रिलेशनशिप- पेरेंट्स के झगड़े का बच्चे पर बुरा असर:बच्चे को हो सकता है डिप्रेशन, साइकोलॉजिस्ट से जानें झगड़ा सुलझाने के 8 टिप्स

किसी भी कपल का रिश्ता कितना भी अच्छा क्यों न हो, उनके बीच बात-बहस होना स्वाभाविक है। वहीं जब वे पेरेंट्स बनते हैं तो उनके बीच की असहमति या झगड़े का बच्चे पर भी नेगेटिव असर पड़ता है। कई बार घर में बहस के दौरान पेरेंट्स ये सोचते हैं कि उनका बच्चा कुछ भी नहीं समझ रहा है। लेकिन बच्चे सब सुनते और समझते हैं। इसका उनकी मेंटल हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, पेरेंट्स के झगड़े बच्चे की मेंटल हेल्थ को प्रभावित करते हैं। इससे उनमें डिप्रेशन और एंग्जाइटी का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा उनमें आत्मसम्मान और सुरक्षा की भावना भी कम हो सकती है। आज रिलेशनशिप कॉलम में बात करेंगे कि पेरेंट्स के झगड़े का बच्चे पर कैसा असर पड़ता है। साथ ही जानेंगे कि पेरेंट्स को ऐसी स्थिति को कैसे हैंडल करना चाहिए। बच्चे को खुश रखने के लिए पेरेंट्स का खुश रहना जरूरी अगर पेरेंट्स खुश रहेंगे तो बच्‍चा भी खुश रहेगा। माता-पिता के दुखी होने पर बच्‍चे भी दुखी होते हैं। इसलिए अगर आप अपने बच्‍चे को खुश देखना चाहते हैं तो पहले अपने रिलेशनशिप को खुशहाल बनाने पर काम करें। वियतनामी बौद्ध भिक्षु और मशहूर राइटर तिक न्यात हन्ह ने अपनी किताब ‘फिडिलिटी: हाउ टू क्रिएट लविंग रिलेशनशिप दैट लास्ट्स’ में इस बारे में लिखा है- पेरेंट्स के झगड़े का बच्चे पर असर पेरेंट्स के झगड़े का बच्चे की मेंटल और इमोशनल हेल्थ पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इससे वे तनाव महसूस कर सकते हैं और उनमें असुरक्षा की भावना पैदा हो सकती है। पेरेंट्स के बीच बात-बहस और झगड़े को देखकर बच्चे में घबराहट और डर पैदा हो सकता है। पेरेंट्स के झगड़े बच्चे को और किस तरह से प्रभावित करते हैं, इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- पेरेंट्स के झगड़े का बच्चे के व्यवहार पर असर डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि पेरेंट्स के झगड़े का बच्चे के व्यवहार पर सीधा असर पड़ता है। वे आक्रामक या चिंतित हो सकते हैं। कुछ बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ हो सकते हैं, जबकि कुछ बच्चों के सोशल बिहेवियर में बदलाव हो सकता है। वे अधिक गुस्से या डर के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं। बच्चे रिश्ते को लेकर होते इनसिक्योर पेरेंट्स के झगड़े का असर बच्चे के साथ उनके रिश्ते पर तो पड़ता ही है, साथ ही बच्चे में प्यार की जगह डर और संकोच की भावना पैदा हो सकती है। जब बच्चे पेरेंट्स के झगड़े देखते हैं तो रिश्तों पर उनका विश्वास कम हो सकता है। वे भविष्य में अपने संबंधों को लेकर संकोच कर सकते हैं। वे अपने रिश्तों में इनसिक्योर और चिड़चिड़े हो सकते हैं। पेरेंट्स ऐसे सुलझाएं अपने झगड़े पेरेंट्स को बच्चे के सामने झगड़ा या कठोर बहस करने से बचना चाहिए। अगर किसी बात पर असहमति हो तो बच्चे से दूर होकर शांतिपूर्वक बात करके हल निकालना चाहिए। इसके अलावा कुछ और बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसे नीचे ग्राफिक से समझिए- आइए, अब ऊपर दिए पॉइंट्स के बारे में विस्तार बात करते हैं। बच्चे के सामने कठोर बहस करने से बचें अगर आपस में किसी बात पर असहमति होती है तो बच्चे के सामने बहस नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय बच्चे जब पढ़ने जाएं या फिर सो जाएं तो इस पर बातचीत करें। झगड़े की वजह का पता लगाएं जब आपके बीच झगड़ा हो तो शांत होकर यह समझने की कोशिश करें कि असल में मुद्दा क्या है। गुस्से में आकर तुरंत प्रतिक्रिया देने के बजाय सोचें कि समस्या की जड़ क्या है। इससे प्रॉब्लम को हल करने में आसानी होती है। समस्या पर बातचीत करें और एक-दूसरे को सुनें असहमति हर रिश्ते में होती है, लेकिन इसका हल झगड़े से नहीं निकलता है। इसलिए दोनों लोग बैठकर समस्या पर बातचीत करें। इस दौरान एक-दूसरे की बातें सुनें। इससे गलतफहमियां दूर होती हैं। गाइडलाइन बनाएं और उसे फॉलो करें झगड़े को सुलझाने के लिए आपसी सहमति से एक गाइडलाइन बनाएं। जैसे ‘हम बच्चों के सामने बहस नहीं करेंगे।’ इससे किसी भी विवाद को हल करने में मदद मिलेगी। बातचीत के दौरान अपशब्दों का इस्तेमाल न करें झगड़े के दौरान भी शब्दों का सावधानी से चयन करना बेहद जरूरी है। ध्यान रखें कि गुस्से में अपशब्द कहने से रिश्ते और ज्यादा बिगड़ सकते हैं। हमेशा पॉजिटिव माहौल बनाएं बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए पॉजिटिव माहौल देना जरूरी है। अगर घर में शांति और प्यार होगा तो बच्चे भी उसी माहौल में ग्रोथ करेंगे और खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे। एक-दूसरे से प्यार जताना न भूलें भले ही पेरेंट्स के बीच कुछ मतभेद हो, लेकिन बच्चे के सामने एक-दूसरे से प्यार और सम्मान जताना न भूलें। इससे उनमें भी प्यार की भावना बनी रहेगी। जरूरत पड़ने पर किसी काउंसलर की मदद लें अगर बात बढ़ जाए तो काउंसलर की मदद लें। कभी-कभी इससे भी समस्या हल हो सकती है। अंत में यही कहेंगे कि बच्चों के सामने जितने शांत और प्यार से रहेंगे, बच्चे भी उतने ही पॉजिटिव रहेंगे।