अलग-अलग विचारों की वजह से एक ही परिवार में भी वाद-विवाद हो सकते हैं। सिर्फ खुद को सही मानना और दूसरों के विचारों को महत्व नहीं देने पर समस्याएं बढ़ने लगती हैं। हमें दूसरों के विचारों को भी सम्मान देना चाहिए। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक राज्य के राजा-रानी अपने पुत्रों की वजह से दुखी थे।
राजा-रानी के दोनों ही पुत्रों के विचार एक-दूसरे से एकदम अलग थे। इस कारण दोनों के बीच लड़ाई-झगड़े होते रहते थे। ये देखकर राजा-रानी बहुत दुखी रहते थे। दोनों बूढ़े हो चुके थे। वे सोच रहे थे कि भविष्य में दोनों पुत्रों को ही राज्य का पालन करना था। ऐसे में मतभेद होना दोनों के लिए अच्छा नहीं है। अलग-अलग विचारों की वजह से ये दोनों एक-दूसरे को शत्रु समझने लगेंगे।
बहुत सोचने के बाद राजा को उपाय समझ आया, जिससे दोनों पुत्रों को समझाया जा सकता था। राजा ने दोनों पुत्रों की आंखों पर पट्टी बांध दी। इसके बाद दोनों को एक दीवार के पास ले गए। दीवार की एक तरफ जहां सूर्य की रोशनी आ रही थी, वहां बड़े बेटे को खड़ा कर दिया। दीवार की दूसरी तरफ जहां ठंडक थी। वहां छोटे बेटे को खड़ा कर दिया।
राजा ने दोनों से पूछा कि तुम्हारे आसपास का वातावरण कैसा है?
बड़े बेटे ने कहा कि यहां तो गर्मी है, जबकि छोटे बेटे ने कहा कि यहां ठंडक है। इसके बाद राजा ने दोनों की जगहें एक-दूसरे से बदल दीं। राजा ने फिर से वही सवाल पूछा। इस बार बड़े बेटे ने कहा कि अब यहां ठंडक है। जबकि छोटे बेटे ने कहा कि यहां तो गर्मी है।
इसके बाद राजा-रानी ने दोनों राजकुमारों की आंखों से पट्टी हटा दी। राजा ने दोनों को समझाया कि हमें दूसरों के विचारों को भी समझना चाहिए। जिस समय बड़े राजकुमार को गर्मी लग रही थी, उसी समय छोटे बेटे को ठंडक महसूस हो रही थी। जब दोनों राजकुमारों की जगहें बदली गईं तो दोनों के हालात और विचार भी बदल गए। सिर्फ हम ही सही हैं, ये सोचना गलत है।
हमें दूसरों के हालातों समझना चाहिए, उनकी जगह खुद को रखकर परिस्थितियों को परखना चाहिए। तभी हम सही-गलत को पहचान सकते हैं। दीवार वाले उदाहरण से दोनों राजकुमारों को माता-पिता की सीख समझ आ गई। इसके बाद दोनों राजकुमार एक-दूसरे के विचारों का सम्मान करने लगे और उनका विवाद खत्म हो गया।