मंदिर खुलने के पहले ही मां का श्रृंगार:मैहर में त्रिकूट पर्वत पर विराजी मां शारदा; रात में पुजारी भी नहीं रुक सकते

मां शक्ति की आराधना के पर्व नवरात्रि का आज यानी मंगलवार को छठवां दिन है। ‘मध्यप्रदेश के देवी मंदिरों के दर्शन’ सीरीज में आज आपको लेकर चलते हैं विंध्य की खूबसूरत वादियों में विराजित मां शारदा के धाम मैहर। यहां त्रिकूट पर्वत पर 600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है मां शारदा का प्रसिद्ध मंदिर। यह ऐतिहासिक मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर मां सती का हार गिरा था इसलिए मईया का हार यानी मैहर के नाम से जाना जाता है। जिला मुख्यालय मैहर से 6 किलोमीटर दूर इस मंदिर की प्रतिमा के बारे में मान्यता है कि ये करीब 1500 साल पुरानी है। इस मंदिर को लेकर श्रद्धा, रहस्य और पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हैं। तो चलिए, सिलसिलेवार बताते हैं कि क्यों इतना खास है ये मंदिर। आस्था: पांच दिन में तीन लाख भक्तों ने दर्शन किए
इस नवरात्रि के दरमियान सिर्फ पांच दिन में ही तीन लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने मां शारदा के दर्शन कर लिए हैं। रोजाना सुबह से लेकर रात शयन तक करीब 17 घंटे मंदिर खुला रहता है यानी एक मोटा हिसाब लगाएं तो प्रति मिनट एक श्रद्धालु माता के दर्शन कर रहा है। मेला कंट्रोल रूम के अनुसार, 9 दिन में 10 लाख से अधिक श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचेंगे। यहां सुरक्षा के लिए पुलिस-प्रशासन ने भी कड़े इंतजाम किए हैं। इस बार मेला परिसर में 12 कार्यपालक मजिस्ट्रेट, दो एडिशनल एसपी, चार डीएसपी, 12 टीआई सहित 650 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात हैं। मंदिर ट्रस्ट की तरफ से वॉलेंटियर्स भी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। 2 ड्रोन कैमरे मेला क्षेत्र पर नजर रख रहे हैं जबकि 200 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। इस बार प्रशासन ने मंदिर में वीआईपी व्यवस्था पर रोक लगा दी है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु दर्शन का लाभ उठा सकें। रहस्य: पट खुलने से पहले ही मां का श्रृंगार
प्रधान पुजारी पवन महाराज बताते हैं, ‘मान्यता है कि चंदेल राजा परमाल के सेनापति दसराज के दो बेटे थे- आल्हा और उदल। दोनों महोबा के वीर योद्धा थे। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की सेना से भी टक्कर ली थी। दोनों ने ही जंगल और पहाड़ों के बीच मां शारदा के इस शक्तिपीठ को खोजा था। दोनों मां शारदा के परम भक्त थे।’ पुजारी कहते हैं, ‘मंदिर के पट जब रात 12 बजे बंद हो जाते हैं तो न सिर्फ श्रद्धालु बल्कि सभी पुजारी भी पर्वत से नीचे उतर जाते हैं। सुबह 5 बजे तक इस पर्वत पर कोई नहीं रुक सकता। यदि किसी ने प्रयास किया तो उसकी मृत्यु हो जाती है। सुबह जब मंदिर के पट खोले जाते हैं तो अक्षत अर्पित रहते हैं और ताजा फूल से माता का श्रृंगार किया मिलता है। ये अब तक रहस्य है कि पूरी रात पर्वत पर किसी के न होने के बाद भी मंदिर के पट खुलने से पहले कौन मां की पूजा करके चला जाता है। मान्यता है कि आल्हा और उदल ही रोजाना यहां पूजा करने आते हैं और पट खुलने से पहले ही मां का श्रृंगार करके लौट जाते हैं।’ पौराणिक मान्यता: यहीं मां सती का हार गिरा
