सेलेब्स, नेताओं से पाकिस्तानी तक गया के पंडों के क्लाइंट:अकाल मौत में धामी पंडा ही करवाते हैं पिंडदान, आखिर कोई पंडा बनता कैसे है

मेरे पिता शंभू पांडे गया में पंडा हैं। दादा का नाम श्याम पांडे था और परदादा गोविंद लाल जी। सभी पंडा का ही काम करते थे। हम सगे और चचेरे मिलाकर कुल 5 भाई हैं। सभी के सभी तीर्थ यात्रियों को पिंडदान करवाते हैं। ये कहना है 26 साल के पंडा राजा पांडे का। उन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई कर रखी है। वे उत्तर प्रदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का पिंडदान करवाते हैं। उनसे पहले ये काम उन्हीं के परिवार के लोग करते थे। अब उन्हें ये जिम्मेदारी मिली है। 17 सितंबर से गया में पितृपक्ष मेला चल रहा है। मेले में आने वाले लाखों तीर्थयात्री अपने पूर्वजों का पिंडदान कर रहे हैं। इसमें सबसे प्रमुख भूमिका पंडा की होती है। इनके सुफल (यज्ञ पूर्ण और पूर्वजों को मोक्ष की गति मिलने का आशीर्वाद) दिए बगैर पिंडदान को पूर्ण माना जाता है। बुजुर्गों के साथ ही अब युवा पंडा की भी गया में भीड़ बढ़ गई है। पंडा समूह की कई पीढ़ियों के लोग यहीं काम कर रहे हैं। बॉलीवुड सेलेब्स जैसे संजय दत्त, राज कपूर से लेकर पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, आर वेंकटरमन, मीरा कुमार, मोरारजी देसाई, कस्तूरबा गांधी, बूटा सिंह तक गया के पंडों से पिंडदान करवा चुके हैं। पाकिस्तान में रहने वाले कई हिंदू परिवार भी इनके क्लाइंट हैं। गया के पंडा समूह की एक खास बात है कि उनके पास पूर्वजों की सटीक जानकारी मिल जाती है। यहां पंडा पोथी (पूर्वजों का बही-खाता) में 300 साल पहले से लेकर अब तक का अपडेट मिल जाता है। इसमें पूर्वजों का नाम, उनके साइन, वो कब गया जी आए थे, यह सब कुछ अपडेट रहता है। इस रिपोर्ट में पढ़िए पंडों के बारे में सबकुछ… पहले जानिए, पंडा कौन हैं और ये बनते कैसे हैं गयाजी धाम में दो तरह के पंडा हैं। एक हैं गया पाल पंडा और दूसरे धामी पंडा। दोनों का काम बंटा हुआ है। गया पाल पंडा विष्णुपद मंदिर में पिंडदान करवाते हैं। जबकि धामी पंडा प्रेतशिला पर्वत पर पिंडदान की प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं। विष्णुपद मंदिर के आसपास पंडा समूह के 300 घर हैं। करीब 3000 पंडा यहां पिंडदान की प्रक्रिया से जुड़े हुए हैं। इनमें लगभग 800 युवा हैं। सभी के बीच पूरे देश के डिस्ट्रिक वाइज क्षेत्र बंटे हुए हैं। विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के भी अलग-अलग पंडा हैं। किसी डिग्री की जरूरत नहीं उत्तर प्रदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का पिंडदान कराने वाले पंडा राजा पांडे के पिता भी पंडा हैं और पूर्वज भी इसी काम से जुड़े थे। पंडा राजा पांडे बताते हैं कि पंडा बनने और इस काम को कराने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती है और ना ही हमारे पास डिग्री है। हम पूर्वजों द्वारा किए गए कार्य को आगे बढ़ाते हैं। मेरे पिता पंडा हैं। दादा और परदादा भी पंडा का काम करते थे। 