आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा की लक्ष्मीश्री (परिवर्तित नाम) के चेहरे पर काफी गहरे निशान थे। पति ने उन पर सब्जी काटने वाले चाकू से हमला किया था। घाव में पस पड़ गया था। लक्ष्मी के पास इलाज करवाने के पैसे नहीं थे। उन्हें उनका भाई सरकारी अस्पताल में ले गया था, जहां हालत बिगड़ती जा रही थी। फिर उसने महिलाओं के लिए काम करने वाले एनजीओ में संपर्क किया और बहन के प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए 75 हजार रुपए की मदद मांगी। दो दिन में ही उसे 50 हजार रुपए की मदद दे दी गई और बहन का इलाज भी शुरू हो गया। अब लक्ष्मी की हालत ठीक है।

इस मामले में 13 जून को एफआईआर दर्ज हुई थी। यह घरेलू हिंसा का मामला था, जिसमें नशे में पति ने पत्नी पर हमला किया था। लक्ष्मी यह दर्द बीते आठ सालों से सह रही है। उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता। पति शराब पीकर आता है और उसके साथ मारपीट करता है। इस बार के हमले से तो मरते-मरते बची। लक्ष्मी को जिस महिला से मदद मिली वो भी घरेलू हिंसा की शिकार रही हैं और अब न सिर्फ अपने कदमों पर खड़ी हैं, बल्कि अपने एनजीओ के जरिए तमाम महिलाओं की मदद भी कर रही हैं। इनका नाम है रेने ग्रेसे।
रेने की शादी 18 साल की उम्र में ही हो गई थी। उनकी हालत तो ऐसी थी कि जब उनके साथ घरेलू हिंसा हो रही थी, तब उन्हें ये भी नहीं पता था कि जो हो रहा है, वो घरेलू हिंसा होती है। कई सालों तक प्रताड़ित होते रहीं, फिर समझ आया कि उनके साथ हिंसा की जा रही है। फिर उन्होंने न सिर्फ पति को छोड़ा, बल्कि महिलाओं की मदद के लिए एनजीओ भी बना दिया और खुद एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम भी करती हैं।

लक्ष्मी का मामला invisible scars की फाउंडर एकता विवेक वर्मा के पास आया था। उन्होंने अपने फेसबुक पर इसे पोस्ट किया। वहां से रेने को इस बारे में पता चला और वो महिला की मदद के लिए फंड इकट्ठा करने में जुट गईं। एकता कहती हैं, दो दिन में ही 50 हजार जुटा लिए गए।
दरअसल, रेने इस दर्द को इसलिए बहुत अच्छे से समझती हैं कि वो खुद इससे गुजर चुकी हैं। लॉकडाउन में ऐसी तमाम सर्वाइवर तकलीफों का सामना कर रही महिलाओं की मदद के लिए आगे आई हैं, जो खुद इसका शिकार हो चुकी हैं। मप्र के भोपाल में ऐसा ही गौरवी वन स्टॉप सेंटर है, जो दिल्ली में 2012 में हुए गैंगरेप कांड के बाद बना है। यह संस्था पीड़ितों को कानूनी, वित्तीय, सामाजिक और साइकोलॉजिकल सपोर्ट देती है।
गौरवी को मैनेज करने वाली एक्शन इंडिया संस्था की डायरेक्टर सारिका सिन्हा कहती हैं, लॉकडाउन में उनके सेंटर को 1400 कॉल मदद के लिए आए। इसमें घरेलू हिंसा के साथ ही बलात्कार, तस्करी और गर्भवती महिलाओं के साथ हुई हिंसा की शिकायतें भी शामिल थीं।
इसमें खास बात ये है कि जो महिलाएं पहले हिंसा का शिकार रही हैं, वही अब अपनी इच्छा से दूसरी पीड़ित महिलाओं के लिए आगे आ रही हैं। सीमा (परिवर्तित नाम) की 2002 में शादी हुई थी। शादी के बाद से ही वे घरेलू हिंसा का शिकार थीं। उनके साथ मारपीट होती थी। कुछ साल अकेली रहीं। फिर 2005 से उन्होंने कामधंधा शुरू किया। 2017 में उनके और पति के बीच समझौता भी हो गया और अब सब साथ में ही रहते हैं। सीमा ने पूरे लॉकडाउन में राशन बांटने का काम किया है।
कहती हैं, गौरवी सेंटर से राशन के पैकेट मिलते थे, हम सुबह 9 बजे से बांटने निकल जाते थे। हमें सेंटर के जरिए ही पता चलता था कि किस क्षेत्र से कॉल आए हैं, जहां सबसे ज्यादा परेशानी है। राशन बांटने में पूरा दिन लग जाता था और यह काम सीमा सहित तमाम महिलाएं मुफ्त में करती हैं, क्योंकि वो उस दर्द को समझती हैं, जो उन्हें मिला। इसलिए दूसरी महिलाओं की मदद करना चाहती हैं। कहती हैं, घर में खाने-पीने को न हो तो मारपीट शुरू हो जाती है और महिलाओं को हिंसा का शिकार भी होना पड़ता है।

ऐसी ही एक योद्धा राधिका (परिवर्तित नाम) भी हैं, जिनकी 2014 में शादी हुई थी। पति और सास से अनबन होती थी, जो बाद में मारपीट में बदल गई। वे हर रोज तलाक की धमकी देते थे। 2015 में राधिका ससुराल छोड़कर आ गईं। कहती हैं, लॉकडाउन में और इसके पहले भी जो भी परेशान महिलाएं मेरे संपर्क में आती हैं, मैं उन्हें परामर्श देती हूं। संस्था में ले जाती हूं। वहां सर, मैडम से बात करवाती हूं। लॉकडाउन में बहुत सारी महिलाओं का खाने के लिए फोन आया। उनके घर मैंने सामान की किट बांटी। उसमें सिर्फ राशन ही नहीं, बल्कि सैनेटरी पैड भी थे। दोनों टाइम राशन मिलने से कई परिवार बर्बाद होने से बच गए।
राधिका कहती हैं, लॉकडाउन में कइयों के घर तो इलाज न करवा पाने के चलते भी टूटे। सुमन लोधी (परिवर्तित नाम) के बच्चे के दिमाग में कुछ दिक्कत थी। पति ने इलाज करवाने के बजाए गांव जाने की बात कही। हम उस महिला के बारे में पता चला तो हमने संस्था के जरिए न सिर्फ उसके बच्चे का इलाज करवाया, बल्कि उसे अकेले खड़े होने की ताकत भी दी।
राधिका कहती हैं, हमने जो दर्द सहा है, उसे बहुत अच्छे से जानते हैं इसलिए इस दौर में उन महिलाओं की मदद करना चाहते हैं, जो परेशान हैं। राधिका की ही तरह माया भी घरेलू हिंसा से पीड़ित रही हैं। पति शक करते थे। किसी से बात नहीं करने देते थे। कुछ कहो तो मारपीट करते थे। इसके बाद माया ने खुद को ससुराल से दूर कर लिया। लॉकडाउन में जो खाने के पैकेट बांटे जाते थे, उन्हें पैक करने का काम करती थीं। कहती हैं, ऐसा करके सुकून मिलता है।

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