चंद्र की सोलहवी कला को कहते हैं अमा; अमावस्या पर सूर्य-चंद्र रहते हैं एक ही राशि में, इसे सूर्य-चंद्र संगम, अमावस भी कहते हैं

20 जुलाई को सावन माह की अमावस्या है। इसे हरियाली अमावस्या कहते हैं। सोमवार को होने से इसे सोमवती अमावस्या भी कहते हैं। हिन्दी पंचांग में एक माह 15-15 दिनों के दो भागों या पक्षों में बंटा होता है। एक है शुक्ल पक्ष और दूसरा है कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कला बढ़ती हैं और पूर्णिमा पर पूरा चंद्र दिखाई देता है। कृष्ण पक्ष में चंद्र कलाओं का क्षय होता है यानी घटती हैं और अमावस्या पर चंद्र पूरी तरह अदृश्य हो जाता है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार पंचांग को लेकर भी मतभेद हैं। कुछ पंचांगों में शुक्ल पक्ष के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि से माह की शुरुआत मानी जाती है और जबकि कुछ पंचांगों में कृष्ण पक्ष के पहले दिन से माह शुरू होता है। कृष्ण पक्ष का पंद्रहवां दिन यानी अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है।

स्कंद पुराण के अनुसार चंद्र की सोलहवीं कला को अमा कहा गया है। स्कंद पुराण में लिखा है कि-

अमा षोडशभागेन देवि प्रोक्ता महाकला।

संस्थिता परमा माया देहिनां देहधारिणी ।।

इस श्लोक का अर्थ यह है कि चंद्र की अमा नाम की महाकला है, जिसमें चंद्र की सभी सोलह कलाओं की शक्तियां शामिल हैं। इसका क्षय और उदय नहीं होता है।

सूर्य और चंद्र रहते हैं एक राशि में

अमावस्या तिथि पर सूर्य और चंद्र एक साथ एक ही राशि में रहते हैं। इस अमावस्या पर ये दोनों ग्रह कर्क राशि में रहेंगे। इसी वजह से इस तिथि को सूर्य-चंद्र संगम भी कहते हैं।

इस तिथि पर करना चाहिए पितरों के लिए धूप-ध्यान

अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है। इस दिन दोपहर में कंडा जलाकर उस पर गुड़-घी अर्पित करके पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए।

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