जापान के निहोन हिदांक्यो संगठन को मिला नोबेल पीस प्राइज:​​​​​​​दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त बनाने की कोशिश के लिए मिला सम्मान

जापान के संगठन निहोन हिदांक्यो को इस साल शांति के लिए नोबेल प्राइज से नवाजा गया है। उन्हें यह सम्मान दुनिया में परमाणु हथियारों के खिलाफ मुहीम चलाने के लिए दिया गया है। इस संगठन में वे लोग शामिल हैं जो दूसरे विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए एटमी हमले में जीवित बचे थे। इन्हें हिबाकुशा कहा जाता है। नोबेल कमेटी ने कहा कि एक दिन परमाणु हमले को झेलने वाले ये लोग हमारे पास नहीं रहेंगे, लेकिन जापान की नई पीढ़ी उनकी याद और अनुभवों को दुनिया के साथ साझा करती रहेगी और उन्हें याद दिलाती रहेगी कि परमाणु हथियार दुनिया के लिए कितने खतरनाक हैं। ईरान की जेल में बंद नरगिस को मिला था नोबेल 2023 में ईरान की महिला पत्रकार और एक्टिविस्ट नरगिस मोहम्मदी को नोबेल पीस प्राइज से सम्मानित किया गया था। उन्हें यह प्राइज महिलाओं की आजादी और उनके हक के लिए लड़ने पर मिला था। नोबेल कमेटी ने पीस प्राइज की घोषणा ईरान की महिलाओं के नारे जन-जिंदगी-आजादी के साथ की थी। 51 साल की नरगिस ईरान की एवान जेल में कैद हैं। उन्हें अब तक 13 बार गिरफ्तार किया जा चुका है। आखिरी गिरफ्तारी के बाद नरगिस को 31 साल की जेल और 154 कोड़ों की सजा सुनाई गई थी। जून 2023 में न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में नरगिस ने कहा था कि उन्होंने 8 साल से अपने बच्चों को नहीं देखा है। उन्होंने आखिरी बार अपनी जुड़वा बेटियों अली और कियाना की आवाज 2022 में सुनी थी। अब तक 112 लोगों को मिला शांति का नोबेल नोबेल पीस प्राइज की शुरुआत 1901 में हुई थी। अब तक यह सम्मान 112 लोग और 30 संस्थाओं को मिला है। महात्मा गांधी को 5 बार नॉमिनेट किए जाने के बाद भी नोबेल पीस प्राइज नहीं दिया गया। इस पर कई बार सवाल उठ चुके हैं। 1937 में नोबेल प्राइज कमेटी के एडवाइजर रहे जेकब वॉर्म-मुलर ने कहा था- गांधी एक स्वतंत्रता सेनानी, आदर्शवादी, राष्ट्रवादी और तानाशाह हैं। वो कभी एक मसीहा लगते हैं, लेकिन फिर अचानक एक आम नेता बन जाते हैं। वो हमेशा शांति के पक्ष लेने वालों में नहीं रहे। उन्हें पता होना चाहिए था कि अंग्रेजों के खिलाफ उनके कुछ अहिंसक अभियान हिंसा और आतंक में बदल जाएंगे। जेकब की इस रिपोर्ट के बाद कमेटी ने महात्मा गांधी को शांति के लिए नोबेल प्राइज नहीं देने का फैसला किया। ये इकलौता मौका नहीं था, इसके बाद भी 4 बार 1938, 1939, 1947 और 1948 में गांधी को नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया था। हालांकि, हर बार उनका नाम हटा दिया गया। 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन की वजह से गांधी को नहीं मिला नोबेल 1939 के 8 साल बाद जब देश आजाद हुआ तो एक बार फिर गांधी को नोबेल देने की मांग उठी। 