ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान इयान चैपल ने कहा कि क्रिकेट में लागू डीआरएस सिस्टम में बदलाव की बेहद जरूरत है। इसका रिव्यू किया जाना चाहिए। इस नियम के कारण आज अंपायर को शर्मिंदा होना पड़ रहा है। साथ ही युवा खिलाड़ियों में विरोध की भावना भी बढ़ती जा रही।
इयान ने क्रिकेट की वेबसाइट ईएसपीएनक्रिकेइंफो के लिए कॉलम लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि अंपायर का फैसला ही सही माना जाता है। इसको लेकर आप उनसे बहस नहीं कर सकते हैं, लेकिन आज डीआरएस सिस्टम के कारण अंपायर के फैसले को चुनौती दी जाती है।
डीआरएस से यंग क्रिकेटर्स का व्यवहार बदला
उन्होंने कहा कि पहले के समय में युवा क्रिकेटर्स को सबसे पहले अनुशासन और खुद पर नियंत्रण रखने की सीख दी जाती थी। वहीं, डीआरएस के लागू होने के बाद युवाओं के व्यवहार में बदलाव आया है। यंग प्लेयर सेल्फ कंट्रोल खो रहे हैं। उनके अंदर विरोध की भावना आ रही है।
इंग्लैंड-वेस्टइंडीज के बीच पहले टेस्ट में अंपायर को शर्मिंदा होना पड़ा
चैपल ने इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के बीच चल रही मौजूदा सीरीज का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, ‘‘सीरीज के पहले टेस्ट में अंपायर रिचर्ड केटलबोरो के तीन फैसलों को डीआरएस सिस्टम के कारण बदल दिया गया था। इसको लेकर उनके चेहरे पर शर्मिंदगी साफ नजर आ रही थी। केटलबोरो के साथ मेरी सहानुभूति है। वे आईसीसी अंपायर पैनल के बेहतर अंपायरों में से एक हैं। इस महामारी के समय में भी तीसरे अंपायर की वापसी यह दिखाने के लिए काफी है कि कहीं न कहीं इस सिस्टम में हेराफेरी हो रही है।’’
बीसीसीआई को भी डीआरएस पर विश्वास नहीं था
पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने कहा, ‘‘क्रिकेट में ऐसा कोई सिस्टम या नियम नहीं होना चाहिए, जिससे की खिलाड़ियों को फैसला लेने का अधिकार मिल जाए। एक समय था जब बीसीसीआई को भी इस सिस्टम पर विश्वास नहीं था, लेकिन मुझे तो शुरू से भरोसा नहीं रहा है। मैं हमेशा से मानता हूं कि अंपायर के पास ही सबसे ज्यादा पावर होनी चाहिए। मुझे लगता है कि डीआरएस में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी पर टीवी प्रोडक्शन कंपनी का नहीं, बल्कि अधिकारियों नियंत्रण होना चाहिए’’
डीआरएस 2008 में हुआ लागू
डिसीजन रिव्यू सिस्टम (डीआरएस) का इस्तेमाल इंटरनेशनल क्रिकेट में 2008 से शुरू हुआ। इसकी मदद से दोनों टीमों में से कोई भी अंपायर के आउट देने या नहीं देने के फैसले को चैलेंज कर सकती हैं। इसके बाद टीवी रिप्ले से थर्ड अंपायर तय करता है कि बल्लेबाज आउट है या नहीं। इसके बाद भी यदि थर्ड अंपायर संतुष्ट नहीं है तो वह मैदानी अंपायर के फैसले पर मुहर लगाता है। यदि डीआरएस लेने पर अंपायर का फैसला गलत होता है तो टीम के डीआरएस लेने की संख्या बरकरार रहती है। अंपायर का फैसला सही होने डीआरएस का विकल्प खत्म हो जाता है।