जम्मू- कश्मीर के डोडा से शोपियां और कुपवाड़ा तक करीब 76 बच्चे रोजाना ऑनलाइन क्लासेस के जरिए पढ़ाई करते हैं। श्रीनगर के रहने वाले रशीद और उनके स्टूडेंट्स की सुबह की शुरुआत कॉस्ट मैनेजमेंट अकाउंटिंग कोर्स की पढ़ाई के साथ होती है। जम्मू- कश्मीर के यह बच्चे ‘वाइस ऐप’ नामक एक मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए अपनी ऑनलाइन क्लासेस जारी रखे हुए।
2G स्पीड में भी होगी ऑनलाइन क्लासेस
आईआईटी बॉम्बे में पढ़ने वाले दो दोस्तों ने इस ऐप को डेवेलप किया है। कश्मीर के मुबीन मसूदी और लखनऊ के बिलाल अबीदी के बनाए इस ऐप की मदद से स्टूडेंट्स 2G स्पीड पर भी बिना किसी परेशानी के ऑनलाइन क्लासेस अटेंड कर पा रहे हैं। इस ऐप की मदद से पढ़ाई आसान होने के साथ ही बच्चों को रियल क्लासरूम का भी एहसास होता है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने ट्वीट कर की तारीफ
इस बारे में शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने ट्वीट कर बताया था कि आईआईटी बॉम्बे से ग्रेजुएट दो स्टूडेंट्स ने 2G सेवा पर ऑनलाइन लर्निंग के लिए एक ऐसा ऐप विकसित किया है, जो बिल्कुल मुफ्त और बिना विज्ञापन के चलता है। इस ऐप के लॉन्च होने के 1 महीने बाद ही इसे करीब 3000 टीचर, जिनमें से ज्यादातर जम्मू- कश्मीर के रहने वाले हैं, ने इसकी मदद से हजारों स्टूडेंट तक अपनी पहुंच बना ली है।
2G इंटरनेट के साथ ऑनलाइन क्लासेस बना चुनौती
मसूदी कहते हैं कि लॉकडाउन लगते ही सभी शिक्षण संस्थान ऑनलाइन मोड की तरफ जाने को मजबूर हो गए। ऐसे में सभी टीचर और मैं भी इसकी वजह से एक कठिन टास्क फेस कर रहे थे। कश्मीर में 2G इंटरनेट बैंडविथ के साथ ऑनलाइन क्लासेस भी एक चुनौती बन गया था। शुरुआत में मसूदी और अबीदी ने जूम एप पर वीडियो की जगह व्हाइटबोर्ड का इस्तेमाल कर 2G नेटवर्क के जरिए पढ़ाई शुरू की। हालांकि, जल्द ही उन्हें यह अंदाजा हो गया कि टीचिंग सिर्फ लाइव क्लासेज, ऑनलाइन और ऑफलाइन तक सीमित नहीं है।
खुद ट्रैक होगी स्टूडेंट्स की अटेंडेंस
लखनऊ यूनिवर्सिटी कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल सी. एस. पॉल ने बताया कि इस ऐप की खास बात है कि यह खुद ही स्टूडेंट्स की अटेंडेंस ट्रैक कर यह जानकारी देता है कि कितने बच्चे ऑनलाइन क्लास अटेंड कर रहे हैं। दूसरे ऐप के मुकाबले वाइज ऐप क्लास खत्म होने के बाद यह भी बताया है कि किस स्टूडेंट ने कितनी देर तक के लिए क्लास अटेंड की है।
टीचर्स को टेक्नोलॉजी के जरिए सशक्त करना है मकसद
ऑनलाइन क्लासेज में होने वाली परेशानियों की वजह से कई स्टूडेंट्स मार्च से ही पढ़ाई से दूर होते जा रहे थे। ऐसे में एक टीचर के तौर पर मसूदी ने यह महसूस किया कि सीखने के लिए क्वालिटी के साथ निरंतरता भी आवश्यक है। इसे बनाने के पीछे मसूरी और अबीदी का मकसद टीचर्स को टेक्नोलॉजी के जरिए सशक्त कर शिक्षा का लोकतांत्रिक करण करना है। उन्हें उम्मीद है कि उनका बनाया यह ऐप देश के उन सभी कोनों तक पहुंच जाएगा, जहां कनेक्टिविटी और इंटरनेट की धीमी गति एक समस्या है।