1947 में गांधी को 3 लोगों ने मिलकर फिर से नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया। उस नोबेल प्राइज कमेटी ने इस सम्मान के लिए 6 लोगों को शॉर्टलिस्ट किया था, जिसमें गांधी का भी नाम था। हालांकि, उस वक्त नोबेल कमेटी के एडवाइजर रहे जेन्स आरुप सेइप की रिपोर्ट में गांधी की सराहना थी, लेकिन उन्हें पूरी तरह से इस सम्मान का हकदार नहीं बताया गया। इसकी एक बड़ी वजह थी भारत-पाकिस्तान विभाजन। नोबेल कमेटी में मौजूद 5 में से 3 मेंबर इस बात के पक्ष में थे कि बंटवारे और दंगों के बीच गांधी को यह अवॉर्ड नहीं दिया जा सकता। विभाजन के वक्त देशभर में घूम-घूम कर दंगे रोकने की अपील कर रहे गांधी एक बार फिर नोबेल से चूक गए। 1947 का नोबेल प्राइज क्वेकर संस्था को दिया गया। नोबेल नॉमिनेशन की आखिरी तारीख से 2 दिन पहले हुई बापू की हत्या 1948 में गांधी को कुल 6 लोगों ने नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया। कमेटी के एडवाइजर और मेंबर्स गांधी को नोबेल प्राइज देने के पक्ष में नजर आ रहे थे। लेकिन अवॉर्ड के लिए नॉमिनेशन की आखिरी तारीख से 2 दिन पहले महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। अब सवाल था कि अगर उन्हें मरणोपरांत यह सम्मान दिया भी जाए, तो प्राइज में मिलने वाले पैसे किसके पास जाएंगे? दरअसल, गांधी किसी ऑर्गनाइजेशन के लिए काम नहीं करते थे और न ही उन्होंने अपना कोई वारिस घोषित किया था। ऐसे में नोबेल प्राइज कमेटी ने अपने एडवाइजर की सलाह पर 1948 में किसी को भी शांति के लिए यह पुरस्कार नहीं देने का फैसला किया। नोबेल प्राइज की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, कमेटी ने तब कहा था कि इस साल कोई भी जीवित व्यक्ति इस सम्मान के काबिल नहीं है। ऐसी 3 शख्सियत, जिन्होंने गांधी के नक्श-ए-कदम पर चलकर जीता नोबेल नोबेल प्राइज कमेटी ने महात्मा गांधी को कभी यह सम्मान नहीं दिया, लेकिन ऐसे एक नहीं बल्कि 3 लोग हैं, जिन्होंने महात्मा गांधी को अपनी प्रेरणा मानते हुए काम किया और बाद में उन्हें नोबेल प्राइज भी मिला… नेल्सन मंडेला: गांधी मेरे लिए रोल मॉडल इस कड़ी में सबसे पहला नाम आता है साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपिता नेल्सन मंडेला का। इन्हें 1993 में साउथ अफ्रीका से रंगभेद मिटाने में उनके योगदान के लिए नोबेल पीस प्राइज से सम्मानित किया गया था। नेल्सन मंडेला गांधी की विचारधारा से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वो गांधी को अपना रोल मॉडल मानते थे। मंडेला ने एक बार अपने भाषण में कहा था- महात्मा गांधी ने गरीबों के प्रति प्रेम, सादगी और नैतिकता के लिए जो स्टैंडर्ड सेट किया है, मैं वहां तक कभी नहीं पहुंच सकता। गांधी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी कोई कमजोरी नहीं थी, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर: गांधी ने अहिंसा की अहमियत समझाई अमेरिकन एक्टिविस्ट मार्टिन लूथर किंग जूनियर को 1964 में नोबेल पीस प्राइज दिया गया था। तब वो ये सम्मान पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। उन्हें नागरिक अधिकार आंदोलन का नेतृत्व करने और अहिंसा के जरिए नस्लीय भेदभाव खत्म करने के लिए की गई कोशिशों के लिए नोबेल प्राइज दिया गया