रिलेशनशिप- बेटी राहा को लोरी सुनाते हैं रणबीर:बच्चे की परवरिश में पिता की भूमिका बहुत अहम, कैसे बनें अच्छे पिता, एक्सपर्ट के 7 सुझाव

एक बच्चे को संभालने की जितनी जिम्मेदारी एक मां की होती है, उतनी ही पिता की भी होती है। जैसे मां और नवजात बच्चे के रिश्ते की तुलना इस दुनिया में और किसी रिश्ते से नहीं की जा सकती। वैसे ही एक पिता का अपने बच्चे के साथ जो एक अनोखा और अटूट रिश्ता होता है, वो भी अपने आप में यूनीक है। वह सिर्फ पिता ही महसूस कर सकते हैं। हाल ही में आलिया भट्ट ने अपने पति रणबीर और बेटी राहा के रिश्ते को लेकर कुछ बहुत सुंदर बातें कहीं। उन्होंने बताया कि राहा और रणबीर के बीच एक स्पेशल फ्रेंडशिप है। राहा के लिए रणबीर खुद से रैंडम खेल बनाते रहते हैं। अचानक कहेंगे, “चलो अब हम कबर्ड के कपड़े छूकर देखेंगे।” फिर ‘ये वैल्वेट है,’ ‘ये कॉटन है’ टाइप उनका यूनीक खेल शुरू हो जाता है। सबसे खूबसूरत बात तो यह है कि रणबीर बिटिया के लिए लोरी भी गाते हैं और वो भी मलयालम में। दरअसल, राहा की केयर टेकर केरल से हैं और वे उससे मलयालम में बातें करती हैं, गीत गाती हैं, लोरी सुनाती हैं। जब भी राहा को नींद आ रही होती है तो वो ‘वावावो’ कहकर इशारा करती है। अब रणबीर भी इस बात को समझने लगे हैं। रणबीर ने राहा के लिए ‘उन्नी वावावो’ गाना याद कर लिया है और जब भी वह सोती है, वो उसे यही गाना सुनाते हैं। कुछ समय पहले एक इंटरव्यू में रणबीर ने कहा था कि वो बर्पिंग एक्सपर्ट हैं। छोटे बच्चों को दूध पिलाने के बाद कंधे पर टिकाकर डकार दिलवानी होती है, वरना बच्चा दूध उलट सकता है। रणबीर ने कहा था कि राहा को दूध कोई भी पिलाए, लेकिन बर्पिंग की ड्यूटी उसके पापा की होती थी। आलिया बताती हैं कि रणबीर एक पिता के रूप में बहुत केयरिंग हैं। तो आज हम रिलेशनशिप कॉलम में बात करेंगे बच्चे के पालन-पोषण में पिता की भूमिका की। साथ ही जानेंगे कि- बच्चे के पालन-पोषण में पिता का रोल कितना अहम बच्चे के पालन-पोषण में पिता का रोल बहुत जरूरी और अहम है। कोई भी पुरुष बच्चे का बाप तो बन सकता है, लेकिन पिता बनने में पूरी जिंदगी लग जाती है। पिता हर बच्चे के जीवन में एक ऐसी भूमिका निभाते हैं, जिसे कोई और नहीं निभा सकता। अगर बच्चा लड़की है तो पिता उसकी जिंदगी के पहले पुरुष होते हैं, जिससे वह प्रेम, सम्मान, दुलार सीखती है। अगर बच्चा लड़का है तो पिता उसकी जिंदगी के पहले मेल रोल मॉडल होते हैं। बच्चे अपने पिता को कॉपी करते हैं और उनके जैसा बनना चाहते हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, नवजात बच्चे की देखभाल में पिता की भागीदारी बच्चे और मां दोनों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी है ही। साथ ही यह पिता के मानसिक स्वास्थ्य पर भी बहुत सकारात्मक असर डालती है। नवजात बच्चे की भाषा को पिता कैसे समझें कुछ लोग पिता होने के ख्याल से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे यह काम अच्छे से नहीं कर सकते हैं। या कुछ लोगों का सोचना होता है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं बच्चों को बेहतर तरह से संभालती हैं। लेकिन यह बिल्कुल सही नहीं है। पुरुष हो या महिला, बच्चे को दोनों की जरूरत होती है। चाइल्ड काउंसलर डॉ. जगमीत कौर चावला कहती हैं कि वो जमाना गया, जब बच्चे की पूरी जिम्मेदारी को सिर्फ मां के सिर डाल दी जाती थी और पिता बस उसे थोड़ा लाड़-दुलार करके काम पर निकल जाते थे। लेकिन आज वक्त बहुत बदल गया है। लोगों की सोच में भी बदलाव आया है। अब पिता भी बच्चे की पूरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और यह अच्छी बात है। जो पिता बच्चे की जिम्मेदारी से घबराते हैं, उन्हें सबसे पहले बच्चे और उसकी भाषा को समझने की जरूरत है। इस विषय पर अमेरिकन राइटर जेसन पीटरसन ने एक किताब लिखी है- ‘फर्स्ट टाइम डैड।’ इस किताब में बताया गया है कि जो पहली बार पिता बन रहे हैं, वो कैसे अपने नवजात बच्चे के साथ सुंदर रिश्ता बना सकते हैं। यह किताब कुछ इस तरह के सवालों के जवाब सरल भाषा में देती है– नीचे दिए ग्राफिक में देखिए डिटेल– शिशु की भाषा कैसी होती है जन्म से ही शिशु कई तरह की आवाजें निकालता है, जैसे रोना, हंसना, सांस लेना, खांसना, डकार लेना, वगैरह। यही आवाजें और हाथ-पैर से किए गए कुछ इशारे बच्चे की भाषा होते हैं, जिसे माता-पिता को समझना होता है। लगभग तीन महीने की उम्र से बच्चा मुस्कुराने लगता है। उसके एक-दो महीने बाद वो चिल्लाना और तरह-तरह की आवाजें निकालना शुरु कर देता है। 8 से 9 महीने की उम्र में बच्चा आपकी शारीरिक भाषा समझने लगता है। जैसेकि आप उसे जो भी इशारे करते हैं, उस ओर देखने लगता है। नवजात बच्चे की भाषा कुछ इस तरह होती है- पिता बनने में बहुत खुशी और सुख है जेसन पीटरसन लिखते हैं कि मां ने बच्चे को 9 महीने अपने गर्भ में रखा है। उसका बच्चे के साथ बायलॉजिकल जुड़ाव भी है। लेकिन पिता का बच्चे के साथ असली रिश्ता उसके जन्म के बाद शुरू होता है। इसलिए इस रिश्ते को बनाने और मजबूत करने के लिए पिता को थोड़ा श्रम और समर्पण करना पड़ता है। लेकिन इस श्रम का जो प्रतिदान है, वो बहुत बड़ा है। पिता बनकर, पिता के रूप में बच्चे की आधी जिम्मेदारी निभाकर सुख भी बहुत मिलता है।