फिल्म ‘जवान’ जैसी ब्लॉकबस्टर के बाद, एजाज खान अब ‘धूम धाम’ में नए अंदाज में नजर आए इस फिल्म में वह प्रतीक गांधी और यामी गौतम के साथ स्क्रीन शेयर कर रहे हैं। लेकिन उनके लिए सबसे खास बात यह है कि ट्रेलर की शुरुआत उनके किरदार से होती है। कैसे मिली उन्हें ये फिल्म? सेट पर यामी और प्रतीक के साथ कैसा रहा उनका अनुभव? ट्रेलर में खुद को पहले फ्रेम में देखकर क्या महसूस हुआ? दैनिक भास्कर से खास बातचीत में एजाज खान ने अपनी इस नई जर्नी के बारे में खुलकर बात की। पढ़िए बातचीत के कुछ प्रमुख अंश: फिल्म ट्रेलर की शुरुआत मुझसे – एक बड़ा पल, एक बड़ा एहसास कई बार जिंदगी ऐसे मौके देती है, जिनके लिए आप बरसों से मेहनत कर रहे होते हैं। लेकिन जब वो पल सच में सामने आता है, तो यकीन करना मुश्किल हो जाता है। जब मैंने इस इंडस्ट्री में कदम रखा था, तब सोचा भी नहीं था कि कभी किसी फिल्म के ट्रेलर की शुरुआत मुझसे होगी। यही वजह है कि जब पहली बार ट्रेलर देखा, तो दिल तेज़ धड़कने लगा। कई बार लगता है कि क्या मैं सच में डिजर्व करता हूं ये सब? एक अजीब-सा इम्पोस्टर सिंड्रोम महसूस होता है – जैसे अभी कोई आएगा और कहेगा कि ‘अरे, गलती से तुम्हें चुन लिया गया।’ लेकिन फिर खुद को याद दिलाता हूं कि यह सब अचानक नहीं हुआ। जो भी हासिल किया है, वो सालों की मेहनत, संघर्ष और सीखने की ललक का नतीजा है। फिल्म ‘जवान’ के ट्रेलर में भी मेरी झलक थी। अब इस फिल्म का ट्रेलर भी मेरी एंट्री से शुरू हो रहा है। यह मेरे लिए सिर्फ एक बड़ा मौका नहीं, बल्कि एक सपने के सच होने जैसा है। जब भी कोई किरदार चुनता हूं, मेरी कोशिश यही होती है कि वो सिर्फ एक नाम भर न हो, बल्कि कहानी में अपनी एक मजबूत छाप छोड़े। शायद यही वजह है कि मेरे किरदार को ट्रेलर में अहम जगह मिलती है। लेकिन इसे मैं सिर्फ अपनी मेहनत का नतीजा नहीं मानता – यह मेरी किस्मत भी है और उस भरोसे की ताकत भी, जो फिल्ममेकर्स मुझ पर दिखाते हैं। उनका यह विश्वास मेरे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है। यही भरोसा मुझे हर बार और बेहतर करने की हिम्मत देता है, आगे बढ़ने का जुनून देता है। यह सिर्फ एक ट्रेलर की शुरुआत नहीं, मेरे करियर की एक नई शुरुआत जैसा महसूस होता है। और यही सोचकर हर दिन खुद को तैयार करता हूं – यह तो बस शुरुआत है, अभी बहुत कुछ करना बाकी है। कास्टिंग कॉल से लेकर सेट तक का सफर मुझे कास्टिंग एजेंसी से कॉल आया था। हाल के सालों में मैंने कई बेहतरीन प्रोजेक्ट्स इन्हीं एजेंसियों के जरिए किए हैं। इस बार भी उन्होंने कहा कि एक कड़क किरदार है, लेकिन उसमें थोड़ा गुंडई वाला टच चाहिए। मैंने सोचा- ‘ठीक है यार, मजेदार होगा।’ ऑडिशन पर गया तो उन्होंने हल्की-फुल्की कॉमेडी करने को कहा। सुनकर चौंक गया, लेकिन दिलचस्प भी लगा। पहले टीवी पर कॉमेडी कर चुका था, फिर इंटेंस किरदार मिलने लगे—पुलिस ऑफिसर, सीआईडी वगैरह। इस फिल्म में मुझे अलग करने का मौका मिला, जो मेरे लिए बड़ा एक्साइटिंग था। यामी गौतम और प्रतीक गांधी को कास्ट में देखकर और खुशी हुई। प्रतीक के ‘स्कैम 1992’ वाले काम का मैं बहुत बड़ा फैन हूं और यामी तो कमाल की एक्ट्रेस हैं। वो इतनी नैचुरल हैं कि उनके साथ सीन करते हुए यही सोचता रहा- ‘यार, कोई इतना टैलेंटेड और खूबसूरत कैसे हो सकता है?’ सेट का माहौल और डायरेक्टर की खास सलाह यामी और प्रतीक सुपरस्टार्स हैं, लेकिन सेट पर कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ। दोनों बहुत सपोर्टिव थे और को-एक्टर्स को पूरा स्पेस देते थे। डायरेक्टर ऋषभ ने मुझे खुली छूट दी। उन्होंने कहा- ‘एक्टिंग मत कर, बस किरदार को जी।’ उन्होंने समझाया कि मेरा किरदार कॉमिक नहीं है, बल्कि हालात उसे फनी बना देते हैं। इसलिए ओवरएक्टिंग की जरूरत नहीं थी, बस सिचुएशन के हिसाब से नैचुरल रिएक्ट करना था। यामी-प्रतीक के साथ मजेदार किस्से यामी और प्रतीक ऑन-स्क्रीन जितने दमदार लगते हैं, असल जिंदगी में उतने ही सहज और मिलनसार हैं। वे जिस तरह ऑन-स्क्रीन अपने किरदारों में दमदार परफॉर्मेंस देते हैं, रियल लाइफ में वे उससे काफी अलग और अनोखे पर्सनालिटी वाले इंसान हैं। फिल्मों में वे जिस तरह गंभीर, मजेदार या इंटेंस रोल निभाते हैं, असल जिंदगी में उनका स्वभाव अलग है। वे मस्तीखोर, हल्के-फुल्के या बहुत डाउन टू अर्थ हो सकते हैं। सेट पर वे किसी सुपरस्टार जैसी एटिट्यूड नहीं रखते, बल्कि बहुत सहज, मिलनसार और को-स्टार्स को कंफर्टेबल महसूस कराने वाले लोग हैं। फिल्म की कहानी एक ही रात में घटती है, इसलिए हमारी शूटिंग का शेड्यूल भी नाइट में ही रखा गया। लेकिन सेट पर इतनी जबरदस्त एनर्जी थी कि कभी थकान महसूस नहीं हुई। शूटिंग कब पूरी हो गई, पता ही नहीं चला।