साल 2008 के सितंबर महीने की बात है… अमेरिका में लीमन ब्रदर्स बैंक जैसे कई बड़े बैंकों के दिवालिया होने की खबर आई। इसके बाद शेयर बाजार गिर गए, नौकरियां खत्म हुईं, इंडस्ट्रीज बंद पड़ गईं और पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में आ गई। इस वक्त कनाडा के सेंट्रल बैंक के गवर्नर मार्क कार्नी सबको चौंकाते हुए ब्याज दरों को 1% के ऐतिहासिक निचले स्तर पर ले गए। उन्होंने बैंकों के साथ मिलकर लोन सिस्टम मजबूत किया और कनाडा को इस मंदी से उबार लिया। मंदी से बाहर आने वाला कनाडा पहला देश बना। उनके इस कदम को बाकी देशों के केंद्रीय बैंकों ने भी अपनाया। आर्थिक मंदी से निकलने में इसका फायदा हुआ। तब एक कनाडाई पत्रिका ने उन्हें ‘दुनिया को बचाने वाला कनाडाई’ शीर्षक से फ्रंट पेज पर छापा। वे बैंकिंग सेक्टर में जाना-माना नाम बन गए थे। यही मार्क कार्नी आज कनाडा के प्रधानमंत्री बनने के सबसे बड़े दावेदार हैं। आज लिबरल पार्टी अपना नया नेता चुनने वाली है। इस रेस में कार्नी के अलावा 3 और नाम हैं, लेकिन वोटर सर्वे के मुताबिक कार्नी के पास 43% वोटर्स का समर्थन है। माइक कार्नी कौन हैं, आज इतने लोकप्रिय कैसे हो गए हैं, और कनाडा को लेकर क्या विजन रखते हैं… स्टोरी में जानेंगे… बैंकर और इकोनॉमिस्टक हैं मार्क कार्नी मार्क कार्नी इकोनॉमिस्ट और पूर्व केंद्रीय बैंकर हैं। कार्नी को 2008 में बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर चुना गया था। कनाडा को मंदी से बाहर निकालने के लिए उन्होंने जो कदम उठाए, उसकी वजह से 2013 में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने उन्हें गवर्नर बनने का प्रस्ताव दिया। बैंक ऑफ इंग्लैंड के 300 साल के इतिहास में वे पहले ऐसे गैर ब्रिटिश नागरिक थे, जिन्हें यह जिम्मेदारी मिली। वे 2020 तक इससे जुड़े रहे। ब्रेक्जिट के दौरान उनके फैसलों ने उन्हें ब्रिटेन में मशहूर बना दिया। ट्रम्प के विरोधी हैं कार्नी, लेकिन बयान देने से बचते हैं कई वोटर्स को लगता है कि कार्नी की आर्थिक योग्यता और उनका संतुलित स्वभाव ट्रम्प को साधने में मदद करेगा। दरअसल, कार्नी लिबरल पार्टी में ट्रम्प के विरोधी हैं। उन्होंने देश की इस हालत का जिम्मेदार ट्रम्प को बताया है। उन्होंने पिछले मंगलवार को एक बहस के दौरान कहा कि ट्रम्प की धमकियों से पहले ही देश की हालत खराब है। बहुत से कनाडाई बदतर जीवन जी रहे हैं। अप्रवासियों की संख्या बढ़ने से देश की हालत और खराब हो गई है। कार्नी अपने विरोधियों की तुलना में अपने कैंपेनिंग को लेकर ज्यादा सतर्क रहे हैं। पीएम पद का उम्मीदवार बनने के बाद से अभी तक उन्होंने एक भी इंटरव्यू नहीं दिया है। वे ट्रम्प विरोधी हैं लेकिन, कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने और देश पर टैरिफ लगाने वाले ट्रम्प के बयान को लेकर कुछ भी कहने से बचते रहे हैं। हालांकि, हाल ही में ट्रम्प की तरफ से कनाडा पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान करने के बाद उन्होंने एक बयान दिया था, कनाडा किसी दबंग के आगे नहीं झुकेगा। हम चुप नहीं बैठेंगे हमें एक मजबूत रणनीति बनानी होगी, जिससे निवेश बढ़े और हमारे कनाडाई कामगारों को इस मुश्किल समय में सहायता मिले। लोकप्रिय हैं, लेकिन ज्यादा दिन PM रहने की संभावना कम पिछले साल जुलाई में एक पोलिंग फर्म ने जस्टिन ट्रूडो की जगह लेने वाले संभावित उम्मीदवारों को लेकर सर्वे किया था। तब 2000 में से सिर्फ 140 लोग यानी 7% लोग ही मार्क कार्नी को पहचान पाए