बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के 30 शेयरों के संवेदी सूचकांक सेंसेक्स में इस साल काफी उठा-पटक रही है। इससे सेंसेक्स में सेक्टर के आधार पर भागीदारी में काफी उतार-चढ़ाव आया है। हालांकि, यह उतार-चढ़ाव नया नहीं है। 1985 से 2019 तक के इतिहास में सेंसेक्स ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। इस दौरान बाजार में ज्यादा भागीदारी वाले सेक्टर की हालत पतली हुई है। वहीं, बीच में शुरुआत करने वाले सेक्टर बड़े भागीदार बने हुए हैं।
मैटेरियल्स और कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी सेक्टर में बड़ा फेरबदल
सेंसेक्स में 1985 से 2019 तक की 35 साल की अवधि में सबसे बड़ा फेरबदल मैटेरियल्स और कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी सेक्टरमें हुआ है। 1985 में मैटेरियल्स सेक्टर सेंसेक्स का सबसे बड़ा हिस्सेदार था। करीब 11 सालों तक इस सेक्टर की बादशाहत बरकरार रही। 1997 के बाद से इस सेक्टर की हिस्सेदारी गिरती रही और 2019 में यह 10 फीसदी के आसपास आ गई। इसी प्रकार से करीब 10 साल तक 35 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी सेक्टर में 1996 के बाद से गिरावट शुरू हुई। आज इस सेक्टर की करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी है।
आज फाइनेंशियल सेक्टर की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी
1991 में तत्कालीन सरकार की ओर से किए गए सुधारों की बदौलत देश की अर्थव्यवस्था में तेजी का दौर शुरू हुआ। इसी की बदौलत 1995 के आसपास सेंसेक्स में फाइनेंशियल सेक्टर का पदार्पण हुआ। बैंकिंग शेयरों पर आधारित फाइनेंशियल सेक्टर की हिस्सेदारी में 10 साल तक कुछ खास बदलाव नहीं आया। 2007 से फाइनेंशियल सेक्टर ने सेंसेक्स में अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी शुरू की जो आज तक जारी है। 2019 में फाइनेंशियल सेक्टर की सेंसेक्स में 30 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है। 2019 में फाइनेंशियल सेक्टर सेंसेक्स का सबसे बड़ा हिस्सेदार भी रहा।
टेलीकॉम सेक्टर में ज्यादा बदलाव नहीं
फाइनेंशियल के साथ 1995 में सेंसेक्स में एंट्री लेने वाले टेलीकॉम सेक्टर की भागीदारी में 2019 तक ज्यादा बदलाव नहीं आया है। टेलीकॉम सेक्टर ने सेंसेक्स में 2000 में हिस्सेदारी में थोड़ी बढ़ोतरी की जो 2011 तक जारी रही। इसके बाद इस सेक्टर की हिस्सेदारी घट गई और यह अभी तक 2011 के स्तर तक ही बनी हुई है। 2019 में सेंसेक्स की करीब 5 फीसदी हिस्सेदारी थी।
2007 से 2014 तक के स्लोडाउन में सेंसेक्स का हाल
2018-19 के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक, 2007 से 2014 तक के स्लोडाउन के दौरान सेंसेक्स में सेक्टोरल इंडेक्स में काफी बदलाव आया। 2007 से 2010 के दौरान सेंसेक्स में मैटेरियल्स और फाइनेंशियल सेक्टर, जबकि 2010 से 2014 तक कंज्यूमर स्टेपल्स, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, हेल्थ, फाइनेंशियल, एनर्जी, कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी सेक्टर की हिस्सेदारी में इजाफा हुआ। 2007 के आसपास सेंसेक्स में पदार्पण करने वाला रियल एस्टेट सेक्टर इस स्लोडाउन में पूरी तरह से बर्बाद हो गया और यह 2019 तक वापसी नहीं कर पाया है।
सेक्टर के अनुसार कंपनियों का वर्गीकरण
यूटिलिटीज: इस सेक्टर में पावर, गैस और पावर ग्रिड से जुड़ी कंपनियों के शेयर शामिल हैं।
मैटेरियल्स : इस सेक्टर में सीमेंट, पेंट, सेरेमिक और एग्रो उत्पाद बनाने वाली कंपनियां शामिल हैं।
रियल एस्टेट: इसमें हाउसिंग प्रोजेक्ट का निर्माण और डवलप करने वाली कंपनियां शामिल हैं।
इंफ्रॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी: इसमें सॉफ्टवेयर और इससे जुड़ी सेवाएं देने वाली कंपनियों के शेयर शामिल हैं।
हेल्थ : इसमें बड़े-बड़े हॉस्पिटल्स और फार्मा कंपनियां शामिल हैं।
फाइनेंशियल्स : बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं देने वाली कंपनियां।
एनर्जी: कोल माइन, क्रूड रिफाइनिंग और ऑयल से जुड़ी कंपनियां।
कंज्यूमर स्टेपल्स : फूड, बेवरेजेस, टूथपेस्ट, डिटर्जेंट और हेयर ऑयल जैसे उत्पाद बनाने वाली कंपनियां।
कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी : ऑटोमोबाइल्स, होटल्स, अप्लायंसेज, फैशन और एंटरटेनमेंट से जुड़ी कंपनियां।