KGF मिनी इंग्लैंड से भूतिया शहर बना:30 लाख टन सोने का भंडार, पर माइनिंग बंद; लोग बोले- कुली जैसी जिंदगी

KGF में मिले सोने की कीमत बहुत ज्यादा होती है, लेकिन उसे बाहर निकालने वाले हाथों का भी अपना एक इतिहास होता है। यह डायलॉग डायरेक्टर प्रशांत नील और एक्टर यश की कन्नड़ फिल्म KGF का है। KGF यानी कोलार गोल्ड फील्ड्स। यह कर्नाटक के कोलार जिले में स्थित एक शहर है। बेंगलुरु से करीब 100 KM दूर इस जगह का इतिहास और वर्तमान फिल्म से काफी अलग है। ब्रिटिश और भारत सरकार ने 1880 से 2001 तक, 121 सालों के दौरान KGF से 900 टन से ज्यादा सोना निकाला। 2001 में गोल्ड माइनिंग पर रोक लग गई। KGF को एक समय ‘सोने का शहर’ और ‘मिनी इंग्लैंड’ कहा जाता था। आजादी के सालों पहले यहां के लोगों तक वो हर सुविधाएं पहुंच गई थीं, जो तब देश के गिने-चुने शहरों में होती थीं, लेकिन अब इसे भूतिया शहर (वीरान) कहा जाता है। पिछले 24 सालों में KGF ने समृद्धि से गरीबी तक का सफर देखा है। हाल ही में KGF के मजदूरों और कर्मचारियों के एक संगठन ने PM मोदी को लेटर लिखकर दोबारा माइनिंग शुरू करवाने की मांग की। दावा है कि अगर KGF में माइनिंग शुरू हुई तो भारत के लिए अगले 100 सालों तक यह फायदे का सौदा हो सकता है। पढ़िए ये रिपोर्ट… KGF में साउथ अफ्रीका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे गहरी सोने की खदाने हैं। यहां छोटे-बड़े कुल 16 माइनिंग शाफ्ट (गहरे गड्ढे) हैं। करीब 12 KM के दायरे में फैले इन शाफ्ट्स की गहराई लगभग 11 हजार फुट, करीब 3.5 KM है, जो जमीन के नीचे करीब 1400 KM लंबे टनल के जरिए एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कोलार गोल्ड फील्ड्स में सोने के भंडार का पता लगाने के लिए 1994, 1997 और 2000 में 3 पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटियां बनाई गई थीं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कमेटियों ने 2010 में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि KGF में अब भी 30 लाख टन सोने का भंडार मौजूद है। ‘सालाना 100 टन सोना निकलेगा, अभी देश का उत्पादन महज 1 टन’
प्रधानमंत्री को लेटर लिखने वाले BGM एम्प्लॉइज, सुपरवाइजर्स एंड ऑफिसर्स यूनाइटेड फोरम के प्रेसिडेंट और BGML के पूर्व चीफ इंजीनियर के एम दिवाकरण ने भास्कर को बताया कि भारत में सोने की डिमांड सबसे ज्यादा होने के बावजूद पिछले 24 सालों से KGF में माइनिंग बंद है। हम सालों से इसे शुरू करवाने की मांग कर रहे हैं। दिवाकरण के मुताबिक, ‘KGF में दक्षिण अफ्रीका और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की तरह ही सोने का भंडार है। अरबों साल पहले सभी एक ही चट्टान का हिस्सा थे, जो टूट कर अलग हो गए। दक्षिण अफ्रीका हर साल 200 टन से ज्यादा सोना निकालता है। जबकि भारत में एक साल में सिर्फ 1 टन (1 हजार किलोग्राम) सोने का उत्पादन होता है।’ ‘​1880 से 1956 के दौरान इंग्लैंड की जॉन टेलर एंड संस कंपनी KGF से सालाना करीब 10 टन सोना निकालती थी। 2001 तक 3.5 KM की गहराई से कुल 900 टन से ज्यादा सोना निकाला गया। उसके नीचे और सोना मौजूद है। माइनिंग शुरू हुई, तो भारत को KGF से सालाना 100 टन सोना मिल सकता है। ‘ ‘भारत सरकार KGF से अगले 100 सालों तक न सिर्फ मुनाफा कमा सकती है, बल्कि 2 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार भी मिलेगा। KGF में 20 गोल्ड माइंस और बन सकते हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे पास तकनीक नहीं है। हमारे पास दशकों पहले से तकनीक है, लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं किया गया।’ ‘चट्टानों के बीच सोने के 27 लेयर, इनमें सिर्फ दो से सोना निकला’
