दुर्वासा के शाप से देवताओं से छीन गया था स्वर्ग:देवराज इंद्र ने किया था दुर्वासा के उपहार का अपमान, गुस्से में दुर्वासा मुनि ने इंद्र को दे दिया शाप

किसी के उपहार का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए, ये बात दुर्वासा मुनि और देवराज इंद्र की पौराणिक कथा से समझ सकते हैं। दुर्वासा ऋषि का गुस्सा बहुत तेज है, छोटी-छोटी बातों में ही उन्हें बहुत ज्यादा क्रोध आ जाता था। दुर्वासा गुस्से में किसी को भी नहीं छोड़ते थे। एक दिन भगवान विष्णु ने दुर्वासा मुनि को फूलों की दिव्य माला भेंट में दी। भगवान ने उपहार दिया तो दुर्वासा ने उसे अपने पास रख लिया। जब वे विष्णु जी के यहां से लौट रहे थे, तब उन्हें रास्ते देवराज इंद्र दिखाई दिए। इंद्र ऐरावत हाथी पर बैठे हुए थे। इंद्र और दुर्वासा ने एक-दूसरे को देख लिया। दुर्वासा जी ने सोचा कि देवराज इंद्र त्रिलोकपति हैं, भगवान विष्णु की ये दिव्य माला मेरे किस काम की, ये मैं इंद्र को भेंट में दे देता हूं। दुर्वासा ऋषि ने वो माला इंद्र को उपहार में दे दी। देवराज ने माला ले तो ली, लेकिन वे राजा थे और हाथी पर बैठे हुए थे। एक राजा की तरह उनमें भी अहंकार था। इंद्र ने सोचा कि इस सामान्य सी माला का मैं क्या करूंगा? मेरे पास तो वैसे ही कई दिव्य मालाएं हैं। ऐसा सोचकर इंद्र ने वह माला अपने हाथी के ऊपर डाल दी। जबकि इंद्र को एक संत के द्वारा दी गई माला का सम्मान करना था। ऐरावत हाथी ने अपनी सुंड ऊपर की और वो माला पकड़कर नीचे डाल दी और फिर अपने पैरों के नीचे कुचल दी। दुर्वासा मुनि ने ये सब देखा तो उनका क्रोध भड़क गया। क्रोधित होकर दुर्वासा ने कहा कि इंद्र मैं तुझे अभी शाप देता हूं कि तेरा राज्य चला जाएगा, तेरा वैभव भी चला जाएगा और तू श्रीहीन हो जाएगा। दुर्वासा जी के शाप के कारण ऐसा ही हुआ। देवताओं पर असुरों ने आक्रमण कर दिया, जिसमें देवता पराजित हो गए। देवराज इंद्र को स्वर्ग से भागना पड़ा। इसके बाद सभी देवता त्रिदेवों के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने देवताओं को समझाया कि ये सब दुर्वासा जी के अपमान का परिणाम है। आपको दुर्वासा जी का अपमान नहीं करना था। प्रसंग की सीख इस प्रसंग में संदेश दिया गया है कि कभी भी अपने माता-पिता, गुरु, संत-महात्मा और विद्वानों का, उनके उपहार का अपमान नहीं करना चाहिए, वर्ना रिश्ते बिगड़ सकते हैं, जीवन में परेशानियां आ सकती हैं।