केंद्र सरकार ने 1991 के पूजा स्थल कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में अब तक जवाब दाखिल नहीं किया है। सूत्रों के अनुसार, केंद्र ने अभी तक अपना रुख तय नहीं किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के सामने क्या प्रस्तुत करेगा। इस पर विचार-विमर्श चल रहा है। 12 दिसंबर को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा था। तब कोर्ट ने सरकार को चार हफ्ते का समय दिया गया था। 12 जनवरी की डेडलाइन निकल गई है। पूजा स्थल कानून को बनाए रखने को लेकर कांग्रेस ने भी याचिका लगाई है। वहीं AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी इसके पक्ष में हैं। कांग्रेस और ओवैसी की नई याचिकाओं को इस मामले पर लंबित अन्य 6 मामलों के साथ जोड़ा गया है। इन सभी पर 17 फरवरी को सुनवाई होगी। कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। केस से जुड़ी 6 याचिकाओं पर 12 दिसंबर को हुई थी आखिरी बार सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की 3 मेंबर वाली बेंच ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (विशेष प्रावधानों) 1991 की कुछ धाराओं की वैधता पर दाखिल याचिकाओं पर 12 दिसंबर को सुनवाई की थी। बेंच ने कहा था, “हम इस कानून के दायरे, उसकी शक्तियों और ढांचे को जांच रहे हैं। ऐसे में यही उचित होगा कि बाकी सभी अदालतें अपने हाथ रोक लें।” सुनवाई के दौरान CJI संजीव खन्ना ने कहा- हमारे सामने 2 मामले हैं, मथुरा की शाही ईदगाह और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद। तभी अदालत को बताया गया कि देश में ऐसे 18 से ज्यादा मामले लंबित हैं। इनमें से 10 मस्जिदों से जुड़े हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से याचिकाओं पर 4 हफ्ते में अपना पक्ष रखने को कहा। CJI संजीव खन्ना ने कहा- जब तक केंद्र जवाब नहीं दाखिल करता है हम सुनवाई नहीं कर सकते। हमारे अगले आदेश तक ऐसा कोई नया केस दाखिल ना किया जाए। याचिका के पक्ष- विपक्ष में तर्क क्यों बनाया गया था ये कानून?
दरअसल, ये वो दौर था जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से रथयात्रा निकाली। इसे 29 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था, लेकिन 23 अक्टूबर को उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार करने का आदेश दिया था जनता दल के मुख्यमंत्री लालू यादव ने। इस गिरफ्तारी का असर ये हुआ कि केंद्र में जनता दल की वीपी सिंह सरकार गिर गई, जो भाजपा के समर्थन से चल रही थी। इसके बाद वीपी सिंह से अलग होकर चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन ये भी ज्यादा नहीं चल सकी। नए सिरे से चुनाव हुए और केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई। पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। राम मंदिर आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के चलते अयोध्या के साथ ही कई और मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे थे। इन विवादों पर विराम लगाने के लिए ही नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी। ———————————————- मामले से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें… क्या 36 हजार मस्जिदों के नीचे मंदिर, बदल नहीं सकते तो संभल जैसे सर्वे की इजाजत क्यों हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर शरीफ दरगाह के संकटमोचन महादेव मंदिर होने का दावा कर दिया। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। देशभर के अलग-अलग हिस्सों में ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। 2019 में अयोध्या में राम मंदिर का फैसला आने के बाद इसमें तेजी आई है। पूरी खबर पढ़ें… संभल जामा मस्जिद जैसे कितने विवाद, जौनपुर से लेकर बदायूं तक मंदिर-मस्जिद की तकरार संभल में जामा मस्जिद में सर्वे के बाद भड़की हिंसा में 4 लोगों की मौत हो गई। संभल से पहले अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर भी जानें गई थीं। अयोध्या का मसला कोर्ट के दखल से निपट चुका है। अयोध्या पर निर्णय आने के बाद पूरे देश में उन सभी धार्मिक स्थानों की जांच की मांग उठने लगी है, जहां इस प्रकार का विवाद है। पूरी खबर पढ़ें…
सुप्रीम कोर्ट की 3 मेंबर वाली बेंच ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (विशेष प्रावधानों) 1991 की कुछ धाराओं की वैधता पर दाखिल याचिकाओं पर 12 दिसंबर को सुनवाई की थी। बेंच ने कहा था, “हम इस कानून के दायरे, उसकी शक्तियों और ढांचे को जांच रहे हैं। ऐसे में यही उचित होगा कि बाकी सभी अदालतें अपने हाथ रोक लें।” सुनवाई के दौरान CJI संजीव खन्ना ने कहा- हमारे सामने 2 मामले हैं, मथुरा की शाही ईदगाह और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद। तभी अदालत को बताया गया कि देश में ऐसे 18 से ज्यादा मामले लंबित हैं। इनमें से 10 मस्जिदों से जुड़े हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से याचिकाओं पर 4 हफ्ते में अपना पक्ष रखने को कहा। CJI संजीव खन्ना ने कहा- जब तक केंद्र जवाब नहीं दाखिल करता है हम सुनवाई नहीं कर सकते। हमारे अगले आदेश तक ऐसा कोई नया केस दाखिल ना किया जाए। याचिका के पक्ष- विपक्ष में तर्क क्यों बनाया गया था ये कानून?
दरअसल, ये वो दौर था जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से रथयात्रा निकाली। इसे 29 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था, लेकिन 23 अक्टूबर को उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार करने का आदेश दिया था जनता दल के मुख्यमंत्री लालू यादव ने। इस गिरफ्तारी का असर ये हुआ कि केंद्र में जनता दल की वीपी सिंह सरकार गिर गई, जो भाजपा के समर्थन से चल रही थी। इसके बाद वीपी सिंह से अलग होकर चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन ये भी ज्यादा नहीं चल सकी। नए सिरे से चुनाव हुए और केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई। पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। राम मंदिर आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के चलते अयोध्या के साथ ही कई और मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे थे। इन विवादों पर विराम लगाने के लिए ही नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी। ———————————————- मामले से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें… क्या 36 हजार मस्जिदों के नीचे मंदिर, बदल नहीं सकते तो संभल जैसे सर्वे की इजाजत क्यों हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर शरीफ दरगाह के संकटमोचन महादेव मंदिर होने का दावा कर दिया। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। देशभर के अलग-अलग हिस्सों में ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। 2019 में अयोध्या में राम मंदिर का फैसला आने के बाद इसमें तेजी आई है। पूरी खबर पढ़ें… संभल जामा मस्जिद जैसे कितने विवाद, जौनपुर से लेकर बदायूं तक मंदिर-मस्जिद की तकरार संभल में जामा मस्जिद में सर्वे के बाद भड़की हिंसा में 4 लोगों की मौत हो गई। संभल से पहले अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर भी जानें गई थीं। अयोध्या का मसला कोर्ट के दखल से निपट चुका है। अयोध्या पर निर्णय आने के बाद पूरे देश में उन सभी धार्मिक स्थानों की जांच की मांग उठने लगी है, जहां इस प्रकार का विवाद है। पूरी खबर पढ़ें…