शिव पुराण और देवी पुराण में उल्लेख है कि माता सती, भगवान शिव की पहली पत्नी थीं। वे प्रजापति दक्ष की बेटी थीं। दक्ष, भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। सती के बहुत समझाने और हठ करने के बाद दक्ष ने सती का विवाह शिव से कराया था। दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया लेकिन अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया था। सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गईं लेकिन दक्ष ने उनका अपमान किया। सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया। शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। शिव ने सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर तांडव नृत्य करना शुरू कर दिया। इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए। सती के शरीर के हिस्से 51 स्थानों पर गिरे। ये सभी स्थान शक्तिपीठ बने गए। इन्हीं में मैहर का नाम भी शामिल है, जहां मां सती का हार गिरा। दिलचस्प: जब देवी मैहर वाली तो नाम शारदा क्यों
मान्यता है कि जब आल्हा और उदल ने मंदिर की खोज की तो प्रतिमा को देख दोनों के मन में भक्ति और वैराग्य आ गया। समय बीतने के साथ ये दोनों भाई माता की भक्ति में डूबने लगे। आल्हा ने 12 साल तक देवी को प्रसन्न करने के लिए इसी जगह कठोर तप किया। आल्हा की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया था। आल्हा देवी माता की पूजा करने के दौरान उन्हें शारदा माई कहकर बुलाते थे। तब से इस मंदिर में विराजित प्रतिमा को मां शारदा के नाम से ही जाना गया। परंपरा: 50 साल से जल रही अखंड ज्योति
मां शारदा शक्तिपीठ के पुजारी पंडित पवन महाराज ने बताया कि मंदिर के पीछे गुफा में 50 वर्ष से लगातार अखंड ज्योति जल रही है। इसके दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं के सभी पाप धुल जाते हैं। इसी गुफा में मंदिर के प्रधान पुजारी देवी प्रसाद ने मां शारदा की तपस्या की थी। पंडित पवन महाराज ने कहा कि पूर्व प्रधान पुजारी स्वर्गीय देवी प्रसाद मां शारदा की साधना करने के लिए मंदिर प्रांगण में एक स्थान ढूंढ रहे थे। तभी मां शारदा द्वारा महाराज को स्मरण कराया कि मैहर प्रांगण में छोटी सी गुफा है, जहां बैठकर साधना कर सकते हो। साधना के दौरान मां द्वारा स्मरण कराया गया कि वे एक अखंड ज्योति प्रज्वलित करें। प्रधान पुजारी ने 50 वर्ष पूर्व मां शारदा के नाम से एक अखंड ज्योति प्रज्वलित की थी, जो आज भी जल रही है। मंदिर में भगवान नरसिंह और हनुमान भी विराजमान मंदिर परिसर में भगवान नरसिंह और हनुमान भी विराजमान हैं। मुख्य पुजारी के मुताबिक, हनुमान शारदा माता के पुत्र के रूप में मंदिर में विराजमान हैं। जो यहां की पहरेदारी कर रहे हैं। इसके अलावा नरसिंह भगवान की प्रतिमा भी काफी प्राचीन है। मान्यता है कि मंदिर आने वाले हर श्रद्धालु को माता के दर्शनों के साथ नरसिंह और हनुमानजी का दर्शन करना अनिवार्य होता है। जिनके मंदिर मुख्य गर्भ गृह के परिक्रमा मार्ग में मौजूद हैं। ‘MP के देवी मंदिरों के दर्शन’ सीरीज से जुड़े पिछले पार्ट यहां पढ़ें… पार्ट 1- 800 फीट ऊंचे पर्वत पर विराजी हैं विजयासन देवी:विकराल रूप धर किया था रक्तबीज का संहार; 1401 सीढ़ियां चढ़कर होते हैं मां के दर्शन पार्ट 2- देवास टेकरी यहां माता का शक्तिपीठ नहीं, रक्तपीठ:300 फीट ऊंची चोटी पर बहन के साथ विराजीं तुलजा भवानी; 5 पान के बीड़े का भोग पार्ट 3- विक्रमादित्य ने 12 बार शीश काटकर चढ़ाया:यहां आज भी तंत्र सिद्ध करते हैं तांत्रिक; ऐसा है उज्जैन का 2000 साल पुराना हरसिद्धि मंदिर पार्ट 4- मालवा के भादवा माता मंदिर को आरोग्य तीर्थ की मान्यता:दावा- बावड़ी के जल से लकवा, मिर्गी जैसे रोग ठीक हो जाते हैं पार्ट 5-दतिया में राजसत्ता की देवी माता पीतांबरा:पीएम-सीएम से लेकर जज, उद्योगपति भी फरियाद लेकर पहुंचते हैं