फिर बजट आ गया। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को लगातार आठवीं बार बजट पेश करेंगी। इसे बनाने में 6 महीने लगे और 40 दिन का एक पूरा संसद सत्र बजट के नाम है। आखिर ये बजट है क्या? इसे बनाया कैसे जाता है? सरकार के पास पैसा आता कहां से और जाता कहां है? जानते हैं पूरा प्रोसेस… सवाल 1: बजट होता क्या है? जवाब: बजट सरकार के जमा और खर्च का हिसाब-किताब है। जैसा हम अपने घरों में करते हैं। यानी पैसा आएगा कहां से और जाएगा कहां? छोटा सा अंतर है कि आमतौर पर घरों में महीने का हिसाब होता है, लेकिन सरकार पूरे साल का लेखा-जोखा तैयार करती है।
वहीं वित्तमंत्री अपने भाषण के जरिए सरकार की आर्थिक नीति के साथ लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म टारगेट भी बताती है।
मजेदार बात यह है कि हमारे संविधान में बजट नाम का कोई शब्द नहीं। संविधान और सरकारी भाषा में इसे एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट कहते हैं।
सरकार को संसद को अपना सालाना जमा और खर्च का हिसाब देना जरूरी है, इसलिए बजट हर साल आता है। सवाल 2: आमदनी के लिए टैक्स बढ़ाएं या कर्ज लें, पुल पर खर्च करें या सैलरी बढ़ाएं, वित्तमंत्री कैसे तय करती हैं? जवाब: बजट बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं। बस ध्यान यह रखना है कि सरकार के पास दो जेबें होती हैं। पहली-रेवेन्यू और दूसरी-कैपिटल। इन दोनों जेबों में कैसे और कितना पैसा आएगा और कहां जाएगा, बजट में यही लेखा-जोखा होता है। अब रेवन्यू और कैपिटल को दो कीवर्ड्स से समझते हैं। रेवन्यू माने बार-बार यानी रिपीट और कैपिटल माने कभी-कभार या नॉन रिपिटेटिव। सोचिए, बार-बार होने वाले खर्च अच्छे होते हैं या कभी-कभार होने वाले ठोस खर्च? जैसे- कार या ऑटोमैटिक वॉशिंग मशीन खरीदना। प्लॉट या फ्लैट खरीदना। साफ है, कभी-कभार होने वाला ठोस खर्च अच्छा होता है। ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन से मेहनत बचेगी और समय भी। इस मेहनत और समय को हम अपनी कमाई बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। फ्लैट या प्लॉट की कीमत बढ़ेगी और इससे आपकी संपत्ति। दूसरी तरफ बिजली का बिल, मोबाइल का बिल, सोसाइटी का मेंटेनेंस जैसे बार-बार यानी रिपीट होने वाले खर्च हैं, हम यही चाहते हैं कि ऐसे रिपीट होने वाले खर्च जितने कम हो उतना अच्छा। अब बात कमाई की… खर्च से ठीक उलट कमाई जितनी ज्यादा बार हो, उतना अच्छा। सोचिए आपकी सैलरी हर महीने के बजाय हर हफ्ते मिलने लगे। या सैलरी के अलावा कभी नोएडा में खरीदे गए एक फ्लैट का किराया भी मिलने लगे। मतलब साफ है कमाई बार-बार यानी रिपीट होना चाहिए। कभी-कभार होने वाली यानी नॉन-रिपीटेटिव कमाई ठीक नहीं। पता नहीं कभी हो कभी नहीं। बस, इसी तरह सरकार भी चाहती है कि उसकी रेवन्यू पॉकेट में आने वाला रिपीट पैसा जितना ज्यादा हो उतना बढ़िया जैसे टैक्स से मिलने वाला पैसा। लेकिन सरकार रेवन्यू पॉकेट से होने वाले रिपीट खर्च को कम से कम करना चाहती है। जैसे कर्मचारियों की सैलरी-पेंशन या सब्सिडी पर होने वाला खर्च। वहीं सरकार कैपिटल पॉकेट से ज्यादा से ज्यादा खर्च करती है। यानी ठीक हमारी तरह रिपीट न होने वाला ठोस खर्च। जो आगे चलकर कमाई बढ़ाए। जैसे हाईवे, एयरपोर्ट और बिजली घर। लेकिन कमाई के मामले में सरकार कैपिटल पॉकेट पर कम से कम निर्भर रहना चाहती है। जैसे कर्ज या विदेशी अनुदान से होने वाली नॉन रिपटेटिव कमाई।
बजट में सरकार अपने रेवन्यू खर्च और कैपिटल खर्च के बीच बैलेंस बनाती है, क्योंकि सिर्फ पुल, हाईवे और हवाई अड्डे बनाने से काम नहीं चलता लोगों को अच्छी सैलरी और पेंशन देना जरूरी है। सवाल 3: सरकार की दोनों जेबों में पैसा आता कहां से और जाता कहां है?