दिवाकरण बताते हैं, ‘KGF में सोने के 27 लोड (चट्टानों के बीच नसों की तरह दिखने वाले सोने का लेयर) हैं। इनमें अब तक सिर्फ 2 लोड से सोना निकाला गया है। 25 लोड अभी भी जस के तस हैं। अंग्रेजों ने सिर्फ दो लोड से सोना निकालने के बावजूद सालों तक अपना खजाना भरा। सोचिए 25 लोड में और कितना सोना होगा।’ ‘KGF में अंडरग्राउंड माइनिंग से सोना निकालने के बाद भी अवशेषों में छोटे-छोटे कण रहे जाते थे। शुरुआत में एक टन अवशेष से 60 ग्राम सोना निकलता था। धीरे-धीरे यह कम होता गया। 2001 में माइनिंग बंद होने के समय तक एक टन अवशेष से 34 ग्राम सोना मिल जाता था।’ ‘BGML बंद होने के बाद हमने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। कोर्ट ने 2013 में केंद्र सरकार को कंपनी की नीलामी का आदेश दिया, लेकिन सरकार पीछे हट गई। हमने इसके खिलाफ याचिका लगाई, तो कहा गया कि कंपनी दोबारा शुरू नहीं होगी। अगर आपको फिर से माइनिंग करनी है, तो अपने स्तर पर करिए।’ दिवाकरण ने कहा, ‘फोरम प्रेसिडेंट होने के नाते मैंने कई बार इसकी पहल भी की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। हाल ही में हमने PM मोदी को अपना मास्टर प्लान भेजा है। अगर सरकार राजी हुई, तो हम ऑस्ट्रेलिया की तकनीक का इस्तेमाल करके दोबारा माइनिंग शुरू करेंगे। इससे मुनाफा भी होगा और लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा।’ 1400 KM में फैले टनल में जहरीला साइनाइड भरा
KGF निवासी एडवोकेट पी राघवन ने बताया कि अंडरग्राउंड 1400 KM एरिया में फैले KGF की बंद खदानों में 24 सालों के दौरान जहरीला साइनाइड मिला पानी भर चुका है। पूरी मशीनरी में जंग लग चुकी है। नई मशीनरी से बदलने के लिए बड़े पैमाने पर पैसों की जरूरत होगी, जिस पर सरकार खर्च नहीं करना चाहती। KGF के ‘मिनी इंग्लैंड’ से ‘भूतिया शहर’ बनने की कहानी 2020 में रिलीज हुई एक डॉक्यूमेंट्री ‘इन सर्च ऑफ गोल्ड’ के मुताबिक, KGF में 1880 में माइनिंग शुरू होने के कुछ समय के बाद ही ब्रिटिशर्स को KGF से बहुत फायदा होने लगा था। हालांकि बड़े पैमाने पर खुदाई के लिए उन्हें हजारों श्रमिकों की भी जरूरत थी। जॉन टेलर एंड संस ने मद्रास प्रेसिडेंसी के पड़ोसी तमिल और तेलुगु भाषी क्षेत्रों से मजदूरों की भर्ती की। ब्रिटिशर्स ने उच्च पदों पर कब्जा कर लिया और एंग्लो-इंडियन लोग सुपरवाइजर्स का काम करते थे। पंजाबियों को सिक्योरिटी गार्ड्स के तौर पर रखा गया। धीरे-धीरे KGF कई जाति के लोगों वाले शहर के तौर पर डेवलप होने लगा। KGF बिजली का इस्तेमाल करने वाला विश्व का पहला माइनिंग एरिया
