CID के इंस्पेक्टर दया। इतने तो किसी टेलीविजन शोज के एपिसोड नहीं होते, जितने एपिसोड में इन्होंने सिर्फ दरवाजा तोड़ा होगा। इनका रियल नाम भी दया ही है, दयानंद शेट्टी। शो में एक मुक्के में दरवाजा तोड़ देने वाले दया रियल लाइफ में एथलीट रह चुके हैं। डिस्कस थ्रो में महाराष्ट्र के स्टेट लेवल चैंपियन थे। पिता होटल व्यवसाय में थे। खुद भी कई साल होटल काउंटर पर बैठे रहे। एक दिन अपने दोस्त के काम से ऐड एजेंसी गए। दोस्त सिलेक्ट हुआ कि नहीं, लेकिन इनकी किस्मत जरूर चमक गई। लुक और सुडौल शरीर देख इन्हें ही मॉडलिंग का ऑफर मिल गया। CID में इनके रोल से शायद डायरेक्टर रोहित शेट्टी भी प्रभावित थे, इसी वजह से सिंघम सीरीज की फिल्मों में इन्हें पुलिस ऑफिसर बनाकर लाए और दरवाजा भी तुड़वाया। दया अब CID के दूसरे सीजन में भी अपने पुराने अवतार में नजर आ रहे हैं। आज सक्सेस स्टोरी में कहानी इन्हीं दयानंद शेट्टी की… लंबे-चौड़े थे, इसलिए क्लास में पीछे बिठाए जाते थे मैं अपनी क्लास में हमेशा पीछे बैठता था। ऐसा नहीं है कि मैं पढ़ने में कमजोर था, क्योंकि मेरी कदकाठी शुरुआत से ही काफी लंबी-चौड़ी थी। मैं जब आगे बैठता, तो पीछे वालों को कुछ दिखता ही नहीं था। मैं बचपन से ही अपनी उम्र से बड़ा दिखता था। इसी वजह से मेरी उम्र के बच्चे मुझे अपने साथ नहीं खिलाते थे। मैं अकेला फील करता था। पिछली सीट पर क्राइम की बाते होती थीं उस समय वहां पीछे बेंच पर लोकल टपोरी थे। उनका बात करने का लहजा भी वैसा ही था। हमेशा क्राइम की बातें करते थे। उनके साथ रहकर मैं भी उनके रंग में रंग गया था। मैं भी उनके तरह से बोलने लगा था। बात बात में गाली गलौज करना कॉमन हो गया था। उसके बाद जब चीजें बदली और मुझे पनिशमेंट के तौर पर आगे साइड वाले बेंच पर बैठाया गया। मैं धीरे-धीरे इंप्रूव करने लगा, क्योंकि मेरे साथ स्कॉलर बैठते थे। डिस्कस थ्रो में स्टेट लेवल चैंपियन बने मैं भी पिता की तरह खुद को होटल बिजनेस में ही देख रहा था। हालांकि, पढ़ाई के दौरान कब मेरा मन स्पोर्ट्स में लगने लगा, पता ही नहीं चला। मैं डिस्कस थ्रो करता था। 1994 में डिस्कस थ्रो इवेंट में मैं महाराष्ट्र से स्टेट लेवल का चैंपियन भी बना। दरअसल, मेरे पिताजी बिजनेसमैन होने के साथ-साथ खुद भी एक एथलीट थे। वे वेट लिफ्टिंग करते थे। मैं उन्हें देखकर इंस्पायर होता था। हालांकि, वे कभी नहीं चाहते थे कि मैं भी वेट लिफ्टिंग करूं। वे जानते थे कि इससे आगे चलकर बॉडी पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। घुटनों में दर्द होने लगा, खेलते वक्त आंसू निकल जाते थे पिताजी ने मुझे एथलेटिक्स में जाने की सलाह दी। मैं फिर डिस्कस थ्रो और शॉटपुट में इंटरेस्ट लेने लगा। डिस्कस थ्रो के दौरान घुटनों पर बहुत प्रेशर पड़ता था। मेरा बायां घुटना दुखना लगा। जब भी थ्रो करता, दर्द की वजह से आंख से आंसू निकल जाते। फिर मैंने डिसाइड किया कि अब इसमें तो फ्यूचर नहीं बनने वाला। तब तक पिताजी भी बीमार पड़ने लगे। कुछ दिन उनके होटल बिजनेस को संभाला। कई साल तक मैं होटल के काउंटर पर भी बैठा। ऐड एजेंसी के बाहर खड़े थे, कद-काठी देख मॉडलिंग का ऑफर मिला मुझे एक्टिंग वगैरह में कभी इंटरेस्ट नहीं था। इत्तेफाक देखिए, एक दिन मेैं अपने दोस्त के साथ ऐड एजेंसी गया। मेरे दोस्त को वहां मॉडलिंग के लिए ऑडिशन देना था। मैं बाहर खड़ा उसका वेट कर रहा था। तभी मुझ पर किसी की नजर पड़ी। उन्हें मेरा लुक और कद-काठी काफी पसंद आया। उन्होंने मेरी कुछ तस्वीरें खींच लीं। एकाध घंटे में ही उन्होंने मुझे सिलेक्ट कर लिया। इस तरह मैं मॉडलिंग में आ गया। खाली थे तो थिएटर करने पहुंच गए ठीक इसी तरह एक इत्तेफाक और हुआ। मेरी कम्यूनिटी वालों ने एक फंक्शन