आज देव दीपावली है। हिंदू कैलेंडर के हिसाब से कार्तिक महीने की पूर्णिमा 15 नवंबर को सुबह करीब साढ़े 6 बजे शुरू होगी और रात 3 बजे तक रहेगी। ये त्योहार लक्ष्मी पूजा के 15 दिनों बाद मनाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस को मारा था। इस खुशी में देवताओं ने स्वर्ग में दीपक जलाए, इसलिए इस दिन को देव दिवाली मनाने की परंपरा शुरू हुई। त्रिपुरासुर राक्षस यानी तीन पुरों का राक्षस। इसे हम व्यवहारिक तौर पर शरीर के तीन दोष वात, पित्त और कफ के रूप में देख सकते हैं। साथ ही तीन काल, भूत, भविष्य और वर्तमान के रूप में भी इसे समझ सकते हैं। इनसे हमारी रक्षा भगवान शंकर ही करते हैं, इसलिए भगवान शिव मंदिर, घर में, उनकी जटा से निकली गंगा के तट पर दीपक जलाते हैं। गृहस्थ लोगों के लिए शिव पूजा का विशेष महत्व होता हैं, क्योंकि शिवजी का भी संतान, बहु सहित पूरे परिवार का जिक्र है। वैसे भी हमारे सनातन में शुक्ल पक्ष और उजाले में ही हर मुहूर्त को शुभ माना जाता है, इसलिए कार्तिक पूर्णिमा पर शिव पूजा और दीपदान का महत्व बताया गया है। ग्रंथों में ये पूर्णिमा हर तरह के दोष का नाश करने वाली बताई गई है। इस तिथि पर शाम को प्रदोष काल में तिल के तेल के दीपक लगाने का विधान ग्रंथों में मिलता है। प्रदोष काल यानी दिन खत्म होने और रात शुरू होने के पहले का वक्त। इसे शिवजी का समय ही कहा जाता है। ये काल शिव को विशेष प्रिय होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रदोष काल में शिवजी रजत भवन में नृत्य करते हैं, इसलिए इस समय शिव पूजा को बेहद खास माना जाता है। देवताओं की दीपावली पर पूजन,अर्चन और 11, 21, 31,51 या 101 दीपक जलाकर ये त्योहार मना सकते हैं।