जवाब: सबसे पहले जानते हैं कि 2024-25 में सरकार के रेवन्यू और कैपिटल पॉकेट में पैसा कहां से आएगा- अब जानते हैं कि सरकार का पैसा जाएगा कहां- सवाल 4: सरकारों के हिसाब-किताब को बजट क्यों कहा जाता है? जवाब: दरअसल किस्सा 1733 का है। इंग्लैंड के वित्त मंत्री सर रॉबर्ट वालपॉल ने सरकार के जमा-खर्च का हिसाब संसद में पेश किया। वालपॉल अपने दस्तावेज छोटे लेदर बैग में लाए थे, जिसे फ्रेंच में BOUGE और अंग्रेजी में BUDGET कहा जाता है। इसके बाद से ही हिसाब-किताब को बजट कहा जाने लगा। सवाल 5: बजट बनाने की शुरुआत कब और कैसे होती है? जवाब: बजट बनाने की शुरुआत सितंबर या अक्तूबर में होती है, जब वित्त मंत्रालय का आर्थिक मामलों का विभाग सभी केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों को एक सर्कुलर भेजता है।
सर्कुलर में सभी मंत्रालयों से खर्च के अनुमान मांगे जाते हैं। इनमें सैलरी-पेंशन जैसे रूटीन खर्च के अलावा योजनाओं पर होने प्लांड खर्च भी शामिल होते हैं।
इस बीच वित्तमंत्री तमाम स्टेक होल्डर्स जैसे किसान और उद्योगपतियों के प्रतिनिधिमंडलों से भी मिलती हैं। इस तरह कई सोर्सेस से सूचनाएं और जरूरतों को पता करने के बाद सरकार अपने खर्च और जमा हिसाब लगाती है।
बजट का एक कच्चा खाका तैयार होते ही वित्तमंत्री इसे लेकर प्रधानमंत्री से मिलती हैं। प्रधानमंत्री सलाह पर इसमें अक्सर बदलाव होते हैं। इस तरह बजट का फाइनल ड्राफ्ट बनता जिसे वित्त मंत्रालय की प्रिटिंग प्रेस पर छापा जाता है। इसी बजट की एक कॉपी 1 फरवरी को लोकसभा में पेश होगी और बाकी सांसदों को टैब के जरिए सॉफ्ट कापी दी जाएगी। सवाल 6: बजट डे पर वित्तमंत्री के भाषण के अलावा क्या-क्या होता है? जवाब: लोकसभा में वित्तमंत्री के बजट भाषण के बाद बजट पर सामान्य चर्चा शुरू होती है। इसके बाद तीन और बिल पेश किए जाते हैं- ये सभी बिल संसद से पास होने को बजट का पास होना कहा जाता है। सवाल 7: बजट लोकसभा में ही क्यों पेश होता है, राज्यसभा का रोल क्या है? जवाब: टैक्स आदि के जरिए सरकार को पैसा अपने खजाने में जमा करना हो या उसमें से एक पाई भी निकालनी हो, इसके लिए संसद की इजाजत जरूरी है। स्पेसिफिकली लोकसभा की इजाजत। यही वजह है कि बजट लोकसभा में ही पेश किया जाता है। यहां से पास होकर बजट राज्यसभा में भी जाता है, लेकिन राज्यसभा अगर कोई बदलाव सुझाती है तो लोकसभा उसे मानने को बाध्य नहीं। यानी किसी सरकार के पास अगर राज्यसभा में बहुमत नहीं तो भी उसे बजट पास कराने में दिक्कत नहीं। ***** ग्राफिक्स- अजीत सिंह
वहीं वित्तमंत्री अपने भाषण के जरिए सरकार की आर्थिक नीति के साथ लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म टारगेट भी बताती है।
मजेदार बात यह है कि हमारे संविधान में बजट नाम का कोई शब्द नहीं। संविधान और सरकारी भाषा में इसे एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट कहते हैं।
