बुलेट की स्पीड से तेज दो-स्पेसक्राफ्ट स्पेस में जोड़ेगा इसरो:रात 9.58 बजे स्पेडएक्स मिशन की लॉन्चिंग, चांद से सैंपल लाने की कामयाबी इस पर निर्भर

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) स्पेडएक्स मिशन की लॉन्चिंग के लिए तैयार है। इस मिशन में अंतरिक्ष में बुलेट की स्पीड से दस गुना ज्यादा तेजी से ट्रैवल कर रहे दो स्पेसक्राफ्ट को मिलाया जाएगा। मिशन सफल रहा तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। इस मिशन की कामयाबी पर ही चंद्रयान-4 मिशन निर्भर है, जिसमें चंद्रमा की मिट्टी के सैंपल पृथ्वी पर लाए जाएंगे। कॉस्ट इफेक्टिव टेक्नोलॉजी डेमोंसट्रेटर मिशन स्पेडएक्स को 30 दिसंबर को श्रीहरिकोटा से रात 9.58 बजे पीएसएलवी-सी60 रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। इसरो के यूट्यूब चैनल पर इसकी लाइव स्ट्रीमिंग होगी। स्पेडेक्स मिशन ऑब्जेक्टिव: डॉकिंग और अनडॉकिंग टेक्नोलॉजी दुनिया को दिखाना स्पेडएक्स मिशन प्रोसेस: PSLV रॉकेट से लॉन्च, फिर 470 किमी ऊपर डॉकिंग मिशन में दो छोटे स्पेसक्राफ्ट टारगेट और चेजर शामिल है। इन्हें PSLV-C60 रॉकेट से 470 किमी की ऊंचाई पर अलग कक्षाओं में लॉन्च किया जाएगा। स्पेसक्राफ्ट की रफ्तार करीब 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे होगी। ये रफ्तार कॉमर्शियल एयरक्राफ्ट की रफ्तार से 36 गुना और बुलेट की स्पीड से 10 गुना ज्यादा है। डिप्लॉयमेंट के बाद, टारगेट और चेज़र स्पेसक्राफ्ट फार-रेंज रेंडेजवस फेज शुरू करेंगे। इस फेज में, दोनों स्पेसक्राफ्ट के बीच सीधा कम्युनिकेशन लिंक नहीं होगा। स्पेसक्राफ्ट को जमीन से गाइड किया जाएगा। स्पेसक्राफ्ट करीब आते जाएंगे। 5 किमी से 0.25 किमी के बीच की दूरी तय करते समय लेजर रेंज फाइंडर का उपयोग करेगा। 300 मीटर से 1 मीटर की रेंज के लिए डॉकिंग कैमरे का इस्तेमाल होगा। वहीं 1 मीटर से 0 मीटर तक की दूरी पर विजुअल कैमरा उपयोग में आएगा जिससे रियल टाइम इमेज मिलेगी। सक्सेसफुल डॉकिंग के बाद, दोनों स्पेसक्राफ्ट के बीच इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर को डेमोन्सट्रेट किया जाएगा। फिर स्पेसक्राफ्ट्स की अनडॉकिंग होगी और ये दोनों अपने-अपने पेलोड के ऑपरेशन को शुरू करेंगे। करीब दो साल तक ये इससे वैल्यूएबल डेटा मिलता रहेगा। स्पेसक्राफ्ट A में कैमरा और स्पेसक्राफ्ट B में दो पेलोड डॉकिंग एक्सपेरिमेंट्स के बाद स्टैंडअलोन मिशन फेज के लिए, स्पेसक्राफ्ट A में हाई रिज़ॉल्यूशन कैमरा (HRC) है और स्पेसक्राफ्ट B में दो पेलोड हैं। मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल (MMX) पेलोड और रेडिएशन मॉनिटर (RadMon)। ये पेलोड हाई रिज़ॉल्यूशन इमेजेज, नेचुरल रिसोर्स मॉनिटरिंग, ​​वेजिटेशन स्टडीज और ऑनऑर्बिट रेडिएशन एनवॉयर्नमेंट मेजरमेंट प्रोवाइड करेंगे जिनके कई एप्लीकेशन्स हैं। मिशन क्यों जरूरी: चंद्रयान-4 जैसे मिशन्स की सफलता इसी पर निर्भर भारत ने अपने डॉकिंग मैकेनिज्म पर पेटेंट लिया इस डॉकिंग मैकेनिज्म को ‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ नाम दिया गया है। इसरो ने इस डॉकिंग सिस्टम पर पेटेंट भी ले लिया है। भारत को अपना खुद का डॉकिंग मैकेनिज्म डेवलप करना पड़ा क्योंकि कोई भी स्पेस एजेंसी इस बेहद कॉम्प्लेक्स प्रोसेस की बारीकियों को शेयर नहीं करती है। एक्सपेरिमेंट के लिए 24 पेलोड भी मिशन में भेजे जा रहे माइक्रोग्रेविटी में एक्सपेरिमेंट के लिए इस मिशन में 24 पेलोड भी भेजे जा रहे हैं। ये पेलोड पीएसएलवी रॉकेट की चौथी स्टेज में होंगे जिसे POEM (पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल) कहा जाता है। 14 पेलोड इसरो से हैं और 10 पेलोड विभिन्न गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीई) से हैं। अमेरिका ने 16 मार्च, 1966 को पहली बार डॉकिंग की थी