5 भाई, सभी कराते हैं पिंडदान पंडा राजा पांडे बताते हैं- ‘मैंने अपने पिता के साथ रहते हुए काम सीखा है। इसके लिए पढ़ना भी पड़ता है। श्राद्ध से जुड़े कर्मकांड और वेद की शिक्षा मैंने और मेरे भाइयों ने गया स्थित उत्तराधी मठ से ली है।’ दान का कोई हिसाब नहीं पंडा राजा पांडे ने बताया कि ‘मैं और मेरे भाई बड़े ही शौक से बचपन से ही पूजा-पाठ और पिंडदान करते चले आ रहे हैं। ऐसा ही पंडा समाज का हर युवा करता है।’ उन्होंने कहा कि ‘श्राद्ध कर्म दान से जुड़ा विषय है। इसी काम के बदले कोई दान में 100 रुपए भी देता है तो कोई लाख रुपए भी खर्च कर देता है। दान में वस्त्र, सोना-चांदी, जमीन, रुपए, अन्न सभी शामिल होते हैं। जैसा यजमान होता है और जैसी जिसकी श्रद्धा होती है, वह वैसा ही दान दे जाता है। हम लोग इसका कोई हिसाब नहीं रखते हैं।’ दान दक्षिणा से चलता है घर पंडा दीपू लाल भइया ने बताया कि ‘पहले 17 दिनों के पितृपक्ष के दौरान मिलने वाले दान दक्षिणा, जमीन, सोना चांदी से ही घर परिवार चलता था। लेकिन अब तो साल भर पिंडदान होता है। सभी खुशहाल हैं। दान का कोई हिसाब नहीं रखा जाता है। एक तरफ से आता है तो दूसरी ओर से निकल जाता है।’ जिले के अनुसार होता है बंटवारा पुरोहित पंडा प्रेम नाथ टइया ने बताया कि ‘पंडों के बीच क्षेत्र का बंटवारा आपसी सहमति से पूर्वजों के समय से ही चला आ रहा है। परिवार के बढ़ने पर भी आपसी सहमति से पंडा समाज की उपस्थिति में क्षेत्र का निर्धारण कर लिया जाता है। या फिर पंडे के वंशज नहीं होने की स्थिति में उसके नजदीकी परिवार के सदस्य को वह क्षेत्र दिया जाता है। जैसे अगर किसी पंडे के पास आरा जिला है तो उनके ही वंशज या परिवार के सदस्य उस जिले से आने वाले तीर्थयात्री को सुफल देंगे।’ नेपाल देश के एक मात्र पंडा लाल मोहरिया ताटक कौन कितना बड़ा पंडा और उसके पास कितना क्षेत्रफल इस बात को लेकर पंडा समाज एक मत नहीं है। सभी का दावा है कि ‘हमारे पास बड़ा क्षेत्र है। क्योंकि यदि गुजरात के तीर्थयात्री ने कह दिया कि मैं महाराष्ट्र वाले पंडा से ही सुफल लूंगा तो कोई उन्हें रोक नहीं सकता है। लेकिन इन विवादों से अलग एक पंडा ऐसे भी हैं जिनके पास बड़ा क्षेत्र है। लाल मोहरिया ताटक अकेले एक देश नेपाल के तीर्थयात्रियों के पंडा है।’ क्लाइंट कैसे बनाते हैं पंडा पंडा राजा पांडे ने बताया कि पूर्वजों के जमाने से उत्तर प्रदेश का इलाका हमारे पास है। हमें क्लाइंट बनाने की जरूरत नहीं पड़ती, वो पहले से ही हमारे संपर्क में हैं। वहां से आने वाले श्रद्धालु हमारे यहां तो आते ही हैं। हमारे पूर्वज भी उनके गांव-घर जाया करते थे। अब हम लोग भी जाते हैं। वहां जाने पर एक-दूसरे के कुशल क्षेम के बारे में बातें होती है। उनसे हमें मान-सम्मान और दान-दक्षिणा भी मिलता है। इस तरह वो हमारे संपर्क में रहते हैं। साथ ही अगर कोई श्रद्धालु पहली बार गयाजी आते हैं, तो उनके राज्य के बारे में पूछकर उन्हें उस क्षेत्र के पंडा के पास भेज दिया जाता है। उन्होंने बताया कि जो