सरकार को संसद को अपना सालाना जमा और खर्च का हिसाब देना जरूरी है, इसलिए बजट हर साल आता है। सवाल 2: आमदनी के लिए टैक्स बढ़ाएं या कर्ज लें, पुल पर खर्च करें या सैलरी बढ़ाएं, वित्तमंत्री कैसे तय करती हैं? जवाब: बजट बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं। बस ध्यान यह रखना है कि सरकार के पास दो जेबें होती हैं। पहली-रेवेन्यू और दूसरी-कैपिटल। इन दोनों जेबों में कैसे और कितना पैसा आएगा और कहां जाएगा, बजट में यही लेखा-जोखा होता है। अब रेवन्यू और कैपिटल को दो कीवर्ड्स से समझते हैं। रेवन्यू माने बार-बार यानी रिपीट और कैपिटल माने कभी-कभार या नॉन रिपिटेटिव। सोचिए, बार-बार होने वाले खर्च अच्छे होते हैं या कभी-कभार होने वाले ठोस खर्च? जैसे- कार या ऑटोमैटिक वॉशिंग मशीन खरीदना। प्लॉट या फ्लैट खरीदना। साफ है, कभी-कभार होने वाला ठोस खर्च अच्छा होता है। ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन से मेहनत बचेगी और समय भी। इस मेहनत और समय को हम अपनी कमाई बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। फ्लैट या प्लॉट की कीमत बढ़ेगी और इससे आपकी संपत्ति। दूसरी तरफ बिजली का बिल, मोबाइल का बिल, सोसाइटी का मेंटेनेंस जैसे बार-बार यानी रिपीट होने वाले खर्च हैं, हम यही चाहते हैं कि ऐसे रिपीट होने वाले खर्च जितने कम हो उतना अच्छा। अब बात कमाई की… खर्च से ठीक उलट कमाई जितनी ज्यादा बार हो, उतना अच्छा। सोचिए आपकी सैलरी हर महीने के बजाय हर हफ्ते मिलने लगे। या सैलरी के अलावा कभी नोएडा में खरीदे गए एक फ्लैट का किराया भी मिलने लगे। मतलब साफ है कमाई बार-बार यानी रिपीट होना चाहिए। कभी-कभार होने वाली यानी नॉन-रिपीटेटिव कमाई ठीक नहीं। पता नहीं कभी हो कभी नहीं। बस, इसी तरह सरकार भी चाहती है कि उसकी रेवन्यू पॉकेट में आने वाला रिपीट पैसा जितना ज्यादा हो उतना बढ़िया जैसे टैक्स से मिलने वाला पैसा। लेकिन सरकार रेवन्यू पॉकेट से होने वाले रिपीट खर्च को कम से कम करना चाहती है। जैसे कर्मचारियों की सैलरी-पेंशन या सब्सिडी पर होने वाला खर्च। वहीं सरकार कैपिटल पॉकेट से ज्यादा से ज्यादा खर्च करती है। यानी ठीक हमारी तरह रिपीट न होने वाला ठोस खर्च। जो आगे चलकर कमाई बढ़ाए। जैसे हाईवे, एयरपोर्ट और बिजली घर। लेकिन कमाई के मामले में सरकार कैपिटल पॉकेट पर कम से कम निर्भर रहना चाहती है। जैसे कर्ज या विदेशी अनुदान से होने वाली नॉन रिपटेटिव कमाई।
बजट में सरकार अपने रेवन्यू खर्च और कैपिटल खर्च के बीच बैलेंस बनाती है, क्योंकि सिर्फ पुल, हाईवे और हवाई अड्डे बनाने से काम नहीं चलता लोगों को अच्छी सैलरी और पेंशन देना जरूरी है। सवाल 3: सरकार की दोनों जेबों में पैसा आता कहां से और जाता कहां है?
