उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भूमिका पर सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सम्मेलन हुआ। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विभिन्न राज्यों के गवर्नर, उपराज्यपाल और शिक्षामंत्री शामिल हुए। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे लागू करने की योजना का अभाव है। सिसोदिया ने कहा अभी लगभग 80 फीसदी डिग्रीधारी युवाओं को रोजगार के योग्य नहीं समझा जाता है। हमें सोचना होगा कि 20 साल की पढ़ाई के बाद भी हमारे बच्चे अगर रोजगार नहीं हो सके तो कमी कहां रह गई।
नाकामियों को छुपाने मैकाले को बहाना बनाना ठीक नहीं
सिसोदिया ने कहा कि बैचलर इन वोकेशनल की डिग्री को दोयम दर्जे पर रखा जाना उचित नहीं। अन्य विषयों के स्नातक की तरह इसे भी समान समझा जाये, तभी वोकेशनल कोर्सेस का लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को विशफुल थिंकिंग तक सीमित रखने के बजाय व्यवहार में लाना जरूरी है। इसमें जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की बात कही गई है। अब इस पर कानून बनाना चाहिए ताकि इसे लागू करना सबकी बाध्यता हो। सिसोदिया ने कहा कि आजादी के 73 साल बाद भी हम लॉर्ड मैकाले का नाम लेकर अपनी सरकारों की कमियां छुपाते हैं। सिसोदिया ने कहा कि वर्ष 1968 और 1986 में नई शिक्षा नीति बनाई गई। उन नीतियों का कार्यान्वयन नहीं करने की नाकामियों को छुपाने के लिए मैकाले को बहाना बनाया जाता है।