6 दिसंबर, शुक्रवार यानी आज अगहन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी है। ग्रंथों के मुताबिक इस तिथि पर श्रीराम-सीता का विवाह हुआ था, इसलिए इसे विवाह पंचमी कहते हैं। मान्यता है कि इसी दिन तुलसीदास जी ने रामचरिमानस लिखने का काम पूरा किया था, इसलिए राम-सीता की पूजा के साथ रामचरितमानस और रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी होती है। ब्रह्माजी ने लिखी थी विवाह की लग्न पत्रिका
श्री रामचरितमानस के अनुसार अगहन शुक्ल पंचमी को भगवान राम और जानकी का विवाह हुआ था। स्वयंबर में धनुष तोड़ने के बाद विवाह की सूचना मिलते ही राजा दशरथ, भरत, शत्रुघ्न व अपने मंत्रियों के साथ जनकपुरी आ गए। ग्रह, तिथि, नक्षत्र योग आदि देखकर ब्रह्माजी ने उस पर विचार कर लग्न पत्रिका बनाकर नारदजी के हाथों राजा जनक को पहुंचाई। शुभ मुहूर्त में श्रीराम की बारात आई और विवाह संपन्न हुआ। विवाह पंचमी पर होती है विशेष पूजा
नेपाल के जनकपुर में मौजूद जानकी मंदिर भक्तों के बीच काफी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इसी जगह राजा जनक ने शिव-धनुष के लिए तप किया था। यहां धनुषा नाम से विवाह मंडप भी है। इसी में अगहन महीने की पंचमी पर राम-जानकी का विवाह किया जाता है। जनकपुरी से 14 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में धनुषा नाम की जगह है। मान्यता है कि श्रीराम ने इसी जगह पर शिव धनुष तोड़ा था। पूजा की विधि
इस पर्व पर सूर्योदय के पहले उठकर तीर्थ स्नान या पानी में गंगाजल मिलाकर नहाना चाहिए। फिर नए वस्त्र पहनकर पूजा की चौकी तैयार करें। इस पर कपड़ा बिछाकर पूजा की सामग्री रखें। फिर राम-सीता की मूर्तियां स्थापित कर उन्हें दूल्हे और दुल्हन की तरह तैयार करें। इसके बाद फल, फूल व अन्य पूजा सामग्री के साथ दोनों देवताओं की पूजा अराधना करें। घर में पूजा नहीं कर सकते तो मंदिर में जाकर भी कर सकते हैं। इस दिन रामायण के बालकांड में भगवान राम और सीताजी के विवाह प्रसंग का पाठ करना शुभ होता है। रामचरितमानस का पाठ करने से पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही परिवार में सदैव सामंजस्य और खुशी का माहौल बना रहता है। इसके अलावा रात में भगवान राम और सीता के भजन करना भी बहुत शुभ होता है। इस दिन व्रत रखने की परंपरा
मान्यता है कि इस दिन श्रीराम-सीता की पूजा कर के उनका विवाह करवाना चाहिए। साथ ही व्रत रखना चाहिए। ग्रंथों के मुताबिक ऐसा करने से कई गुना पुण्य मिलता है। मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शादी में आ रही अड़चनें दूर होती हैं और अच्छा जीवनसाथी भी मिलता है।
श्री रामचरितमानस के अनुसार अगहन शुक्ल पंचमी को भगवान राम और जानकी का विवाह हुआ था। स्वयंबर में धनुष तोड़ने के बाद विवाह की सूचना मिलते ही राजा दशरथ, भरत, शत्रुघ्न व अपने मंत्रियों के साथ जनकपुरी आ गए। ग्रह, तिथि, नक्षत्र योग आदि देखकर ब्रह्माजी ने उस पर विचार कर लग्न पत्रिका बनाकर नारदजी के हाथों राजा जनक को पहुंचाई। शुभ मुहूर्त में श्रीराम की बारात आई और विवाह संपन्न हुआ। विवाह पंचमी पर होती है विशेष पूजा
नेपाल के जनकपुर में मौजूद जानकी मंदिर भक्तों के बीच काफी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इसी जगह राजा जनक ने शिव-धनुष के लिए तप किया था। यहां धनुषा नाम से विवाह मंडप भी है। इसी में अगहन महीने की पंचमी पर राम-जानकी का विवाह किया जाता है। जनकपुरी से 14 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में धनुषा नाम की जगह है। मान्यता है कि श्रीराम ने इसी जगह पर शिव धनुष तोड़ा था। पूजा की विधि
इस पर्व पर सूर्योदय के पहले उठकर तीर्थ स्नान या पानी में गंगाजल मिलाकर नहाना चाहिए। फिर नए वस्त्र पहनकर पूजा की चौकी तैयार करें। इस पर कपड़ा बिछाकर पूजा की सामग्री रखें। फिर राम-सीता की मूर्तियां स्थापित कर उन्हें दूल्हे और दुल्हन की तरह तैयार करें। इसके बाद फल, फूल व अन्य पूजा सामग्री के साथ दोनों देवताओं की पूजा अराधना करें। घर में पूजा नहीं कर सकते तो मंदिर में जाकर भी कर सकते हैं। इस दिन रामायण के बालकांड में भगवान राम और सीताजी के विवाह प्रसंग का पाठ करना शुभ होता है। रामचरितमानस का पाठ करने से पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही परिवार में सदैव सामंजस्य और खुशी का माहौल बना रहता है। इसके अलावा रात में भगवान राम और सीता के भजन करना भी बहुत शुभ होता है। इस दिन व्रत रखने की परंपरा
मान्यता है कि इस दिन श्रीराम-सीता की पूजा कर के उनका विवाह करवाना चाहिए। साथ ही व्रत रखना चाहिए। ग्रंथों के मुताबिक ऐसा करने से कई गुना पुण्य मिलता है। मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शादी में आ रही अड़चनें दूर होती हैं और अच्छा जीवनसाथी भी मिलता है।