पंडा अपने क्षेत्र में जितना घूमते हैं, उनका दायरा उतना ही बड़ा होता चला जाता है। अपने क्षेत्र के यजमान से संपर्क बनाए रखना ही इस पेशे का अहम सोर्स है, जो सभी रास्ते को खोलता है। जिन पंडों का घूमना कम होता है, उनके संपर्क में कम लोग होते हैं। कैसे ढूंढ़ते हैं 300 साल के पूर्वजों का नाम और साइन पंडा प्रेम नाथ टइया ने बताया कि जिस इलाके से लोग आते हैं, वे अपने क्षेत्र के लोगों से अपने पंडा की पूरी जानकारी लेकर आते हैं। इसके बाद वे हमसे मिलते हैं। वो सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि उनके पूर्वजों में कोई गयाजी आए थे या नहीं। इस पर हम लोग उस शहर, मोहल्ले या गांव से आने वाले लोगों का रिकॉर्ड जो हमारे पूर्वजों ने अपने बही खाते में नोट किया है, उसे ढूंढते हैं। बही खाते में सब कुछ अल्फा बेटिकली हिसाब से लिखा है। उन्होंने बताया कि हम तीर्थयात्री के पूर्वजों के नाम और गांव से खाता में तलाशते हैं और वे 5 मिनट के अंदर मिल जाते हैं। उनका नाम, राज्य, जिला और उनका साइन होता है। बहुत से ऐसे हैं, जिनके घर से कोई नहीं आया हुआ होता है तो उनकी जानकारी नहीं मिल पाती है। लेकिन जिनकी मिलती है, वे खुशी से झूम उठते हैं। उनकी चेहरे की खुशी देखते ही बनती है। उनकी खुशी देख कर हम भी खुश होते हैं। इस पेशे में मान-सम्मान, ऐश्वर्य भी राजा पांडे ने अपने पंडा बनने के पीछे की वजह से उन्होंने कहा कि हमारे समाज की उत्पत्ति ब्रह्मा ने की है। उन्होंने ही इस काम के लिए निर्देशित कर रखा है। इसलिए पीढ़ी दर पीढ़ी यह काम किया जा रहा है और आगे भी किया जाएगा। साथ ही इस पेशे में मान-सम्मान, ऐश्वर्य, भक्ति, साधना सब कुछ है। अब तक मात्र दो लोगों ने किया ई-पिंडदान विष्णुपद मन्दिर प्रबन्धकारिणी समिति के अध्यक्ष शम्भू लाल बिट्ठल का कहना है कि ई पिंडदान बेकार की बातें है। शास्त्रों में जब कहा गया कि पूर्वजों को मोक्ष तभी मिलेगा जब उनके वंशज गया जी में आकर अपने हाथों से श्राद्ध करेंगे। ऐसे में ई पिंडदान का कोई महत्व या आधार नहीं बनता है। हमारा समाज इसका विरोध करता है। इस बार भी ई पिंडदानियों की संख्या बेहद कम है। इस बार अब तक मात्र दो लोगों ने ई पिंडदान किया। जबकि पिछले साल इनकी संख्या 8 थी। ये खबर भी पढ़िए… प्रेतशिला पर भूतों को सत्तू चढ़ाने की परंपरा:गया में आज पिंडदान का तीसरा दिन, तीर्थ यात्रियों की उमड़ी भीड़ गया में प्रेतशिला और उसके तलहटी में पिंडदान से जुड़े विधि विधान की क्रिया को सम्पन्न कराया जा रहा है। यहां पर भूतों को सत्तू चढ़ाने की परंपरा है। प्रेतशिला का परिसर तीर्थ यात्रियों से पटा पड़ा है। ब्राह्मण के मन्त्रोच्चार से प्रेत शिला गुंजायमान है। पंडित अपने अपने तरीके से शास्त्रों का हवाला देते हुए प्रेत शिला पर पिंडदान की महत्ता का बखान जोर शोर से कर रहे हैं। पिंडदान करने वाले तीर्थ यात्री भी बड़े मनोयोग से उनकी बातें सुन रहे हैं और उनके दिए जा रहे दिशा निर्देशों के तहत पूजा से जुड़े विधि विधान को सम्पन्न कर रहे हैं। पूरी खबर पढ़िए