आज नवरात्रि की अष्टमी और नवमी, दोनों तिथियां हैं। इस कारण देवी की विशेष पूजा, हवन, कन्या भोज और जागरण होगा। कुछ जगहों पर आज ही महागौरी और सिद्धिदात्री, दोनों देवियों का पूजन किया जाएगा। देवी विसर्जन और दशहरा 12 अक्टूबर को होगा। अष्टमी पर देवी चामुंडा रूप में प्रकट हुई थीं और नवमी को महारूप में देवताओं को दर्शन दिए थे, इसलिए ये तिथियां खास मानी जाती हैं। इन तिथियों पर शक्तिपीठों में देवी की महापूजा और श्रंगार होता है। कन्या पूजन भी किया जाता है। देवी शक्तिपीठों में नवरात्रि की अष्टमी और नवमी पर देवी की महापूजा होती है। देवी का अभिषेक होता है। फूलों और सौभाग्य सामग्रियों से देवी का अर्चन किया जाता है। इन तिथियों पर चंडी पाठ और हवन होता है। तंत्र शक्तिपीठों पर बलि दी जाती है। त्रेतायुग में राम ने और द्वापर में युधिष्ठिर ने की थी दुर्गाष्टमी पर शक्ति पूजा
नवरात्रि की अष्टमी पर देवी की विशेष पूजा की परंपरा है। ये त्रेतायुग से चली आ रही है, जब श्रीराम ने रावण पर जीत के लिए शक्ति आराधना की। इसके बाद द्वापर युग में भी श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को शरद ऋतु की अष्टमी (दुर्गाष्टमी) पर देवी पूजन की विधि बताई। देवी पुराण के मुताबिक अष्टमी पर देवी और भैरव प्रकट हुए थे। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को दुर्गाष्टमी के बारे में बताते हुए कहा कि हर युग में इस तिथि पर देवी पूजा हुई है। अष्टमी पर देवी को कई रूपों में पूजा जाता है। इस दिन महापूजा और कन्या पूजन करने का भी विधान है। इसके बाद पूरी रात जागरण कर देवी भजन और कीर्तन करने चाहिए। देवीभागवत और मार्कंडेय पुराण के अनुसार इन तिथियों में संधि पूजा होती है। इस विशेष पूजा में देवी का श्रंगार और सिद्ध मंत्रों से हवन होता है। पूजा के बाद महाआरती और महाप्रसाद बांटा जाता है। ——————————- देवी के रूपों से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए… देवी की दस रूप: शिव ने सती को दक्ष यज्ञ में जाने से रोका तो देवी के क्रोध से प्रकट हुईं दस देवियां, इन्हें कहते हैं महाविद्याएं सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ आयोजित किया। जिसमें शिव और सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को बुलाया। फिर भी सती ने यज्ञ में शामिल होने का फैसला किया, लेकिन शिव ने उन्हें रोका। इससे सती को भयंकर गुस्सा आया। उनके गुस्से से ही दस तरह की देवियां प्रकट हुईं। जिन्हें दस महाविद्याएं कहते हैं। इनके नाम और महत्व जानने के लिए (पूरी खबर यहां पढ़ें)
नवरात्रि की अष्टमी पर देवी की विशेष पूजा की परंपरा है। ये त्रेतायुग से चली आ रही है, जब श्रीराम ने रावण पर जीत के लिए शक्ति आराधना की। इसके बाद द्वापर युग में भी श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को शरद ऋतु की अष्टमी (दुर्गाष्टमी) पर देवी पूजन की विधि बताई। देवी पुराण के मुताबिक अष्टमी पर देवी और भैरव प्रकट हुए थे। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को दुर्गाष्टमी के बारे में बताते हुए कहा कि हर युग में इस तिथि पर देवी पूजा हुई है। अष्टमी पर देवी को कई रूपों में पूजा जाता है। इस दिन महापूजा और कन्या पूजन करने का भी विधान है। इसके बाद पूरी रात जागरण कर देवी भजन और कीर्तन करने चाहिए। देवीभागवत और मार्कंडेय पुराण के अनुसार इन तिथियों में संधि पूजा होती है। इस विशेष पूजा में देवी का श्रंगार और सिद्ध मंत्रों से हवन होता है। पूजा के बाद महाआरती और महाप्रसाद बांटा जाता है। ——————————- देवी के रूपों से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए… देवी की दस रूप: शिव ने सती को दक्ष यज्ञ में जाने से रोका तो देवी के क्रोध से प्रकट हुईं दस देवियां, इन्हें कहते हैं महाविद्याएं सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ आयोजित किया। जिसमें शिव और सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को बुलाया। फिर भी सती ने यज्ञ में शामिल होने का फैसला किया, लेकिन शिव ने उन्हें रोका। इससे सती को भयंकर गुस्सा आया। उनके गुस्से से ही दस तरह की देवियां प्रकट हुईं। जिन्हें दस महाविद्याएं कहते हैं। इनके नाम और महत्व जानने के लिए (पूरी खबर यहां पढ़ें)