं, इसलिए वो सेट पर सबसे कुछ न कुछ पूछते रहते हैं। जैसे कि अब ड्रामा में शो कैसा चल रहा है? नाटक की बिक्री कैसी चल रही है? आप कैसे यात्रा करते हैं? वहां लोग कैसे काम करते हैं? वे सब कुछ जानना चाहते हैं। सवाल- नाटक से टीवी सीरियल और फिर फिल्मों में खुद को कैसे ढाला? जवाब- लिखाई में फर्क 100 फीसदी है। तीनों माध्यम में काफी अंतर है। ड्रामा काफी लंबा होता है। सीरियल और फिल्मों में सबकुछ विजुअलाइज होता है, इसलिए आपको केवल डायलॉग पर ही फोकस करना होता है। इसलिए आपको छोटा और मीठा लिखना होता है। सवाल- फिल्म का श्रेय राइटर को कम मिलता है, इस पर आपका क्या मानना है? जवाब- बिल्कुल नहीं, क्योंकि एक्टर को लोग पूरी फिल्म में देखते हैं इसलिए लोग उन्हें जल्दी जान लेते हैं। प्रमोशन के दौरान अगर वह डायरेक्टर के साथ होते हैं तो डायरेक्टर को भी वेटेज मिलता है। लेकिन राइटर स्टेज के पीछे होते हैं इसलिए लोग उन्हें नहीं जानते। लेकिन जब कोई फिल्म बन रही होती है तो सेट पर सबसे ज्यादा सम्मान राइटर को दिया जाता है।