सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी का रिश्ता आपसी भरोसे, साथ और साझा अनुभवों पर टिका होता है। अगर ये चीजें लंबे समय तक नहीं हों, तो शादी सिर्फ कागजों पर रह जाती है। कोर्ट ने आगे कहा कि शादी का उद्देश्य दोनों की खुशी और सम्मान है, न कि तनाव और विवाद। कोर्ट ने यह टिप्पणी मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखते हुए की, जिसमें 20 साल से अलग रह रहे सॉफ्टवेयर इंजीनियर दंपति को तलाक देने का आदेश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक मंजूर करते हुए पत्नी को 50 लाख रुपए का देने का आदेश दिया। इसके साथ ही बेटी की पढ़ाई और भविष्य के खर्चों के लिए भी 50 लाख रुपए देने को कहा। यह रकम पति को चार महीने के अंदर चुकानी होगी। कोर्ट ने कहा;- जब कोई शादी दोनों पक्षों के लिए दुख और तनाव का कारण बन जाए, तो उसे जबरदस्ती चलाना सही नहीं है। इस मामले में पति-पत्नी को अलग होकर अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करने का मौका दिया जाना चाहिए। शादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की 3 टिप्पणियां पत्नी 20 साल से मायके से नहीं लौटी तो पति ने तलाक मांगा इस दंपति की शादी 30 जून 2002 को हुई थी। 2003 में उनके घर एक बेटी का जन्म हुआ। बेटी के जन्म के बाद पत्नी अपने मायके गईं, लेकिन फिर वापस नहीं लौटीं। तब से पति-पत्नी अलग रह रहे हैं। पति ने तलाक के लिए अदालत का रुख किया और कहा कि पत्नी ने उनके और उनके परिवार पर झूठे आरोप लगाए और शिकायतें दर्ज कराईं, जिससे उन्हें मानसिक और भावनात्मक तकलीफ हुई। पत्नी ने इस तलाक का विरोध किया था, लेकिन अदालत ने उनकी दलीलें खारिज कर दीं। ——————————————————— सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें …. SC बोला- बाल विवाह जीवनसाथी चुनने का अधिकार छीनता है, इसे पर्सनल लॉ से नहीं रोका जा सकता; कानून में कई खामियां बाल विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर को फैसला सुनाया। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच 141 पन्नों के फैसले में कहा, हमने बाल विवाह की रोकथाम पर बने कानून (PCMA) के उद्देश्य को देखा और समझा। इसके अंदर बिना किसी नुकसान के सजा देने का प्रावधान है, जो अप्रभावी साबित हुआ। पूरी खबर पढ़ें … सुप्रीम कोर्ट बोला- बिना रस्मों के हिंदू विवाह मान्य नहीं, ये नाचने-गाने और खाने-पीने का इवेंट नहीं, न व्यापारिक लेन-देन है सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह कोई नाचने-गाने या खाने-पीने का मौका भर नहीं है। न ये कोई व्यापारिक लेन-देन है। जब तक इसमें रस्में नहीं निभाई जातीं, तब तक इसे हिंदू मैरिज एक्ट के तहत वैध नहीं माना जा सकता है। पूरी खबर पढ़ें …