हिंसा भड़काने में भाजपा नेताओं की भूमिका का आरोप, पुलिस की कार्रवाई पर भी उठाए सवाल

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा को लेकर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पेश की है। इसमें आयोग ने हिंसा भड़काने में भाजपा नेताओं की भूमिका का आरोप लगाया है। साथ ही पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाए है। बता दें उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 23 से 27 फरवरी के बीच दंगे भड़क गए थे। इन दंगों के लिए दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने फेक्ट फाइंडिंग के लिए कमेटी गठित की थी। कमेटी ने अपनी सिफारिश के साथ 130 पेज की रिपोर्ट दी, जिसे आयोग ने 27 जून को स्वीकार कर लिया।

इस पर आगे कार्रवाई की मांग करते हुए आयोग ने उपराज्यपाल अनिल बैजल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को रिपोर्ट भेजी है। इस मामले में जानकारी देते हुए गुरुवार को आयोग की तरफ से कहा गया कि इस मामले में पुलिस की चार्जशीट काफी नहीं है। इस मामले में ईमानदारी से काम करने की जरूरत है। साथ ही रिपोर्ट में पूरे मामले में हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय कमेटी बनाने की सिफारिश की गई है।

अल्पसंख्यक आयोग की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में क्या-क्या

1.भाजपा नेताओं ने उकसाने वाले भाषण देने का आरोप | रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 तक दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के बीच भाजपा नेताओं ने कई भाषण दिए, जिसमें लोगों को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि कपिल मिश्रा के उकसाने वाले भाषण के तुरंत बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली के अलग-अलग इलाके में हिंसा भड़की।

2.हिंसा को नियोजित, संगठित और लक्षितबताया | रिपोर्ट के अनुसार हथियारों के साथ भीड़ ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में लोगों पर हमले किए, लूटपाट की और संपत्तियों को जला दिया। रिपोर्ट के अनुसार भीड़ मुस्लिमों के घर, वाहन, मस्जिद और दूसरी प्रापर्टी को देखकर हमला कर रही थी। जिन प्रापर्टी के मालिक हिंदू थे, लेकिन किराए पर मुस्लिम ने ले रखा था। उनकी इमारत को छोड़ दिया गया, लेकिन सामान को बाहर निकालकर लूट लिया गया या जला दिया गया। रिपोर्ट में हिंसा को नियोजित, संगठित और लक्षित बताया गया है।

3.धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाकर क्षतिग्रस्त करने का आरोप | रिपोर्ट के अनुसार भीड़ ने 11 मस्जिद, 5 मदरसे एक मंदिर और एक कब्रिस्तान को भी निशाना बनाकर हमला कर क्षतिग्रस्त किया गया। भीड़ ने मस्जिद और मदरसों पर हमला कर क्षतिग्रस्त किया या जला दिया। वहीं, मुस्लिम बाहुल इलाकों में गैर मुस्लिम धार्मिक स्थलों की मुस्लिम लोगों ने रक्षा की। इसके चलते बड़ी संख्या में मुस्लिम लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। वहीं, कोरोना संक्रमण रोकने लागू लॉकडाउन लागू होने के चलते उनको रिलीफ कैंप भी छोड़ना पड़ा।

4.पुलिस से मदद मांगने पर कार्रवाई नहीं |रिपोर्ट के अनुसार पुलिस कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया। पुलिस के आपातकालीन कॉल नंबर पर बार-बार फोन करने के बावजूद समय पर नहीं पहुंची। कुछ लोगों ने इलाके में गश्त कर रही पुलिस से मदद मांगी, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मदद करने से मना कर दिया कि उनके पास कार्रवाई करने का कोई आदेश नहीं है। पुलिस ने गैरकानूनी तरीके से जमा होने वाली भीड़ और हिंसा को रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस ने हिंसा पीड़ितों की शिकायतों पर कार्रवाई करने में पहले तो देरी की। वहीं, कई गंभीर मामलों में एफआईआर भी नहीं की गई।

पुलिस ने धर्म के आधार पर शपथ-पत्र में बताया मरने वालों 52 में से 12 हिन्दू

नई दिल्ली| इधर नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों में मारे गए लोगों के बारे में दिल्ली पुलिस ने पहली बार धर्म के आधार पर जानकारी दी है। दिल्ली पुलिस की तरफ से यह जानकारी शपथ-पत्र के मार्फत दिल्ली उच्च न्यायालय में दी गई। 13 जनवरी को हाईकोर्ट में दिए इस हलफनामे में बताया गया कि मरने वाले कुल 52 लोगों में 12 लोग हिंदू थे। वहीं शेष 40 लोग विशेष समुदाय से थे।

इन दंगों में दिल्ली पुलिस के हेड-कॉन्स्टेबल रतन लाल की भी जान चली गई थी। उनकी मौत गोली लगने से हुई थी। इस तरह दिल्ली दंगों में जान गंवाने वालों में दो तिहाई लोग विशेष समुदाय के थे। दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में हिंदुओं और मुस्लिमों के घरों और दुकानों को हुए नुकसान का अलग-अलग ब्यौरा भी दिया है।

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उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 23 से 27 फरवरी के बीच भड़की हिंसा की एक तस्वीर।