रखा। वहां स्टेज शो के लिए मैंने अपनी आवाज (वायसओवर) दी। लोगों को मेरी आवाज बहुत पसंद आई। किसी ने थिएटर करने की सलाह दे दी। मैं उस वक्त खाली ही चल रहा था, इसलिए थिएटर करने लगा। एक दिन CID के प्रोडक्शन डिपार्टमेंट से जुड़े एक शख्स संतोष शेट्टी प्ले देखने पहुंचे। उन्हें मेरा काम काफी पसंद आया। उन्होंने मुझे CID टीम से जुड़ने का ऑफर दिया। मैंने हाथ खड़े कर दिए कि मुझसे कैमरे के सामने एक्टिंग नहीं हो पाएगी। फिर भी संतोष शेट्टी ने जबरदस्ती करके मुझे ऑडिशन के लिए बुला लिया। CID के प्रोड्यूसर ने कहा- पहले हिंदी सही करो मैं CID के प्रोड्यूसर बीपी सिंह के पास गया। उन्होंने मुझे तीन पेज की स्क्रिप्ट दी। मैंने वहीं पर रट्टा मार के डायलॉग बोल दिए। बीपी सिंह जी ने कहा कि तुम्हारी आवाज में साउथ का फ्लेवर आ रहा है, मनोहर कहानियां पढ़ो, पहले हिंदी ठीक करो। मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा कि सर, साउथ का हूं तो साउथ का ही तो फ्लेवर आएगा। मैं सिर्फ आपसे मिलने आया था, बाकी मुझे काम में कोई दिलचस्पी नहीं है। शो में पीछे खड़े रहते थे, एक्सपोजर नहीं मिलता था बीपी सिंह जी मिलने के एक महीने बाद मेरे पास CID की प्रोडक्शन टीम से फोन आया। उन्होंने शो में मुझे कॉप की भूमिका ऑफर की। काफी सोच-विचार कर मैंने हां बोल दिया। शो के शुरुआती दिनों में मुझे उतना एक्सपोजर नहीं मिल पाया। आशुतोष गोवारिकर (डायरेक्टर) उस वक्त सीनियर इंस्पेक्टर का रोल करते थे। हालांकि, एक एपिसोड ऐसा आया जिसने मुझे इंस्पेक्टर दया के तौर पर स्थापित कर दिया। आशुतोष गोवारिकर लगान बनाने निकले तो इनकी किस्मत चमकी दरअसल, प्रोड्यूसर बीपी सिंह आशुतोष गोवारिकर को ध्यान में रखकर एक एपिसोड बना रहे थे। यह वही समय था जब आशुतोष फिल्म लगान की प्लानिंग कर रहे थे। बीपी सिंह ने फिर उसी एपिसोड के लिए मुझे बुलाया। उन्होंने कहा कि यह एपिसोड सिर्फ तुम्हारे ऊपर केंद्रित होगा, करना चाहोगे? कुछ ही दिन पहले मेरे पिताजी गुजरे थे, मेरे बाल भी छोटे-छोटे थे। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर भी मैंने उनके सामने हां बोल दिया। एपिसोड टेलीकास्ट होते ही हिट हो गया। इसने खूब TRP दी और मैं देखते ही देखते लीड कैरेक्टर बन गया। चार साल का बच्चा भी दया का फैन अभी पिछले साल की बात है, तब तक नया सीजन शुरू भी नहीं हुआ था, मेरी मुलाकात चार साल के एक बच्चे से हुई। मुझे यह जानकर बहुत ताज्जुब हुआ कि वह भी CID देखता है और खासतौर पर मेरे कैरेक्टर का फैन है। आप सोचिए कि CID पहले सीजन को खत्म हुए 6 साल हो गए थे, फिर भी लोग इसके पुराने एपिसोड्स को यूट्यूब पर देखते हैं। टाउपकास्ट होने का डर कभी नहीं रहा कभी-कभार सुनने में आता है कि क्या मैं टाइपकास्ट तो नहीं हो गया। क्या मुझे दया के किरदार से इतर भी सोचना चाहिए था? मैं साफ लहजों में कहना चाहता हूं कि मुझे कोई गम नहीं है। मुझे खुशी है कि लोग मुझे दया के कैरेक्टर से ही जानते हैं। मैं जब भी कोई रोल करता हूं तो उसके आगे-पीछे की नहीं सोचता। ज्यादा-फायदा नुकसान नहीं सोचता। ऑडियंस मेरे कैरेक्टर को पसंद करे, मेेरे लिए यही अहम है। मेरी कोई बुराई भी करता है, तो चुपचाप सुन लेता हूं। बुरा नहीं मानता। ————————————————— पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी यहां पढ़ें… 7 की उम्र में ठेले पर गाया गाना:बॉलीवुड को दिए कई हिट नंबर्स, एक कॉन्सर्ट कर 10 बच्चों की जान बचाती हैं पलक मुच्छल आमतौर पर चार साल की उम्र में बच्चे खाने और खेलने के अलावा कुछ नहीं सोचते। ऐसे में इस उम्र की एक लड़की, जो न सिर्फ अपना करियर तय कर रही थी बल्कि समाज के लिए कुछ करने का भाव भी रखती थी। पूरी खबर पढ़ें ..