पिछले महीने की 27 तारीख की सुबह दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में 30 साल के एक रिसर्च स्कॉलर ने घरवालों से को कहा उसकी तबीयत खराब है। घरवालों ने दवाइयां मंगा कर दीं, लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। परिवार वाले उसे अस्पताल लेकर जा ही रहे थे कि रास्ते में उनकी मौत हो गई। एक होनहार स्टूडेंट की मौत से दुखी सिर्फ उसका परिवार ही नहीं आस-पड़ोस वाले भी हैं। जिस युवक की मौत हुई है, उसके घर के हालात भी ठीक नहीं हैं। पिता भी बीमार रहते हैं।
पहली दफा तो इस मौत की वजह हार्ट अटैक बताई गई। लेकिन, जांच के बाद पता चला कि वो युवक ड्रग एडिक्ट था और मौत उसी के ओवरडोज की वजह से हुई थी। उनके एक रिश्तेदार कहते हैं कि 6 साल पहले मुझे पता चला था कि वो चरस पीते हैं, मैंने काफी समझाया था, लेकिन उन्होंने कहा कि वो कभी-कभार ही पीते हैं। अभी हाल में तो उन्होंने चरस छोड़कर हेरोइन लेना शुरू कर दिया था। लोगों को मौत की वजह हार्ट अटैक इसलिए बताई, क्योंकि ड्रग्स की वजह से मौत अभी भी कश्मीर में एक सामाजिक कलंक है।

कश्मीर में इस समय ड्रग एडिक्शन ने एक खतरनाक रुख ले लिया है। सरकार की तरफ से या ड्रग एडिक्शन को लेकर काम करने वालों के पास कोई आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन आए दिन जो अलग-अलग रिपोर्ट्स आती हैं, उससे हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है।
1993 में कश्मीर के एक मशहूर साइकैट्रिस्ट, मुश्ताक मरकूब और उनके साथी केएस दत्ता ने अपनी एक किताब में बताया था कि कश्मीर में 2.11 लाख लोग अलग-अलग तरीके का नशे करते हैं। इन लोगों में से ज्यादातर पुरुष हैं और अक्सर ये लोग चरस का नशा करते हैं। 2014 में यूनाइटेड नेशंस ड्रग कंट्रोल प्रोग्राम (यूएनडीपी) ने एक सर्वे में बताया था कि कश्मीर में नशा करने वालों की संख्या केवल 70,000 है, जिसमें से 4000 औरतें हैं और बाकी पुरुष हैं। इस सर्वे को कश्मीर में जानकारों ने नज़र अंदाज़ किया था, क्योंकि वे जानते हैं कि आंकड़ा इससे कहीं ज़्यादा बड़ा है।
2019 में भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड इम्पावरमेंट की एक और रिपोर्ट आई थी जो नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (एनडीडीटीसी) की एक सर्वे के आधार पर तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी में से 4.9% लोग नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। यानी कुल 6 लाख लोग जम्मू-कश्मीर में नशा करते हैं और यह भारत में पांचवें स्थान पर है।

जानकारों की मानें तो यह संख्या भी बहुत कम है। डॉ. मुजफ्फर ए खान क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं। कहते हैं कि असली संख्या इससे कहीं ज़्यादा है। यह जो सर्वे एनडीडीटीसी ने की थी, इसमें कई चीजों का ध्यान नहीं रखा गया था। जैसे इन लोगों ने गांव में जाकर पूछा कितने लोग शराब पीते हैं।
इन आंकड़ों से भी परेशान करने वाली बात यह है कि अब नशीले पदार्थ बदल रहे हैं। पहले लोग चरस, अफीम, गांजा, फुक्की या करेक्शन फ्लूइड और बूट पॉलिश का नशा करते थे। अब जो लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं, वो ज्यादातर हेरोइन के एडिक्ट होते हैं। डॉ. खान कहते हैं कि एक-दो साल पहले तक 10 में से 2 हेरोइन लेते थे, लेकिन अब यह हालत है कि 10 में से 8 या 9 लोग इसका सेवन करते हैं। वे कहते हैं कि जो लोग इसका सेवन करते हैं, वे हमेशा मौत के मुहाने पर खड़े रहते हैं।
खान की बात कश्मीर के सबसे बड़े श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल में नशा करने वाले लोगों के आने से भी साबित होती है। यहां 2016-17 में 490 ऐसे लोग आए थे, जो नशे की लत के शिकार थे। डॉक्टर बताते हैं कि इस अस्पताल में नशे के जो लोग आते हैं, उनकी उम्र 10 से 30 साल के बीच होती है और इनमें से 80 से 90 फीसदी लोग हेरोइन की लत वाले होते हैं।

सवाल यह पैदा होता है कि हेरोइन इतनी तेज़ी से कश्मीर के युवाओं को अपनी तरफ क्यों खींच रहा है। दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में पुलिस के डी एडिक्शन सेंटर में काम करने वाली क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट मुदस्सिर अज़ीज़ कहती हैं कि यहां हेरोइन 2016 से आने लग गया था। दो साल पहले अज़ीज़ ने AIIMS के लिए एक सर्वे किया था, जिसमें उन्हें दक्षिण कश्मीर के 4 गांव से 1600 हेरोइन के नशे वाले लोगों की पहचान करनी थी और हैरत की बात यह रही कि उन्हें एक गांव में ही 1600 से ज़्यादा लोग मिल गए।
लोगों से बात करने पर पता चला कि कश्मीर में इस समय एक ग्राम हेरोइन लगभग 3000 रु. का बिकता है और इसका नशा करने वाल इंसान दिन में कम से कम एक दो ग्राम का सेवन तो कर ही लेता है। एक व्यापारी ने बताया कि मैंने अब तक सबसे ज़्यादा एक दिन में 30,000 रु. की हेरोइन का सेवन किया था। एक साल में उसने करीब 70 से 75 लाख रु. खर्च कर दिए हैं।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि मध्य और निचले वर्ग के जो लोग हेरोइन की चपेट में हैं, वे ड्रग सप्लायर के सबसे बड़े हथियार हैं। इन्हीं की मदद से ज्यादातर हेरोइन इधर से उधर की जाती है। अब सवाल यह है कि कश्मीर में इतनी कड़ी सुरक्षा के बीच यह जहर आता कहां से है? 30 जून 2019 को अटारी बॉर्डर पर एक ट्रक से 532 किलो हेरोइन, जो लगभग 2700 करोड़ की थी, पकड़ी गई। यह हेरोइन नमक से भरे ट्रक के नीचे थी।

पुलिस अधिकारी ने बताया कि अगर हम देखें तो यह सारा हेरोइन अफगानिस्तान से पाकिस्तान के रास्ते यहां पहुंचाया जाता है। कश्मीर में कहीं हेरोइन नहीं बनती है, सब बाहर से ही आती है। हालांकि, ड्रग कश्मीर पहुंचता कैसे है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
पिछले साल कश्मीर में एक ड्रग पॉलिसी तैयार की गई थी, लेकिन अभी तक इस पर कोई खास काम नहीं हुआ है। इस साल मई में 100 पुलिस कर्मियों की एक एंटी नारकोटिक्स स्पेशल स्क्वॉड ज़रूर बनाया गया है। अब देखने वाली बात यह होगी कि यह स्क्वॉड कितना कारगर होता है।
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