जवाब: सबसे पहले जानते हैं कि 2024-25 में सरकार के रेवन्यू और कैपिटल पॉकेट में पैसा कहां से आएगा- अब जानते हैं कि सरकार का पैसा जाएगा कहां- सवाल 4: सरकारों के हिसाब-किताब को बजट क्यों कहा जाता है? जवाब: दरअसल किस्सा 1733 का है। इंग्लैंड के वित्त मंत्री सर रॉबर्ट वालपॉल ने सरकार के जमा-खर्च का हिसाब संसद में पेश किया। वालपॉल अपने दस्तावेज छोटे लेदर बैग में लाए थे, जिसे फ्रेंच में BOUGE और अंग्रेजी में BUDGET कहा जाता है। इसके बाद से ही हिसाब-किताब को बजट कहा जाने लगा। सवाल 5: बजट बनाने की शुरुआत कब और कैसे होती है? जवाब: बजट बनाने की शुरुआत सितंबर या अक्तूबर में होती है, जब वित्त मंत्रालय का आर्थिक मामलों का विभाग सभी केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों को एक सर्कुलर भेजता है।
सर्कुलर में सभी मंत्रालयों से खर्च के अनुमान मांगे जाते हैं। इनमें सैलरी-पेंशन जैसे रूटीन खर्च के अलावा योजनाओं पर होने प्लांड खर्च भी शामिल होते हैं।
इस बीच वित्तमंत्री तमाम स्टेक होल्डर्स जैसे किसान और उद्योगपतियों के प्रतिनिधिमंडलों से भी मिलती हैं। इस तरह कई सोर्सेस से सूचनाएं और जरूरतों को पता करने के बाद सरकार अपने खर्च और जमा हिसाब लगाती है।
बजट का एक कच्चा खाका तैयार होते ही वित्तमंत्री इसे लेकर प्रधानमंत्री से मिलती हैं। प्रधानमंत्री सलाह पर इसमें अक्सर बदलाव होते हैं। इस तरह बजट का फाइनल ड्राफ्ट बनता जिसे वित्त मंत्रालय की प्रिटिंग प्रेस पर छापा जाता है। इसी बजट की एक कॉपी 1 फरवरी को लोकसभा में पेश होगी और बाकी सांसदों को टैब के जरिए सॉफ्ट कापी दी जाएगी। सवाल 6: बजट डे पर वित्तमंत्री के भाषण के अलावा क्या-क्या होता है? जवाब: लोकसभा में वित्तमंत्री के बजट भाषण के बाद बजट पर सामान्य चर्चा शुरू होती है। इसके बाद तीन और बिल पेश किए जाते हैं- ये सभी बिल संसद से पास होने को बजट का पास होना कहा जाता है। सवाल 7: बजट लोकसभा में ही क्यों पेश होता है, राज्यसभा का रोल क्या है? जवाब: टैक्स आदि के जरिए सरकार को पैसा अपने खजाने में जमा करना हो या उसमें से एक पाई भी निकालनी हो, इसके लिए संसद की इजाजत जरूरी है। स्पेसिफिकली लोकसभा की इजाजत। यही वजह है कि बजट लोकसभा में ही पेश किया जाता है। यहां से पास होकर बजट राज्यसभा में भी जाता है, लेकिन राज्यसभा अगर कोई बदलाव सुझाती है तो लोकसभा उसे मानने को बाध्य नहीं। यानी किसी सरकार के पास अगर राज्यसभा में बहुमत नहीं तो भी उसे बजट पास कराने में दिक्कत नहीं। ***** ग्राफिक्स- अजीत सिंह