मंदिर-मस्जिद विवाद- RSS प्रमुख और उसके मुखपत्र की राय अलग:लिखा- यह सभ्यता की लड़ाई: भागवत बोले थे- हर जगह ऐसे विवाद निकालना सही नहीं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने हालिया मंदिर-मस्जिद विवादों पर RSS प्रमुख मोहन भागवत से अलग राय रखी है। पत्रिका ने अपने ताजा अंक में इसे ऐतिहासिक सच जानने और सभ्यता के लिए न्याय की लड़ाई कहा है। मोहन भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में कहा था कि राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नई जगहों पर इस तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है? भारत को दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं। धार्मिक वर्चस्व नहीं सभ्यतागत न्याय की तलाश की लड़ाई
ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने संपादकीय में लिखा है कि सोमनाथ से लेकर संभल और उससे आगे का ऐतिहासिक सत्य जानने की यह लड़ाई धार्मिक वर्चस्व के बारे में नहीं है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि करने और सभ्यतागत न्याय की तलाश करने की लड़ाई है। उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर की जामा मस्जिद में श्री हरिहर मंदिर के सर्वे से शुरू हुए विवाद ने संवैधानिक अधिकारों पर एक नई बहस को जन्म दिया है। हमें धर्मनिरपेक्षता की झूठी बहस के बजाय समाज के सभी वर्गों को शामिल करते हुए सभ्यतागत न्याय की खोज करने की जरूरत है। कांग्रेस के षड्यंत्र ने मुगल सम्राट बाबर और औरंगजेब जैसे कट्टर शासकों की बड़ी छवि पेश की। इससे भारतीय मुसलमानों में गलत धारणा बनी कि वे अंग्रेजों से पहले यहां के शासक थे। भारत के मुसलमानों को यह समझना चाहिए कि वे शासक नहीं बर्बर इस्लामी आक्रमणों के प्रतीक हैं। भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिंदुओं के विभिन्न संप्रदायों से हैं इसलिए उन्हें अपनी विचारधारा बदलनी चाहिए। भारतीय मुसलमान अतीत के आक्रमणकारियों से अलग
पत्रिका ने कांग्रेस पर चुनावी लाभ के लिए जातियों का शोषण करने का आरोप लगाया। केतकर लिखते हैं कि कांग्रेस ने जातियों को सामाजिक न्याय दिलाने में देरी की। जबकि अंबेडकर जाति-आधारित भेदभाव के मूल कारण तक गए और इसे दूर करने के लिए संवैधानिक व्यवस्था की। इस्लामिक आधार पर देश विभाजन के बाद कांग्रेस और कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने आक्रमणकारियों के पाप छुपाने की कोशिश की। उसने इतिहास की सच्चाई बताकर और सामंजस्यपूर्ण भविष्य के लिए वर्तमान को फिर से स्थापित करके सभ्यतागत न्याय की कोशिश नहीं की। अब हमें धार्मिक कटुता को खत्म करने के लिए इस तरह के नजरिए की जरूरत है। इतिहास की सच्चाई स्वीकारने और भारतीय मुसलमानों को अतीत के आक्रमणकारियों से अलग देखने से शांति और सद्भाव की उम्मीद है। कई धर्माचार्य भी भागवत का विरोध कर चुके हैं… रामभद्राचार्य बोले- भागवत संघ के संचालक, हमारे नहीं जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने RSS प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने 23 दिसंबर को न्यूज एजेंसी PTI से बातचीत में कहा था कि संघ प्रमुख ने अच्छा नहीं कहा। संघ भी हिंदुत्व के आधार पर बना है। जहां-जहां मंदिर या मंदिर के अवशेष मिल रहे हैं, उन्हें हम लेंगे। वे (मोहन भागवत) संघ प्रमुख हैं, हम धर्माचार्य हैं। हमारा क्षेत्र अलग है, उनका अलग। वे संघ के सरसंघचालक हैं, हमारे नहीं। राम मंदिर पर बयान देना दुर्भाग्यपूर्ण है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भी उठाए सवाल ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने संघ प्रमुख पर राजनीतिक सुविधा के अनुसार बयान देने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था- जब सत्ता हासिल करनी थी, तब वे मंदिर-मंदिर करते थे। अब सत्ता मिल गई तो मंदिर नहीं ढूंढने की नसीहत दे रहे हैं। अगर हिंदू समाज अपने मंदिरों का पुनरुद्धार कर उन्हें पुनः संरक्षित करना चाहता है तो इसमें गलत क्या है। धर्म पर धार्मिक गुरु फैसले लें- जितेंद्रानंद सरस्वती अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने भी 23 दिसंबर को टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा था कि जब धर्म का मुद्दा उठता है तो धार्मिक गुरुओं को फैसला लेना होता है और वे जो भी फैसला लेंगे, उसे संघ और विहिप स्वीकार करेंगे। पिछले 10 दिनों में भागवत के 3 बड़े बयान 22 दिसंबर: धर्म का अधूरा ज्ञान अधर्म करवाता है, गलत समझ के कारण अत्याचार हुए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि धर्म को समझना बहुत कठिन है। धर्म के नाम पर होने वाले सभी उत्पीड़न और अत्याचार गलतफहमी और धर्म की समझ की कमी के कारण हुए। धर्म महत्वपूर्ण है, इसकी सही शिक्षा दी जानी चाहिए। धर्म का अनुचित और अधूरा ज्ञान अधर्म की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि धर्म सत्य का आधार है, इसलिए धर्म की रक्षा जरूरी है। संप्रदाय कभी लड़ना नहीं सिखाता, वह समाज को जोड़ता है। पूरी खबर पढ़ें… 19 दिसंबर : पुणे में कहा- देश संविधान के अनुसार चलता है भागवत ने कहा था- बाहर से आए कुछ समूह अपने साथ कट्टरता लेकर आए। वे चाहते हैं कि उनका पुराना शासन वापस आए, लेकिन अब देश संविधान के अनुसार चलता है। इस व्यवस्था में लोग अपने प्रतिनिधि चुनते हैं, जो सरकार चलाते हैं। इसी दिन राम मंदिर पर बोलते हुए उन्होंने कहा था कि मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों लगता हैं कि वे ऐसे मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन जाएंगे। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं। पूरी खबर पढ़ें… 16 दिसंबर : अहंकार दूर रखें, नहीं तो गड्ढे में गिरेंगे व्यक्ति को अहंकार से दूर रहना चाहिए नहीं तो वह गड्ढे में गिर सकता है। देश के विकास के लिए समाज के सभी वर्गों को मजबूत बनाना जरूरी है। हर व्यक्ति में एक सर्वशक्तिमान ईश्वर होता है, जो समाज की सेवा करने की प्रेरणा देता है, लेकिन अहंकार भी होता है। राष्ट्र की प्रगति केवल सेवा तक सीमित नहीं है। पूरी खबर पढ़ें… ————————————————— धार्मिक विवाद से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम… भजन पर हंगामा, गायिका को माफी मांगनी पड़ी बिहार के पटना में 26 दिसंबर को अटल जयंती समारोह में महात्मा गांधी के भजन रघुपति राघव राज राम…को लेकर हंगामा हो गया। भजन गायिका देवी को माफी मांगनी पड़ी। जय श्रीराम के नारे लगाने पड़े, तब जाकर मामला शांत हुआ और कार्यक्रम दोबारा शुरू हुआ। पूरी खबर पढ़ें…