KGF में हाई क्वालिटी के अयस्क (जिन चट्टानों पर सोना या दूसरी धातुएं पाई जाती हैं) मिलते थे। इसका मतलब है कि सोना भी हाई ग्रेड का होता था। अंग्रेजों ने ज्यादा से ज्यादा सोना निकालने के लिए गहराई तक खुदाई शुरू कर दी। मजदूर जितनी गहराई में जाने लगे, उनके लिए चुनौतियां उतनी बढ़ने लगीं। अंदर का तापमान 55 डिग्री सेल्सियस तक होता था। ऊपर से घना अंधेरा। 1902 में KGF के लिए खास तौर पर वहां से 220 किलोमीटर दूर शिवसमुद्रम में एक हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्लांट स्थापित किया गया। इसी के साथ KGF बिजली का इस्तेमाल करने वाला दुनिया का पहला माइनिंग क्षेत्र बन गया। एशिया में पहली बार इतनी लंबी ट्रांसमिशन लाइन के जरिए बिजली प्रोडक्शन और सप्लाई की गई थी। शुरुआत में मजदूर मोमबत्ती की रोशनी के सहारे खुदाई करते थे। बाद में कार्बाइड लैंप आ गया। हालांकि 2 से 3 KM की गहराई में वह भी बेअसर होने लगा। फिर माइनिंग कंपनी ने मैसूरु (अब कर्नाटक) सरकार को बिजली की व्यवस्था करने के लिए मनाया। हालांकि यह बिजली इतनी ज्यादा थी कि माइनिंग कंपनी ने अपने कर्मचारियों और मजदूरों को भी मुफ्त में बिजली देना शुरू कर दिया। इससे KGF देश के उन गिनती के शहरों में शामिल हो गया, जहां आजादी से पहले बिजली पहुंच गई थी। अंग्रेजों ने आर्टिफिशियल झील, स्कूल-एंटरटेनमेंट क्लब बनवाए
बिजली आने से माइनिंग का काम तो तेज हो गया, लेकिन पानी की किल्लत बढ़ने लगी। लगातार खुदाई से मिट्टी और चट्टानों के पहाड़ बनने लगे थे। उससे सोना छानने के लिए पानी का कोई बड़ा स्रोत नहीं था। KGF से समुद्र की दूरी 200 से 300 किलोमीटर थी। तब ब्रिटिश सरकार ने KGF से 18 KM दूर बेतमंगला में एक आर्टिफिशियल झील बनवाई और वाटर फिल्टर सिस्टम भी तैयार किया। इसके बाद ब्रिटिश सरकार और माइनिंग कंपनी से जुड़े लोग बड़े पैमाने पर KGF का रुख करने लगे। उनके बड़े-बड़े बंगले और हवेलियां बननी शुरू हो गईं। अस्पताल, स्कूल, सोशल क्लब, बोटिंग लेक, गोल्फ कोर्स, स्विमिंग पूल और जिमखाना भी बना। कर्नाटक के पड़ोसी राज्यों आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से भी बड़ी संख्या में लोग खदानों में काम करने के लिए KGF आने लगे थे। शहर की बढ़ती आबादी को बसाने के लिए 1903 में रॉबर्टसनपेट नाम का एक रेजिडेंशियल टाउनशिप बनाया गया। यह आधुनिक भारत के पहले प्लांड रेजिडेंशियल इलाकों में से एक है। KGF का तापमान काफी ठंडा था, इसलिए ब्रिटिश मॉडल के घर बनाए जाते थे, जिसके कारण इसे ‘मिनी इंग्लैंड’ कहा जाना जाने लगा। 1910 तक यह इलाका पूरी तरह से एक यूरोपीय टाउनशिप की तर्ज पर स्थापित हो चुका था। 1930 तक KGF में काम करने वाले लोगों की संख्या 30 हजार तक पहुंच गई थी। KGF में दुनिया की पहली एयर कंडीशंड माइंस
जॉन टेलर एंड संस कंपनी ने खदानों में काम करने वाले लोगों और उनके परिवारों के लिए एक हॉस्पिटल भी बनाया था। इसमें कई यूरोपीय डॉक्टर और नर्सें काम करती थीं। हॉस्पिटल में दो सौ से ज्यादा बेड थे। 1972 में KGF के राष्ट्रीयकरण के बाद हॉस्पिटल का नाम BGML हॉस्पिटल रखा गया। BGML हॉस्पिटल में काम कर चुके डॉ. राजेंद्र कुमार ने भास्कर से बात की। उन्होंने बताया, ‘मैं 1978 में KGF आया था। उस दौर में BGML हॉस्पिटल एशिया के टॉप अस्पतालों में से एक था। मेडिकल फील्ड में जो भी लेटेस्ट तकनीकें थीं, वहां सब सुविधाएं मिलती थीं। एशिया का पहला X रे यूनिट, पहला ECG यूनिट, बेहोश करने वाली मशीन, Rh टाइपिंग की सुविधा, ये सब सिर्फ BGML हॉस्पिटल में था।’ डॉ. राजेंद्र के मुताबिक, ‘KGF के मजदूरों के काम करने का तरीका काफी अलग था। वे पहले 8000 फीट, करीब 2.5 KM सीधे शाफ्ट में जाते थे, फिर उसके नीचे 1 KM इनक्लाइन्ड शाफ्ट में जाकर काम करते थे। वे अपनी जान जोखिम में डालकर काम करते थे। हर दिन उनके लिए नया जन्म लेने जैसा होता था।’ ‘मजदूर हर बार अपने साथ एक चिड़िया लेकर खदानों में उतरते थे। जहां चिड़िया मर जाती थी, वहीं पर रुक जाते थे, क्योंकि उससे नीचे ऑक्सीजन नहीं होता। तापमान भी लगभग 55 डिग्री रहता है। मजदूरों की सहूलियत के लिए सरकार ने खदानों में AC लगवा दिया। यह दुनिया की पहला एयर कंडीशंड माइंस है।’ डॉ. राजेंद्र कुमार ने बताया कि 1987 से BGML का पतन शुरू हो गया था। उसे 10 ग्राम सोना निकालने में 2000 रुपए खर्च करने पड़ रहे थे, लेकिन उसके बदले सिर्फ 1200 रुपए मिलते थे। BGML को लगातार घाटा हो रहा था। इसलिए कंपनी आखिरकार बंद हो गई। अंग्रेजों के बनाए बंगले अब खंडहर, शहर वीरान हुआ
माइनिंग बंद होने के बाद KGF धीरे-धीरे वीरान होने लगा। नौकरी और शिक्षा के लिए लोग घर छोड़कर दूसरे शहरों में पलायन करने लगे। आलीशान बंगले, क्लब, हॉस्पिटल, पोस्ट ऑफिस और दूसरी बड़ी इमारतें, जो एक समय में शहर का गौरव बढ़ाती थीं, वो अब जर्जर हो चुकी हैं। खंडहर इमारतों के चलते KGF को अब घोस्ट टाउन यानी भूतिया शहर कहा जाता है। जो लोग KGF छोड़कर नहीं गए, उन्होंने आसपास के शहरों में काम ढूंढा। मौजूदा समय में KGF के करीब 10 हजार लोग बेंगलुरु में काम करने के लिए जाते हैं। दोनों शहरों को जोड़ने वाली भारतीय रेलवे की 7 ट्रेनें ही इनकी लाइफलाइन है। लोगों ने बताया कि उनका हर रोज करीब 6 से 7 घंटा ट्रेन के सफर में बीत जाता है। रात को घर लौटने के बाद मुश्किल से 3-4 घंटे का समय परिवारों वालों के साथ मिलता है। रविवार को पूरा दिन परिवार के साथ रहने की कोशिश करते हैं। 24 साल से मुआवजे की मांग कर रहे 3800 कर्मचारी, इनमें 1800 की मौत
2001 में BGML बंद हुई, तब कंपनी में करीब 3800 कर्मचारी थे। उन्हें वॉलंटरी रिटायरमेंट (VRS) लेना पड़ा। इनमें 1800 कर्मचारियों की ज्यादा उम्र के कारण मौत भी हो चुकी है। पिछले 24 साल से ये कर्मचारी और उनका परिवार KGF में दोबारा माइनिंग शुरू करने और मुआवजे की मांग को लेकर कई कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। BGML के पूर्व कर्मी और ट्रेड यूनियन लीडर मूर्ति ने बताया, ‘मैं, मेरे पिता और दादा, तीनों BGML में काम करते थे। 2001 में कंपनी अचानक बंद हो गई और हमारे सामने आर्थिक संकट आ गया। कई लोग बेंगलुरु और अन्य शहरों में सुरक्षा गार्ड, पेंटर जैसी छोटी-मोटी नौकरियां करने लगे।’ ‘हमने VRS के भुगतान के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट में केस किया था। 9 मई, 2024 को कोर्ट ने कंपनी को 2001 से भुगतान की तारीख तक 6% प्रति वर्ष इंटरेस्ट के साथ मुआवजा देने का ऑर्डर दिया, लेकिन हमें अब तक पैसे नहीं मिले हैं। अब हम BGML के खिलाफ अदालत की अवमानना ​​का केस दायर करने की तैयारी कर रहे हैं।’ ‘सरकारी कंपनी में सालों काम किया, अब कुली जैसी जिंदगी हुई’