थे। जनवरी में जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद उन्होंने खुद को लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया। इसके बाद उन्होंने लिबरल पार्टी के कई कैबिनेट मंत्रियों और सांसदों का समर्थन हासिल किया, जिससे उनकी दावेदारी मजबूत हुई है। हाल ही में मेनस्ट्रीट सर्वे के मुताबिक कार्नी को 43%, वहीं पूर्व वित्तमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड को 31% वोटर्स का समर्थन मिला है। हालांकि यह कहा नहीं जा सकता है कि कार्नी कितने समय तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे। दरअसल, लिबरल पार्टी के पास संसद में बहुमत नहीं है। प्रधानमंत्री बनने के बाद कार्नी को अक्टूबर से पहले देश में चुनाव कराने होंगे। फिलहाल वे संसद के भी मेंबर नहीं हैं, ऐसे में वे जल्द ही चुनाव करा सकते हैं। भारत-कनाडा के रिश्तों को बेहतर बनाना चाहते हैं कार्नी कार्नी भारत और कनाडा के रिश्तों में आए तनाव को खत्म करना चाहते हैं। वे भारत से अच्छे रिश्तों को हिमायती रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि अगर वो कनाडा के प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को फिर से बहाल करेंगे। उन्होंने कहा- कनाडा समान विचारधारा वाले देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंधों में विविधता लाना चाहता है और भारत के साथ संबंधों को फिर से बनाना चाहता है। हालांकि, दोनों देशों के बीच विवाद की सबसे बड़ी वजह- खालिस्तानी आतंकियों के मुद्दे पर मार्क कार्नी ने अभी तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। भारत और कनाडा के बीच विवाद की वजह क्यों है खालिस्तान खालिस्तानियों के मुद्दे पर भारत और कनाडा के बीच पिछले कुछ साल से राजनीतिक विवाद चल रहे हैं। कनाडाई पीएम ट्रूडो कई बार भारत विरोधी खालिस्तान आतंकियों के लिए नर्म रुख दिखा चुके हैं। इसके अलावा भारत ने उन पर देश के आंतरिक मसलों में भी दखल देने का आरोप लगाया है। कुछ उदाहरण देखिए… कनाडा में आज कैसे चुना जाएगा प्रधानमंत्री कनाडा की लिबरल पार्टी ने पिछले नेशनल इलेक्शन में सरकार बनाई थी, इसलिए प्रधानमंत्री चुनने के लिए लिबरल पार्टी के रजिस्टर्ड वोटर्स वोटिंग करेंगे। 30 जनवरी तक 4 लाख लोगों ने वोटिंग के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। कनाडा की कुल आबादी लगभग 4.1 करोड़ है, यानी लगभग 1% आबादी इस चुनाव में भाग लेगी। वोटिंग का प्रोसेस ———————————– कनाडा से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें… भारतवंशी रूबी ढल्ला कनाडा PM की रेस से बाहर:चुनावी खर्च में गड़बड़ी पर अयोग्य करार, बोलीं- मेरा सपोर्ट बढ़ता देख पार्टी घबराई भारतीय मूल की रूबी ढल्ला कनाडा में प्रधानमंत्री पद की रेस से बाहर हो गई हैं। लिबरल पार्टी ने शुक्रवार को उन्हें इस पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। इसी के साथ उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावना खत्म हो गई है। यहां पढ़ें पूरी खबर… कनाडा को जासूसी गैंग से निकालने पर तुले ट्रम्प:पांच देशों के इस ग्रुप में दुनिया के सबसे खतरनाक जासूस, क्या है यह 5-EYES 5 देशों में अमेरिका और उसके सहयोगी कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड हैं। फाइव आइज को दुनिया का सबसे ताकतवर इंटेलिजेंस नेटवर्क भी माना जाता है। इस अलायंस का सबसे बड़ा मकसद आतंकवाद को रोकना और नेशनल सिक्योरिटी के लिए काम करना है। यहां पढ़ें पूरी खबर…