था। मार्टिन लूथर 1959 में भारत दौरे पर आए थे। तब उन्होंने गांधी के बेटों से मुलाकात की थी। बाद में मार्टिन ने लिखा था- गांधी जी मेरे लिए मार्गदर्शक रहे हैं। गांधीजी के जरिए ही मार्टिन को यह एहसास हुआ था कि अहिंसा आजादी की लड़ाई में एक शक्तिशाली हथियार है। दलाई लामा: मेरा नोबेल गांधी को श्रद्धांजलि तिब्बत के 14वें दलाई लामा को 1989 में नोबेल पीस प्राइज से सम्मानित किया गया था। उन्हें यह सम्मान तिब्बत के इतिहास और कल्चर की रक्षा के लिए संघर्ष करने और इसका शांतिपूर्ण समाधान ढूंढने की कोशिश करने के लिए मिला था। पुरस्कार जीतने के बाद दलाई लामा ने कहा था- यह सम्मान महात्मा गांधी को मेरी श्रद्धांजलि है। वे एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने बदलाव के लिए अहिंसा का मार्ग सुझाया। उनका जीवन मुझे बहुत कुछ सिखाता और प्रेरणा देता है। दलाई लामा ने एक बार कहा था- मेरे लिए गांधी जी एक प्रेरणा हैं। वे एक आदर्श राजनेता हैं, जिन्होंने परोपकार की भावना में अपने विश्वास को सभी व्यक्तिगत विचारों से ऊपर रखा। दलाई लामा के मुताबिक- आज दुनिया को अहिंसा पर गांधी के विचारों और उनकी सीख की जरूरत है। मैं हमेशा खुद को गांधीजी का फॉलोअर मानता हूं। अगर आज मुझे उनसे मिलना का मौका मिले, तो मैं सबसे पहले उनके पैर छूकर आशीर्वाद लूंगा। ————————————————– नोबेल प्राइज 2024 से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें… साउथ कोरिया की हान कांग को साहित्य का नोबेल:इंसानी जीवन के बिखराव और ट्रॉमा को कहानियों में पिरोने के लिए मिला सम्मान साउथ कोरिया की हान कांग को साहित्य के नोबेल प्राइज मिला। उन्हें जीवन की मार्मिक कहानियों को खूबसूरत अंदाज में पेश करने के लिए सम्मान मिला है। हान कांग ने 1993 में अपने करियर की शुरुआत कविताएं लिखने के साथ की थी। 1995 में उन्होंने कहानियां लिखना शुरू कर दिया था। पूरी खबर पढ़ें… AI के गॉडफादर और अमेरिकी वैज्ञानिक को फिजिक्स का नोबेल:मशीनों में सोचने की समझ पैदा करने के लिए मिला सम्मान फिजिक्स में 2024 का नोबेल प्राइज AI के गॉडफादर कहे जाने वाले जैफ्री ई. हिंटन और अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन जे. होपफील्ड को मिला है। उन्हें मशीन लर्निंग से जुड़ी नई तकनीकों के विकास के लिए ये सम्मान दिया गया है जो आर्टिफिशियल न्यूरॉन्स पर आधारित है। इससे मशीनों को इंसानी दिमाग की तरह सोचना और समझना सिखाया जाता है। पूरी खबर यहां पढ़ें… मेडिसिन का नोबेल दो अमेरिकी वैज्ञानिकों को:माइक्रो RNA की खोज के लिए मिला सम्मान, ये कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियों की पहचान में मददगार नोबेल प्राइज 2024 के लिए विजेताओं की घोषणा सोमवार, 7 अक्टूबर से शुरू हुई। पहले दिन मेडिसिन या फिजियोलॉजी के क्षेत्र में नोबेल प्राइज की घोषणा की हुई। 2024 के मेडिसिन का नोबेल प्राइज विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन को मिला है। उन्हें ये प्राइज माइक्रो RNA (राइबोन्यूक्लिक एसिड) की खोज के लिए दिया गया है। पूरी खबर यहां पढ़ें…