जॉइंट ट्रेड यूनियन फ्रंट के कन्वीनर जयकुमार कहते हैं, ‘BGML में काम करने वाले हजारों लोग और उनका परिवार हर रोज ट्रेन में धक्के खाते हुए बेंगलुरु में छोटा-मोटा काम करने के लिए जाते हैं। वे KGF और बेंगलुरु के बीच झूल रहे हैं। सरकारी कंपनी में सालों काम करने के बावजूद यहां के लोगों की जिंदगी कुली जैसी हो गई है।’ ‘BGML एक राष्ट्रीय संपत्ति है। कंपनी के अधिकारियों ने इसे लूट लिया। यहां की मशीनरी, वर्किंग यूनिट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, भारत में अपनी तरह की अनोखी और पहली चीजें थीं। अधिकारियों ने बहुत प्लानिंग के तहत खदानों को पहले बंद करवाया। फिर यहां के सभी इन्फ्रास्ट्रक्चर को लूट लिया।’ पूर्व आर्मी मैन आर मुत्तु कुमार ने कहा, ‘मेरे पिता BGML में काम करते थे। वो गुजर गए। उनकी कमाई से हमारा घर चलता था। मेरे 5 भाई हैं। किसी के पास काम नहीं है। सब कष्ट उठाकर जीते हैं। अगर KGF माइंस फिर से शुरू हो गया, तो सबको काम मिल जाएगा। हम अपने बच्चों को भी भेजेंगे।’ KGF पर केंद्र सरकार का रुख
2010 में UPA सरकार के तहत केंद्रीय कैबिनेट ने KGF की खदानों को पुनर्जीवित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। हालांकि 2014 तक कुछ नहीं हुआ और भाजपा सत्ता में आ गई। मोदी सरकार ने 2015 में सोने के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए BGML सहित पुरानी खदानों को फिर से शुरू करने का फैसला किया था। साल 2016 में KGF के लिए नीलामी प्रक्रिया शुरू करने के लिए टेंडर भी निकालने के लिए कहा था। वह घोषणा भी ठंडे बस्ते में चली गई। 2021 में तत्कालीन खान मंत्री प्रह्लाद जोशी से जब लोकसभा में सवाल किया गया कि क्या सरकार BGML को फिर से शुरू करने की अपील पर विचार कर रही है, तो उनका जवाब न में आया। उन्होंने कहा कि घाटा होने के कारण कंपनी को बंद किया गया था। केंद्र ने जून, 2024 में सोने की खदानों को पुनर्जीवित करने और KGF में 1003.4 एकड़ में फैले 13 टेलिंग डंप (चट्टानों से सोना अलग करने के बाद बचा कचरा) की नीलामी के लिए कर्नाटक सरकार को प्रस्ताव पेश किया, जिसे मंजूरी भी मिल गई। अनुमान है कि एक टन टेलिंग डंप से एक ग्राम सोना निकल सकता है। हालांकि जून के बाद इस पर भी कोई नई जानकारी सामने नहीं आई। ………………………………………………………………. मेरे निकाले पत्थर से रामलला बने, मजदूरी तक नहीं मिली: सांसद ने कहा था- PM से मिलाएंगे, एयरपोर्ट बुलाकर मुकर गए अयोध्या में रामलला की प्रतिमा कर्नाटक की कृष्णशिला से बनी है। इसे बनाने के लिए अरुण योगीराज की जितनी चर्चा हुई, उतनी ही गुमनामी में उस प्रतिमा के लिए पत्थर निकालने वाले श्रीनिवास नटराज हैं। उनका आरोप है कि उन्हें न तो पहचान मिली, न काम की मजदूरी। श्रीनिवास ने कहा कि वे अब तक अयोध्या नहीं गए हैं। उन्हें पहले तो प्राण-प्रतिष्ठा में नहीं बुलाया गया। पूरी खबर पढ़ें… दलितों के घर जलाए, 10 साल बाद 98 को उम्रकैद: पीड़ित बोले- कोर्ट के फैसले ने हमें विलेन बनाया; लोग भद्दे कमेंट करते हैं कर्नाटक के कोप्पल जिले के माराकुम्बी गांव में 28 अगस्त, 2014 के दलित उत्पीड़न मामले में 10 साल बाद फैसला आया। कोर्ट ने ऊंची जाति के 98 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। देश में इतने लोगों को एक साथ उम्रकैद की सजा सुनाने का यह पहला मामला था। हालांकि, फैसले से दोषियों के परिवार के साथ-साथ पीड़ितों का परिवार भी दुखी और सदमे में हैं। पूरी खबर पढ़ें…