महामृत्युंजय मंत्र की रचना की थी मार्कंडेय ऋषि ने, इस मंत्र के प्रभाव से अल्पायु बालक मार्कंडेय को शिवजी ने दिया अमर रहने का वरदान

अभी सावन माह चल रहा है। इस माह शिवलिंग पर जल चढ़ाकर मंत्रों का जाप करना चाहिए। खासतौर पर महामृत्युंजय मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार इस मंत्र के जाप से आत्मविश्वास बढ़ता है, अनजाना भय खत्म होता है, मन को शांति मिलती है और विचार सकारात्मक बनते हैं।

ये है महामृत्युंजय मंत्र – ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्द्धनम्। ऊर्वारुकमिव बंधनात, मृत्योर्मुक्षिय मामृतात्।।

इस मंत्र का सरल अर्थ यह है कि हम त्रिनेत्र भगवान शिव का मन से स्मरण करते हैं। आप हमारे जीवन की मधुरता को पोषित और पुष्ट करते हैं। जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर अमृत की ओर अग्रसर हों।

पं. शर्मा ने बताया कि महामृत्युंजय मंत्र की रचना मार्कंडेय ऋषि ने की थी। इस संबंध में कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार प्राचीन समय में मृगशृंग ऋषि और सुव्रता की कोई संतान नहीं थी। तब उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप किया। शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि आपके भाग्य में संतान सुख नहीं है, लेकिन आपने तप किया है इसलिए हम आपको पुत्र प्राप्ति का वर देते हैं। लेकिन, ये संतान अल्पायु होगी, इसका जीवन 16 वर्ष का ही होगा।

बालक मार्कंडेय ने रचा महामृत्युंजय मंत्र

कुछ समय बाद ऋषि के यहां पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम मार्कंडेय रखा। माता-पिता ने पुत्र को ज्ञान प्राप्त करने के लिए अन्य ऋषियों के आश्रम में भेज दिया। इसी तरह 15 वर्ष व्यतीत हो गए। जब बालक मार्कंडेय अपने घर आया तो उसके माता-पिता दुखी थे। माता-पिता ने उसके अल्पायु होने की बात बताई। मार्कंडेय ने कहा कि आप चिंता न करें, ऐसा कुछ नहीं होगा।

मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगा। इस तरह एक वर्ष व्यतीत हो गया। मार्कंडेय की की आयु 16 वर्ष हो गई थी। यमराज उसके सामने प्रकट हुए तो बालक ने शिवलिंग को पकड़ लिया। यमराज उसे ले जाना चाहते थे, तभी वहां शिवजी प्रकट हुए। शिवजी ने कहा कि हम इस बालक की तपस्या से प्रसन्न हैं और इसे अमरता का वरदान देते हैं।

शिवजी ने मार्कंडेय से कहा कि अब से जो भी भक्त महामृत्युंजय मंत्र का जाप करेगा, उसके सभी कष्ट दूर होंगे और वह असमय मृत्यु के भय से भी बच जाएगा।

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